संत की कलम से : देवलोक से धरती लोक तक कुंभ की जय-जयकार- योगगुरु बाबा रामदेव
Haridwar Kumbh 2021 सनातन धर्म संस्कृति परंपरा और भारतीय जनमानस का शिखर पर्व होता है कुंभ। यह सनातन धर्म का महापर्व है और लोक आस्था का शिखर बिंदु भी। कुंभ का जन्म समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत के वितरण को लेकर हुआ।

Haridwar Kumbh 2021 सनातन धर्म संस्कृति, परंपरा और भारतीय जनमानस का शिखर पर्व होता है कुंभ। यह सनातन धर्म का महापर्व है और लोक आस्था का शिखर बिंदु भी। कुंभ का जन्म समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत के वितरण को लेकर हुआ, अमृत पान के लिए देवताओं और राक्षसों में 12 दिनों तक भीषण संघर्ष चला। कालांतर में इसके बाद कुंभ का आयोजन आरंभ हुआ, कुंभ दैवीय आयोजन है। धरती पर यह एक स्थान पर हर 12वें वर्ष में आयोजित होता है। धरतीलोक का 12 वर्ष, देवलोक के 12 के बराबर होते हैं। यही वजह है कि किसी भी एक स्थान पर कुंभ का आयोजन हर 12 वर्ष बाद ही होता है। इन वर्षों में कुंभ के 12 आयोजन होते हैं, 8 देवलोक में और 4 धरतीलोक में। देवलोक के कुंभ में भूलोकवासियों की शिरकत नहीं हो सकती, धरतीलोक पर आयोजित कुंभ देवी-देवताओं की उपस्थिति के बगैर संभव नहीं। यह दैवीय आयोजन है, इसमें देवी-देवताओं की उपस्थिति अनिवार्य है। दैवीय आयोजन होने के कारण इसके लिए विशेष नक्षत्र और ज्योतिष गणना का महत्व है।
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हरिद्वार में कुंभ गुरु बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश करने और उसी समय सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने से बने विशेष नक्षत्रीय संयोग पर आयोजित होता है। इस बार यह विशेष योग 12 वर्षों की बजाय 11 वर्ष में पड़ रहा है। खास यह कि ये विशेष परिस्थितियां शताब्दी में एक या दो बार ही बनती हैं। कुंभ के समय नक्षत्रों का बना यह विशेष संयोग कल-कल बहती मोक्षदायिनी पतित पावनी श्रीमां गंगा का पावन जल को अमृतमयी कर देता है। विशेष नक्षत्र, विशेष परिस्थितियों में पावन गंगा के पवित्र जल के पूजन और स्नान मात्र से ही व्यक्ति बैकुंठ की प्राप्ति का हकदार बन जाता है। समस्त पापों और कष्टों का निवारण हो जाता है और आत्मा शुद्ध हो जाती है। साथ ही परमात्मा का अंतकरण में वास हो जाता है।
[योगगुरु बाबा रामदेव]
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