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भूस्खलन की चेतावनी देने को अर्ली वार्निंग सिस्टम, IIT Roorkee के विज्ञानी इसपर कर रहे काम

Earthquake Early Warning System भूस्खलन की पूर्व चेतावनी देने को भी अर्ली वार्निंग सिस्टम ईजाद करने पर शोध चल रहा है। इससे समय रहते भूस्खलन से होने वाले जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकेगा। इस प्रोजेक्ट पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की काम कर रहा है।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Fri, 03 Sep 2021 11:30 PM (IST)Updated: Sat, 04 Sep 2021 01:13 PM (IST)
भूस्खलन की चेतावनी देने को अर्ली वार्निंग सिस्टम, IIT Roorkee के विज्ञानी इसपर कर रहे काम
भूस्खलन की चेतावनी देने को अर्ली वार्निंग सिस्टम, IIT Roorkee के विज्ञानी इसपर कर रहे काम।

रीना डंडरियाल, रुड़की। Earthquake Early Warning System भूकंप की पूर्व चेतावनी जारी करने को विकसित टेक्नोलाजी की तर्ज पर भूस्खलन की पूर्व चेतावनी देने को भी अर्ली वार्निंग सिस्टम ईजाद करने पर शोध चल रहा है। इससे समय रहते भूस्खलन से होने वाले जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकेगा। इस प्रोजेक्ट पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के भू-विज्ञान विभाग के साथ इलेक्ट्रानिक्स, जियो फिजिक्स, मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान, सिविल इंजीनियरिंग आदि विभागों के विज्ञानी काम कर रहे हैं।

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उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश समेत देश के अन्य पहाड़ी राज्य भूस्खलन के लिहाज से संवदेनशील हैं। बरसात के दौरान इन राज्यों में होने वाली भूस्खलन की घटनाएं अक्सर भारी तबाही मचाती हैं। पिछले दिनों किन्नौर (हिमाचल प्रदेश)में भूस्खलन ने भारी तबाही मचाई। वहीं, उत्तराखंड के चमोली जिले सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में भी बरसात के दौरान भूस्खलन की घटनाएं विकराल रूप ले रही हैं। ऐसे में भूस्खलन से होने वाले जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए आइआइटी रुड़की अर्थक्वेक अर्ली वार्निंग सिस्टम की तर्ज पर टेक्नोलाजी विकसित कर रहा है।

आइआइटी रुड़की के भू-विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर और प्रोजेक्ट के प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर डा. एसपी प्रधान ने बताया कि उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश समेत अन्य पहाड़ी राज्य भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील हैं। अधिक बारिश, भूकंप, जलवायु परिवर्तन और विकास कार्यों के लिए पहाड़ों को काटना इसके प्रमुख कारण हैं। ऐसे में भूस्खलन से होने वाला नुकसान कम करने और अलर्ट जारी करने को अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने के लिए प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।

इसके तहत सेंसर बनाए जाएंगे और पहाड़ में भूस्खलन को लेकर संवेदनशील स्थानों पर इन्हें लगाने की योजना है। इन स्थानों पर भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न होने से पहले ये सेंसर अलार्म के जरिये अलर्ट जारी करेंगे, जो संस्थान की लैब में रिकार्ड होगा। इसके बाद आपदा प्रबंधन व स्थानीय प्रशासन समेत अन्य संबंधित विभागों को अलर्ट जारी किया जाएगा। बताया कि इस प्रोजेक्ट के तहत भूस्खलन से जुड़े तमाम पहलुओं का अध्ययन किया जा रहा है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के प्रोजेक्ट के तहत यह शोध चल रहा है। ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों में इस तरह की टेक्नोलाजी उपलब्ध है।

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सेंसर से रियल टाइम डाटा

पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन की पूर्व चेतावनी के लिए जो सेंसर लगेंगे, उनके जरिये रियल टाइम डाटा प्राप्त हो सकेगा। मसलन कितनी बारिश हो रही है, मिट्टी में कितना पानी है, मिट्टी से कितना विस्थापन हो रहा है, भूकंप आने पर किस तरह का प्रभाव पड़ा है वगैरह-वगैरह।

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40 से अधिक जगह लगातार हो रहा भूस्खलन

उत्तराखंड में ऋषिकेश से केदारनाथ तक 40 से अधिक ऐसे स्थान हैं, जहां धीरे-धीरे लगातार भूस्खलन हो रहा है। इनमें रामबाड़ा, सोनप्रयाग, रामपुर, फाटा, साकिनीधार, कल्यासौड़, व्यासी, रैथाली, खुड़ियाला धरासू आदि स्थान शामिल हैं। सौ से अधिक ऐसी जगह भी चिह्नित हुई हैं, जहां चट्टान की ताकत (राक स्ट्रेंथ) कम हो रही है।

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