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    Year Ender 2025: भविष्य के लिए तैयार....स्मार्ट मीटर, एआइ और तकनीकी आधारित आपदा प्रबंधन

    By Ashwani Kumar TripathiEdited By: Sunil Negi
    Updated: Wed, 31 Dec 2025 01:20 AM (IST)

    उत्तराखंड का ऊर्जा क्षेत्र 2025 में सुदृढ़ीकरण और भविष्य की तैयारी का महत्वपूर्ण पड़ाव रहा। बिजली उत्पादन (जलविद्युत, सौर, बैटरी भंडारण), पारेषण और वि ...और पढ़ें

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    सांकेतिक तस्वीर।

    अश्वनी त्रिपाठी, जागरण देहरादून : उत्तराखंड के ऊर्जा क्षेत्र के लिए वर्ष 2025 केवल एक कैलेंडर वर्ष नहीं, बल्कि ऊर्जा तंत्र के सुदृढ़ीकरण और भविष्य की तैयारी का महत्वपूर्ण पड़ाव रहा। वर्ष भर बिजली उत्पादन, पारेषण, वितरण और नियमन से जुड़ी संस्थाएं एक साझा उद्देश्य के साथ आगे बढ़ीं।

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    इन समन्वित प्रयासों से राज्य की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूती मिली, नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार की दिशा तय हुई और उपभोक्ता हित संरक्षण के लिए ठोस आधार तैयार हुआ। परंपरागत जलविद्युत के साथ सौर ऊर्जा और बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली को ऊर्जा पोर्टफोलियो में शामिल कर भविष्य की जरूरतों को पूरा करने की तैयारी की गई।

    बढ़ती मांग को देखते हुए ट्रांसमिशन व डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क के सुदृढ़ीकरण की विस्तृत रूपरेखा भी वर्ष भर तैयार होती रही। नियामक स्तर पर टैरिफ संतुलन बनाए रखते हुए निवेश को प्रोत्साहन और अक्षय ऊर्जा को गति देने वाले निर्णय वर्ष की प्रमुख उपलब्धियों में शामिल रहे। सोलर रूफटाप की बढ़ती स्वीकार्यता, सामुदायिक सौर परियोजनाओं का विस्तार और नई ऊर्जा नीतियों के माध्यम से वर्ष 2025 में उत्तराखंड को आत्मनिर्भर ऊर्जा राज्य बनाने की मजबूत नींव रखी गई।

    ऊर्जा क्षेत्र में ऊर्जा का संचार

    • राज्य गठन के समय जहां स्थापित विद्युत क्षमता 2,000 मेगावाट से कम थी, वहीं अब यह लगभग 4,000 मेगावाट से अधिक हो चुकी है, जिसमें जलविद्युत की प्रमुख हिस्सेदारी है।
    • राज्य में 400/220/132 केवी का सुदृढ़ ट्रांसमिशन नेटवर्क विकसित हुआ और लगभग 100 प्रतिशत गांवों का विद्युतीकरण किया गया।
    • वर्तमान में वितरण प्रणाली के तहत 29 लाख से अधिक उपभोक्ता जुड़े हैं। हाल के वर्षों में 50 मेगावाट से अधिक सौर क्षमता जोड़ी गई।

    भविष्य की मांग को देखते हुए ट्रांसमिशन ढांचे की नींव

    वर्ष 2025 में पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन आफ उत्तराखंड लिमिटेड ने राज्य के विद्युत पारेषण तंत्र को भविष्य की जरूरतों के अनुरूप ढालने की दिशा में निर्णायक पहल की। बढ़ते विद्युत लोड, औद्योगिक गतिविधियों और नवीकरणीय ऊर्जा के समावेशन को ध्यान में रखते हुए उच्च क्षमता वाले ट्रांसमिशन नेटवर्क के विस्तार को प्राथमिकता दी गई।

    220 केवी से 400 केवी नेटवर्क विस्तार पर फोकस

    ट्रांसमिशन सुदृढ़ीकरण के तहत 220 केवी से 400 केवी ट्रांसमिशन लाइनों, नए जीआइएस सबस्टेशनों और मौजूदा सबस्टेशनों की क्षमता वृद्धि से जुड़ी परियोजनाओं की डीपीआर तैयार कर उन्हें नियामक अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया गया। इससे राज्य के पारेषण ढांचे को दीर्घकालिक मजबूती मिली।

    आपदा-संवेदनशील राज्य में मजबूत पारेषण तंत्र

    नेटवर्क उन्नयन के साथ-साथ संचालन एवं अनुरक्षण व्यवस्था को भी सशक्त किया गया। पुरानी लाइनों के तकनीकी उन्नयन, ट्रांसफार्मरों की क्षमता वृद्धि और शहरी क्षेत्रों में जीआइएस तकनीक अपनाने से पारेषण प्रणाली अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय बनी।

    हाइड्रो के साथ सोलर और स्टोरेज का समन्वय

    वर्ष 2025 उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड के लिए उत्पादन स्थिरता और ऊर्जा विविधीकरण का वर्ष रहा। परंपरागत जलविद्युत के साथ सौर ऊर्जा और बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों को जोड़ते हुए ऊर्जा पोर्टफोलियो को संतुलित किया गया।

    उत्पादन लक्ष्य और सौर क्षमता में वृद्धि

    यूजेवीएनएल ने वर्ष 2025-26 के लिए 5212 मिलियन यूनिट उत्पादन लक्ष्य तय किया। इसी अवधि में निगम की संचालित सौर क्षमता लगभग 45 मेगावाट तक पहुंची, जबकि भविष्य के लिए लगभग 117 मेगावाट की सौर परियोजनाएं योजनाबद्ध की गईं।

    ग्रिड स्थिरता के लिए बैटरी ऊर्जा भंडारण

    नवीकरणीय ऊर्जा के बेहतर एकीकरण और पीक लोड प्रबंधन के लिए तीन स्थानों पर 60 मेगावाट / 150 मेगावाट-घंटा क्षमता वाले बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम की डीपीआर तैयार की गई। इससे ग्रिड स्थिरता को नई मजबूती मिली।

    उपभोक्ता-केंद्रित वितरण प्रणाली का विस्तार

    उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड ने वर्ष 2025 में लगभग 29 लाख उपभोक्ताओं को भरोसेमंद बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की। प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के तहत 14 हजार से अधिक घरों पर सोलर रूफटाप लगाए गए, जिससे 50 मेगावाट सौर क्षमता जुड़ी।

    स्मार्ट मीटर, एआइ और आपदा प्रबंधन में दक्षता

    डिस्ट्रीब्यूशन क्षेत्र में स्मार्ट मीटरिंग, फीडर आटोमेशन, डिजिटल बिलिंग और आइटी-ओटी सिस्टम के एकीकरण को बढ़ावा दिया गया। एआइ आधारित निगरानी से आउटेज मैनेजमेंट और लोड फोरकास्टिंग में सुधार हुआ, जबकि आपदा के समय बिजली बहाली की क्षमता भी मजबूत हुई।

    नवीकरणीय ऊर्जा नीतियों से आत्मनिर्भरता की दिशा

    उत्तराखंड नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण ने सौर रूफटाप, सामुदायिक सौर परियोजनाओं और किसानों के लिए सब्सिडी योजनाओं को आगे बढ़ाया। जियोथर्मल ऊर्जा नीति 2025 की मंजूरी के साथ राज्य ने हाइड्रो–सोलर–स्टोरेज आधारित ऊर्जा माडल की ओर ठोस कदम बढ़ाए।

    चुनौतियां

    पारेषण क्षेत्र में भौगोलिक जोखिम और अवसंरचना दबाव

    उत्तराखंड में ऊर्जा पारेषण की सबसे बड़ी चुनौती पर्वतीय भूगोल और आपदा संवेदनशीलता से जुड़ी है। भूस्खलन, अतिवृष्टि, बाढ़ और भूकंप के कारण ट्रांसमिशन लाइनों और सबस्टेशनों को बार-बार क्षति पहुंचती है। दुर्गम क्षेत्रों में मरम्मत और पुनर्बहाली में अधिक समय और लागत लगती है, जिससे आपूर्ति प्रभावित होती है।

    इसके साथ ही बढ़ती बिजली मांग, औद्योगिक विस्तार और नवीकरणीय ऊर्जा के समावेशन से उच्च क्षमता वाले ट्रांसमिशन नेटवर्क की आवश्यकता बढ़ी है। कई पुराने पारेषण घटकों का तकनीकी उन्नयन और नई लाइनों का निर्माण समयबद्ध स्वीकृतियों व भूमि उपलब्धता जैसी चुनौतियों से प्रभावित होता है।

    पर्यावरण, अनिश्चितता और ग्रिड संतुलन

    राज्य का उत्पादन ढांचा मुख्यतः जलविद्युत पर आधारित है, जो मानसून और जल उपलब्धता पर निर्भर करता है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा पैटर्न में बदलाव से उत्पादन में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रहती है।

    बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को पर्यावरणीय स्वीकृति, जनसुनवाई और सामाजिक सहमति जैसी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, जिससे परियोजनाओं में देरी और लागत वृद्धि होती है।

    वहीं, सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों की हिस्सेदारी बढ़ने से ग्रिड स्थिरता एक नई चुनौती बनकर उभरी है। उत्पादन की अनिश्चितता को संतुलित करने के लिए बैटरी ऊर्जा भंडारण और उन्नत ग्रिड प्रबंधन तकनीकों की आवश्यकता लगातार बढ़ रही है।

    दुर्गम आपूर्ति, वित्तीय दबाव और तकनीकी परिवर्तन

    वितरण क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती दूरस्थ और सीमावर्ती क्षेत्रों तक 24×7 बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना है। कम उपभोक्ता घनत्व के कारण इन क्षेत्रों में वितरण लागत अधिक रहती है। इसके अलावा तकनीकी एवं व्यावसायिक हानियां, सब्सिडी का भार और भुगतान चक्र में देरी से वितरण कंपनियों पर वित्तीय दबाव बना रहता है।

    स्मार्ट मीटरिंग, डिजिटल बिलिंग, एआई आधारित निगरानी और स्मार्ट ग्रिड जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाने के लिए कुशल मानव संसाधन और सतत प्रशिक्षण की आवश्यकता भी एक प्रमुख चुनौती है। आपदा के समय त्वरित फाल्ट रेस्टोरेशन और आपूर्ति बहाली को बनाए रखना भी वितरण प्रणाली की बड़ी परीक्षा होती है।

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