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    जिपं सदस्यों के पति और बेटों के शोर-शराबे से तमाशा बनी बोर्ड बैठक

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Sun, 05 Jan 2020 04:37 PM (IST)

    जिपं की महिला सदस्यों के रिश्तेदारों ने बोर्ड बैठक का तमाशा बनाकर रख दिया। पूरी बोर्ड बैठक में महिला सदस्यों के रिश्तेदार हावी रहे।

    जिपं सदस्यों के पति और बेटों के शोर-शराबे से तमाशा बनी बोर्ड बैठक

    हरिद्वार, जेएनएन। जिला पंचायत की महिला सदस्यों के रिश्तेदारों ने बोर्ड बैठक का तमाशा बनाकर रख दिया। पूरी बोर्ड बैठक में महिला सदस्यों के रिश्तेदार हावी रहे। महिला सदस्यों के पति और बेटे बोर्ड बैठक में शोर-शराबा कर अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करते रहे। एक महिला सदस्य के बेटे ने तो जिला पंचायत उपाध्यक्ष के साथ अभद्रता कर बोर्ड बैठक की गरिमा को ही तार-तार कर दिया। हैरत यह है कि खुली आंखों से सबकुछ देखने के बावजूद अधिकारी तमाशबीन बने रहे। 

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    जिला पंचायत की बैठक में जिला पंचायत सदस्य के अलावा विधायक, ब्लॉक प्रमुख और सांसद हिस्सा ले सकते हैं। जनप्रतिनिधियों के रिश्तेदार और बाहरी लोगों के सभागार में प्रवेश पर प्रतिबंध रहता है, लेकिन शनिवार को हुई बैठक में महिला सदस्यों के रिश्तेदारों ने इन तमाम नियमों की धज्जियां उड़ा डाली। अनधिकृत लोग न केवल सभागार में दाखिल हुए बल्कि प्रस्तावों पर हो रही चर्चा में भी लगातार दखल अंदाजी की। बैठक में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से तू-तू मैं-मैं करने से भी महिला सदस्यों के रिश्तेदार पीछे नहीं हटे। जिला पंचायत सदस्य लतीफन के पुत्र मुकर्रम अंसारी ने एक मुद्दे पर जिला पंचायत उपाध्यक्ष राव आफाक अली के साथ जमकर अभद्रता की। 

    कुछ सदस्यों ने इस पर हल्का ऐतराज जताया, मगर प्रभारी डीएम से लेकर अपर मुख्य अधिकारी तक बैठक में मौजूद किसी भी अधिकारी ने हस्तक्षेप कर व्यवस्था सुचारू करने की जरूरत नहीं समझी। जिपं सदस्य सुखङ्क्षवदर कौर लहरी के पति गुरजीत सिंह लहरी भी लगातार खड़े होकर बोर्ड बैठक में दखल देते रहे। इनके अलावा भी बड़ी संख्या में रिश्तेदार और बाहरी लोग सभागार में बैठक में बाधा उत्पन्न करते रहे और पूरा सदन मूकदर्शक बना रहा। करीब सवा घंटे चली बैठक के दौरान अधिकांश महिला सदस्यों के बजाय उनके पति, बेटे व अन्य रिश्तेदारों ने ही चर्चा और कार्यवाही में भाग लिया। 

    रिश्तेदारों को आखिर किसका सरंक्षण 

    जिला पंचायत के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का चुनाव हो या फिर बोर्ड बैठक के प्रस्ताव पर चर्चा, अधिकांश महिला प्रतिनिधियों के पति, बेटे और भाई आदि फैसला लेते हैं। महिला प्रतिनिधियों को उनके पति या पुत्र जो कुछ समझा बुझाकर भेजते हैं, वह सिर्फ उतना ही करती हैं। चूंकि महिला सदस्यों को अपने पक्ष में करने के लिए सेटिंग-गेटिंग का पूरा खेल उनके पुरुष रिश्तेदार खेलते हैं। इसलिए भी उन्हें सरंक्षण दिया जाता है। उन्हें न सिर्फ बोर्ड बैठक में शामिल होने की पूरी छूट दी जाती है, बल्कि कोई भी निर्णय लेने से पहले महिला सदस्यों के बजाय उनके रिश्तेदारों से ही सहमति ली जाती है। हैरानी की बात यह है कि महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का दावा करने वाले अफसर भी कठपुतली बने सबकुछ देखते रहते हैं। 

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    अपर मुख्य अधिकारी एमएस राणा का कहना है कि बाहर लोगों के आने से कुछ व्यवधान रहा, लेकिन आगे की बोर्ड बैठकों में सदस्यों के अलावा उनके साथ आए लोगों को बैठक में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। उनके बैठने की व्यवस्था अलग की जाएगी। 

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    प्रभारी डीएम का नहीं उठा फोन 

    इस बारे में जब प्रभारी डीएम व मुख्य विकास अधिकारी विनीत तोमर से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया तो कई बार मोबाइल पर घंटी जाने के बाद भी उन्होंने कॉल रिसीव नहीं की। समाचार लिखे जाने तक उनका पक्ष नहीं मिल सका था। इस बारे में उनका पक्ष मिलने पर प्रकाशित किया जाएगा। 

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