Move to Jagran APP

हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाली कीड़ाजड़ी उगी दून की दिव्या की लैब में

समुद्रतल से 11500 फुट से अधिक ऊंचाई पर हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाली कीड़ा जड़ी (यारसागुंबा) अब देहरादून में भी पनप रही है। चौंकिये नहीं, यह सोलह आने सच है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 13 Jul 2017 08:35 PM (IST)Updated: Fri, 14 Jul 2017 08:36 PM (IST)
हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाली कीड़ाजड़ी उगी दून की दिव्या की लैब में
हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाली कीड़ाजड़ी उगी दून की दिव्या की लैब में

देहरादून, [अंकुर त्यागी]: समुद्रतल से 11500 फुट से अधिक ऊंचाई पर हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाली कीड़ा जड़ी (यारसागुंबा) अब देहरादून में भी पनप रही है। चौंकिये नहीं, यह सोलह आने सच है और ये संभव हो पाया है 'मशरूम लेडी' के नाम से मशहूर दिव्या रावत की मोथरोवाला स्थित लैब में। 

loksabha election banner

थाइलैंड में प्रशिक्षण लेने के बाद जून में उन्होंने यहां भी इसे उगाने की पहल की और आज यह तीन सेमी तक उग चुकी है। संभवत: देश की यह पहली लैब है, जिसमें कीड़ाजड़ी पैदा हो रही है। यद्यपि, रूप-रंग में हिमालय में पाई जाने वाली कीड़ाजड़ी से यह कुछ अलग है, लेकिन विश्वभर में इसकी खासी मांग है। इसे देखते हुए दिव्या का लक्ष्य इसका व्यावसायिक उत्पादन कर देश-विदेश में बिक्री करने का है। 

 नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित दिव्या रावत ने अपनी लैब में जो कीड़ाजड़ी उगाई है वह कॉर्डिसेप्स मिलिट्रिस है, जबकि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली कॉर्डिसेप्स साइनेंसिस है। दिव्या बताती हैं कि इसी वर्ष अपै्रल में वह ट्रेनिंग के लिए थाईलैंड गई। इस दरम्यान देखा कि कॉर्डिसेप्स मिलिट्रिस का वहां बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है। इसकी खासियत व मांग समेत सभी पहलुओं का अध्ययन किया और देहरादून लौटकर मोथरोवाला में लैब तैयार की।

बकौल दिव्या-'टिश्यू कल्चर मैं थाईलैंड से लाई थी और फिर लैब में इसका स्पॉन तैयार किया, जो तरल होता है। जून में 500 डिब्बों में निर्धारित प्रक्रिया के तहत 18 से 22 डिग्री सेल्सियस तापमान में इसे उगने के लिए लैब में रखा गया। 

अगले दो हफ्ते में यह पूरी तरह तैयार हो जाएगी।' दिव्या के मुताबिक हो सकता है कि किसी वैज्ञानिक ने अनुसंधान के लिए कीड़ाजड़ी को उगाया हो, पर व्यावसायिक उत्पादन की यह पहली लैब है। उन्होंने बताया कि अभी तक सबसे ज्यादा कॉर्डिसेप्स मिलिट्रिस का ही कृत्रिम उत्पादन हो रहा है। 

680 प्रजाति हैं कीड़ाजड़ी की 

कीड़ाजड़ी की विश्व में 680 प्रजातियां हैं। दिव्या के अनुसार कॉर्डिसेप्स मिलिट्रिस का थाईलैंड के साथ वियतमान, चीन, कोरिया आदि देशों में ज्यादा उत्पादन होता है। इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी मांग है। इससे पाउडर और कैप्सूल के साथ चाय भी तैयार की जाती है। बाजार में इसके दाम दो लाख रुपये प्रति किलो है। वह बताती हैं कि उनका लक्ष्य लैब से सालाना छह करोड़ रुपये की कीड़ाजड़ी का उत्पादन है। साल में दो से तीन बार इसका उत्पादन हो सकता है। भारत की गई दवा कंपनियों ने उनसे संपर्क साधा है। 

करामाती कीड़ाजड़ी

-शक्ति बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल होता है। कई देशों में एथलीट इसका प्रयोग करते हैं। 

-फेफड़ों और किड़नी के उपचार के लिए जीवन रक्षक दवाएं भी तैयार होती है।

-कीड़ाजड़ी का इस्तेमाल शक्तिवर्द्धक दवा तैयार करने में होता है। 

यह है अंतर

कॉर्डिसेप्स साइनेंसिस

-लंबाई चार से 10 सेमी

-ताजा होने पर पीला होता है रंग

-बाद में गहरे भूरे या काले रंग की

कॉर्डिसेप्स मिलिट्रिस

-दो से आठ सेमी लंबी, पांच सेमी चौड़ी 

-रंग नारंगी और ऊपरी हिस्सा फंसीदार

महिलाओं के लिए रोल मॉडल

मशरूम लेडी के नाम से मशहूर दिव्या रावत ने चार साल पहले मोथरोवाला में मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में कदम रखा। वह अब तक कई महिलाओं को इस व्यवसाय से जोड़ चुकी हैं। उनकी इस पहल के लिए मार्च में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से उन्हें 'नारी शक्ति पुरस्कार' दिया, जिसे उन्होंने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों ग्रहण किया था।

यह भी पढ़ें: विज्ञान की पढ़ाई चौपट देख डीएम की पत्नी बनी शिक्षक

यह भी पढ़ें: इस छात्रा के प्रयास से अब बदल जाएगी गांवों की सूरत


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.