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संत की कलम से: देवलोक से धरती लोक तक होता है कुंभ- स्वामी अवधेशानंद गिरि

Haridwar Kumbh 2021 कुंभ सनातन संस्कृति और सनातन धर्म का महापर्व है यह लोक आस्था का शिखर भी है। कुंभ दैवीय आयोजन है जिसका जन्म समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत के वितरण से हुआ। अमृत पान के लिए देवताओं और राक्षसों में 12 दिनों तक भीषण संघर्ष चला।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 29 Dec 2020 11:01 AM (IST)Updated: Tue, 29 Dec 2020 11:01 AM (IST)
संत की कलम से: देवलोक से धरती लोक तक होता है कुंभ- स्वामी अवधेशानंद गिरि
संत की कलम से: स्वामी अवधेशानंद गिरि बोले, देवलोक से धरती लोक तक होता है कुंभ।

संत की कलम से, हरिद्वार। Haridwar Kumbh 2021 कुंभ सनातन संस्कृति और सनातन धर्म का महापर्व है, यह लोक आस्था का शिखर भी है। कुंभ दैवीय आयोजन है, जिसका जन्म समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत के वितरण से हुआ। अमृत पान के लिए देवताओं और राक्षसों में 12 दिनों तक भीषण संघर्ष चला। देवलोक के यह 12 दिन धरती लोक के 12 वर्षों के समान हैं। यही वजह है कि किसी भी एक स्थान पर कुंभ का आयोजन हर 12 वर्ष बाद ही होता है।

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दैवीय आयोजन होने के कारण इसके लिए विशेष नक्षत्र और ज्योतिष गणना का महत्व है। हरिद्वार कुंभ गुरु बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश करने और उसी समय सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने से बने विशेष योग के मौके पर आयोजित होता है। इस बार यह विशेष योग 12 वर्षों की बजाय 11 वर्ष में पड़ रहा है। इसलिए हरिद्वार कुंभ इस बार 11 वर्ष में ही आयोजित हो रहा है। खास यह कि ये विशेष परिस्थितियां शताब्दी में एक या दो बार ही बनती हैं।

'वसंते विषुवे चैव घटे देवपुरोहिते।

गंगाद्वारे च कुन्ताख्‍य: सुधामिति नरो यत:।।' 

नक्षत्रों के इस विशेष संयोग के दौरान कल-कल बहती मोक्षदायिनी पतित पावनी श्री मां गंगा का पावन जल अमृतमयी हो जाता है। विशेष नक्षत्र, विशेष परिस्थितियों में पावन गंगा के पवित्र जल के पूजन और स्नान मात्र से ही व्यक्ति बैकुंठ की प्राप्ति का हकदार बन जाता है। समस्त पापों और कष्टों का निवारण हो जाता है और आत्मा शुद्ध हो जाती है। साथ ही परमात्मा का अंतः करण में वास हो जाता है। 

कुंभ के 12 वर्ष के एक कालखंड में 12 कुंभ महापर्व का आयोजन होता है, जिसमें से आठ महापर्व देवलोक में और चार धरती लोक में आयोजित होते हैं। देवलोक में आयोजित कुंभ महापर्व में धरती लोग के वासियों की भागीदारी पाबंद है। उनके लिए इन 12 वर्षों में हर 3 वर्ष में अलग-अलग जगहों पर कुंभ का आयोजन होता है। समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत की चार बूंदे धरती लोक की चार जगहों प्रयागराज, धर्मनगरी हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में विशेष नक्षत्रीय योग में गिरी थी। उन्हीं विशेष नक्षत्रीय संयोग में इन स्थानों पर 12 वर्ष के एक कालखंड में कुंभ का आयोजन होता है। सूर्य, चंद्र और बृहस्पति देवासुर संग्राम के समय अमृत कुंभ की रक्षा करते रहे। इन तीनों का संयोग जब विशिष्ट राशि पर होता है, तब कुंभ योग आता है।

[स्वामी अवधेशानंद गिरि, आचार्य महामंडलेश्वर,  श्री पंचदशनाम् जूना अखाड़ा]

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