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    उत्तराखंड में जन-आंदोलनों की मशाल रहे 'दिवाकर' हुए ओझल, अडिग पहाड़ी प्रहरी के रूप में रही पहचान

    Updated: Tue, 25 Nov 2025 08:56 PM (IST)

    उत्तराखंड राज्य आंदोलन में दिवाकर भट्ट का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने पहाड़ की अस्मिता और हक के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वे उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक उपाध्यक्ष थे और उन्होंने कई आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई। एक बार विधायक और तीन बार प्रमुख रहे, उन्होंने भू-कानून को सख्त बनाने में भी योगदान दिया। उनका नाम हमेशा उत्तराखंड के इतिहास में अमर रहेगा।

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    देवप्रयाग विधानसभा में चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट: साभार इंटरनेट मीडिया

    शैलेंद्र गोदियाल, जागरण हरिद्वार : उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन की विराट गाथा जब-जब स्मरण की जाएगी, दिवाकर भट्ट का नाम उन पहले पहाड़ी सपूतों में अगली पंक्ति में खड़ा मिलेगा जिन्होंने पहाड़ की अस्मिता, हक और सम्मान के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन दांव पर लगा दिया।

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    टिहरी जनपद के बड़ियारगढ़ के सुपार गांव में वर्ष 1946 में जन्मे दिवाकर भट्ट केवल नेता नहीं, एक विचार व चेतना भी थे। उत्तराखंड आंदोलन में उनका अडिग पहाड़ीपन, जो पहाड़ के हितों के लिए किसी भी कीमत पर झुकने को तैयार नहीं होती थी।

    केवल 19 वर्ष की अल्पायु में ही वे जनांदोलनों के अग्रिम मोर्चे पर आ गए। 1968 में ऋषिबल्लभ सुंदरियाल के नेतृत्व में दिल्ली के बोट क्लब पर आयोजित ऐतिहासिक रैली में उनकी भागीदारी उत्तराखंड राज्य की मांग की पहली गूंज थी।

    1972 में सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में हुए प्रदर्शन में भी उनकी भूमिका अहम रही। 1978 में वे उन चुनिंदा युवाओं में शामिल थे, जिन्होंने बदरीनाथ से दिल्ली तक पैदल यात्रा कर उत्तराखंड की आवाज देश की राजधानी तक पहुंचाई और तिहाड़ की सलाखें भी इस संकल्प को रोक न सकीं।

    आइटीआइ करने के बाद दिवाकर भट्ट बीएचईएल हरिद्वार में नौकरी लगे और कर्मचारी नेता के रूप में उभरे। 1970 में उन्होंने हरिद्वार में ‘तरुण हिमालय’ संगठन की स्थापना कर उन्होंने उत्तराखंड सांस्कृतिक संरक्षण से लेकर शिक्षा के क्षेत्र तक सक्रिय भूमिका निभाई।

    1971 के गढ़वाल विश्वविद्यालय की मांग का आंदोलन तथा 1978 के पंतनगर विश्वविद्यालय कांड के विरोध में वे अपने तेजस्वी तेवरों के साथ अग्रिम पंक्ति में रहे। 1979 में ‘उत्तराखंड क्रांति दल’ की स्थापना में वे संस्थापक उपाध्यक्ष बने।

    उक्रांद के नेतृत्व में कुमाऊं-गढ़वाल मंडलों का घेराव, 1987 की दिल्ली रैली, बार-बार के उत्तराखंड बंद, वन अधिनियम विरोधी आंदोलन के हर मोर्चे पर दिवाकर भट्ट संघर्ष का पर्याय बन चुके थे।

    उत्तराखंड के गांधी इंद्रमणी बडोनी ने उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि दी थी। 1994 के उत्तराखंड आंदोलन में वे प्रमुख चेहरों में थे, मुंबई में बाला साहब ठाकरी के मंच पर उत्तराखंड राज्य की आवाज को बुलंद करने वाले भी वे पहले उत्तराखंड रहे हैं।

    राज्य आंदोलन की ज्वाला को उन्होंने यहीं शांत नहीं होने दिया। 1995 में 8 अक्टूबर 10 नवंबर तक श्रीयंत्र टापू में अनशन किया। श्रीयंत्र टापू में यशोधर बैंजवाल और राजेश रावत बलिदान हुए। फिर 1995 में दिसंबर से लेकर 4 जनवरी 1996 तक खैट पर्वत पर दिवाकर भट्ट व सुंदर सिंह चौहान के आमरण अनशन ने राज्य आंदोलन को नई ऊर्जा दी।

    एक बार विधायक और तीन बार प्रमुख रहे दिवाकर

    हरिद्वार : राजनीति में भी उनकी सादगी की मिसाल रही। 1982 से 1996 तक तीन बार कीर्तिनगर के ब्लाक प्रमुख रहे। एक बार जिला पंचायत सदस्य रहे। 2007 में देवप्रयााग विधानसभा से वे विधायक और बाद में बीसी खंडूड़ी सरकार में राजस्व मंत्री बने।

    भू-कानून को सख्त बनाने और पहाड़ की भूमि को बचाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। वे 1999 और 2017 में उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष भी रहे। 2012 का चुनाव उन्होंने भाजपा के चुनाव निशान पर लड़ा और चुनाव हारे। फिर 2017 में निर्दलीय चुनाव लड़े और मामूली अंतर से हार गए।

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