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    Haridwar Stampede: घायल संतोष से तीन घंटे बाद मिली मां और नानी, गले-गले आ गए थे प्राण

    Updated: Mon, 28 Jul 2025 09:07 AM (IST)

    Haridwar Stampede हरिद्वार में भगदड़ के बाद फरीदाबाद के संतोष कुमार अपनी माँ और नानी से बिछड़ गए। तीन घंटे बाद स्थानीय लोगों ने उन्हें सुरक्षित ढूंढ निकाला। संतोष ने बताया कि मंदिर मार्ग पर कोई पुलिस या प्रशासन का बंदोबस्त नहीं था। रामपुर के प्रदीप कुमार ने अपने बच्चों को पेड़ के नीचे सुरक्षित रखा जब भगदड़ मची।

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    Haridwar Stampede : भगदड़ में गई छह लोगों की जान। जागरण

    जागरण संवाददाता, हरिद्वार। Haridwar Stampede : भगदड़ के बाद बिछड़े और अपनों की सलामती को लेकर श्रद्धालुओं के दिलों में जो डर समाया, वह अभी भी कम नहीं हुआ है। हादसे के चश्मदीद और उसमें चोटिल हुए फरीदाबाद निवासी संतोष कुमार ने बताया कि घटना के वक्त वह अपनी मां, नानी, बेटी, बहन की सास और ननद के साथ मंदिर जा रहे थे।

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    हादसे के बाद उनकी मां और नानी गायब हो गई थीं। संतोष कुमार ने कहा कि हमारी लड़की और बहन की सास-ननद तो मिल गईं, लेकिन मां और नानी का कोई पता नहीं चला। तीन घंटे बाद स्थानीय लोगों ने सकुशल उन्हें ढूंढ निकाला। संतोष ने बताया कि वह खुद भी घायल हुआ।

    परिवार के कुछ सदस्य आगे थे, कुछ पीछे। उसी रास्ते से लोग ऊपर मंदिर की ओर भी जा रहे थे और नीचे भी उतर रहे थे, यही सबसे बड़ी गलती थी। उन्होंने आरोप लगाया कि पूरे मार्ग पर कहीं भी पुलिस या प्रशासन का कोई बंदोबस्त नजर नहीं आया। हादसे के बाद तीन-चार पुलिसकर्मी मंदिर से बाहर निकले। संतोष कुमार ने यह भी कहा कि स्थानीय लोगों ने उनकी मां और नानी को ढूंढने में मदद की, जिसके लिए वह आभारी हैं।

    बच्चों को पेड़ के नीचे बैठाया

    हरिद्वार : रविवार की सुबह हादसे के वक्त अपने बच्चों के साथ मौजूद उत्तर प्रदेश के रामपुर, तहसील मिलक निवासी प्रदीप कुमार ने बताया कि वह मनसा देवी मंदिर मार्ग पर उस स्थान से महज दस मीटर दूर थे, जहां भगदड़ मची। हमने बस इतना सुना कि तार गिरा... लेकिन वह बिजली का तार था या दुकानों की तिरपाल की रस्सी, समझ नहीं आया। बस उस पल मेरे दिमाग में एक ही बात थी कि बच्चों को कैसे बचाऊं।

    सरकारी स्कूल के शिक्षक प्रदीप कुमार ने बताया कि उनका एक 12 साल का और दूसरा 10 साल का बेटा का है। दोनों बच्चे उसके साथ मनसा देवी जा रहे थे। किसी तरह दोनों बच्चों को लेकर वह सड़क किनारे एक पेड़ के नीचे पहुंचे और वहीं बैठा दिया। डर थोड़ा कम जरूर हुआ, लेकिन मन पूरी तरह शांत नहीं हो पाया, क्योंकि हमारे कुछ और साथी भी साथ आए थे, जिनकी चिंता लगी रही।