21वीं सदी के अंत तक गंगा में बदलेगा बहाव, बढ़ेगा बाढ़ और सूखे का खतरा
अपर गंगा बेसिन में ग्लेशियरों के पिघलने और हिमपात में कमी के कारण गंगा नदी के प्रवाह में बदलाव हो सकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि स ...और पढ़ें

राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (एनआइएच) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के विज्ञानियों ने किए संयुक्त अध्ययन।
रीना डंडरियाल, जागरण रुड़की: पश्चिमी हिमालय में स्थित अपर गंगा बेसिन (यूजीबी) में ग्लेशियरों के पिघलने और हिमपात में हो रही कमी आने वाले वर्षों में गंगा नदी के प्रवाह को प्रभावित कर सकती है। राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (एनआइएच) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के विज्ञानियों ने किए संयुक्त अध्ययन में यह सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण 21वीं सदी के अंत तक हिमालयी क्षेत्र का स्वरूप बदल सकता है।
शोध के अनुसार इस अवधि के दौरान तापमान में लगभग 1.4 डिग्री सेल्सियस से 6.4 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि की संभावना है, जो हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों के तीव्र पिघलाव का प्रमुख कारण बनेगी। हिमपात के स्थान पर वर्षा में लगभग 20-30 प्रतिशत तक की अनुमानित वृद्धि हो सकती है। जिससे हिमनद क्षेत्रों में स्थायी बर्फ का क्षेत्रफल घट सकता है। इसके परिणामस्वरूप चरम मौसम परिस्थितियों के दौरान नदियों का प्राकृतिक प्रवाह अस्थिर होने की आशंका है।

यह शोध आइआइटी रुड़की के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के शोधार्थी जपजीत सिंह ने एनआइएच के हिममंडल एवं जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र (सी4एस) के विज्ञानी तथा शोध पर्यवेक्षक डा. विशाल सिंह के मार्गदर्शन में किया है। इसे अंतरराष्ट्रीय जर्नल (एल्सेवियर) में प्रकाशित किया जा चुका है।
विज्ञानी डा. विशाल सिंह ने बताया कि अपर गंगा बेसिन (ऋषिकेश तक) के कुल प्रवाह का लगभग 70.6 प्रतिशत हिस्सा वर्षा आधारित अपवाह से आता है, जो वर्ष 2100 तक बढ़कर 84.7 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। इसके विपरीत ग्लेशियर पिघलन का योगदान 9.9 प्रतिशत से घटकर 6.8 प्रतिशत और बर्फ पिघलन का योगदान 18.3 प्रतिशत से घटकर 7.7 प्रतिशत तक सीमित हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन ने बदला हिमालय के हिममंडल को
हिमालय के ग्लेशियर और बर्फ का पिघलना नदियों में पानी बनाए रखने के लिए जरूरी है। खासकर सूखे मौसम में और खेती एवं हाइड्रोपावर बनाने के लिए पानी का एक भरोसेमंद स्रोत होते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन ने तापमान और वर्षा के पैटर्न को बदलकर हिमालय के हिममंडल को काफी बदल दिया है।

पानी के स्रोत पर असर
भविष्य के जलवायु अनुमानों के अनुसार बढ़ते तापमान के कारण (आइपीसीसी के सीएमआइपी-6 जलवायु माडलों के विभिन्न उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत) वर्ष 2071-2100 की अवधि तक सिंधु बेसिन में वार्षिक हिमपात में लगभग 30-50 प्रतिशत, गंगा बेसिन में 50-60 प्रतिशत तथा ब्रह्मपुत्र बेसिन में 50-70 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।
बढ़ सकती है बाढ़ की आवृत्ति
मानसून से संचालित तेज अपवाह के कारण विशेष रूप से घनी आबादी वाले क्षेत्रों में बाढ़ की आवृत्ति बढ़ सकती है। हिममंडल क्षेत्र में कमी पारंपरिक सिंचाई प्रणालियों के लिए खतरा है। बर्फ और ग्लेशियर के द्रव्यमान में कमी अल्पाइन पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर कर सकती है। भूस्खलन के जोखिम को बढ़ा सकती है और पर्यटन को प्रभावित कर सकती है। बर्फबारी देर से शुरू होने और जल्दी खत्म होने का अनुमान है। इस अनियमितता से ग्लेशियरों का पुनर्भरण कम होगा।
धारा प्रवाह बढ़ने के आसार
डा. विशाल सिंह बताते हैं कि उपग्रह-आधारित चित्रों के माध्यम से किए गए अध्ययनों के अनुसार वर्ष 1990 से 2020 के बीच अपर गंगा बेसिन में ग्लेशियर द्रव्यमान में लगभग पांच प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।
इसके परिणामस्वरूप ऋषिकेश में ग्लेशियर पिघलन से प्राप्त जल में लगभग एक से दो प्रतिशत तथा भोजवासा क्षेत्र में लगभग तीन से चार प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गई है। विज्ञानियों के सुझाव दिया कि ग्लेशियरों की नियमित मानिटरिंग हो। वर्षा आधारित जल संचयन की नई रणनीतियां और हिमालयी क्षेत्र के लिए विशेष जल नीति बनाई जाए।

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