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    आइआइटी के प्रोफेसर ने छेड़ी ऐसी जंग, उतार रहे माटी का कर्ज

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Tue, 25 Apr 2017 05:02 AM (IST)

    आइआइटी रुड़की के मैकेनिकल डिपार्टमेंट के प्रोफेसर नरेंद्र सिंह ने तो खुद को गांव के लिये ही समर्पित कर दिया। उन्‍होंने नशे के खिलाफ जंग छेड़ी हुई है।

    आइआइटी के प्रोफेसर ने छेड़ी ऐसी जंग, उतार रहे माटी का कर्ज

    रुड़की, [रमन त्यागी]: एक बार गांव छोड़कर शहर क्या आये कि अधिकांश की जिदंगी शहर तक ही सिमटकर रह जाती है। कौन भला गांव की अभावभरी जिदंगी में वापस लौटना चाहेगा। लेकिन, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के मैकेनिकल डिपार्टमेंट के प्रोफेसर नरेंद्र सिंह ने तो खुद को गांव के लिये ही समर्पित कर दिया। ग्रामीणों के बीच रहकर उन्होंने नशे के खिलाफ जो जंग छेड़ी, उसी का नतीजा है कि गांव के 40 से अधिक युवा नशे की गिरफ्त से बाहर आ गये।

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    तहसील मुख्यालय रुड़की से करीब 20 किमी की दूरी पर स्थिति है भलस्वागाज गांव। इस गांव में रहने वाले नरेंद्र सिंह को कोई डॉक्टर साहब के नाम से पुकारता है तो कोई प्रोफेसर साहब। वर्ष 2008 में प्रोफेसर नरेंद्र सिंह ने आइआइटी रुड़की के मैकेनिकल डिपार्टमेंट से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। तब हर किसी ने यही सोचा कि शायद प्रोफेसर साहब विदेश या कहीं अच्छी जगह जाना चाहते हैं। लेकिन, उनके मन में तो कुछ और ही चल रहा था। 

    जिस गांव की मिट्टी में पल-बढ़कर वह आइआइटी जैसे संस्थान में प्रोफेसर के पद तक पहुंचे, विदेशों की यात्रा की, उस गांव की मिट्टी का कर्ज कैसे उतारा जाए। 

    इसी उधेड़बुन में प्रो. सिंह ने गांव में ही पुराने मकान को अपना आशियाना बनाया। बेहद पिछड़े इस इलाके में सीबीएसई का कोई स्कूल तक नहीं था। सो, उन्होंने स्कूल खुलवा दिया और वहां खुद बच्चों को पढ़ाते हैं। कई निजी उच्च शिक्षण संस्थानों ने उन्हें लाखों के पैकेज और सुख-सुविधाओं का ऑफर दिया, लेकिन प्रोफेसर साहब ने इसे ठुकरा दिया। अकेले गांव का सर्वे शुरू किया तो पता चला कि गांव में कोई गुटखा व पान मसाले का आदी है तो कोई बीड़ी-सिगरेट व शराब का। 

    बस! फिर तो उन्होंने पूरे गांव को नशामुक्त करने की ठान ली। पहले लोगों ने मजाक बनाया, लेकिन अटल इरादे के नरेंद्र इससे विचलित नहीं हुए। आज गांव के 40 से अधिक युवा यही कहते हैं कि डॉक्टर साहब गांव में नहीं आते तो उनकी जिदंगी नशे की गलियों में गुम हो जाती। प्रो. नरेंद्र बताते हैं कि उनके पिता स्व. महाशय ठाकुर हरीशचंद स्वतंत्रता सेनानी थे। 

    आजादी के बाद उन्होंने गांव में पाठशाला खोली। इस पाठशाला में उनकी माताजी सुशीला देवी बच्चों को पढ़ाया करती थीं। पिताजी हमेशा कहा करते थे कि इस गांव को खुशहाल बनाना है तो लोगों को नशे से दूर रहना होगा। बस यह बात उन्होंने भी गांठ बांध ली। आज आसपास के गांव के लोग भी प्रोफेसर साहब से उनके गांव में इसी तरह की मुहिम शुरू करने की अपील कर रहे हैं।

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