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World Theatre Day: वरिष्ठजनों के सहयोग से रंगमंच की जोत जला रहे युवा, जानें- क्या है उनका कहना

World Theatre Day रंगमंच का अपना अलग ही मजा है। ये दर्शकों को जहां एक ओर बांधे रखता है। वहीं दूसरी ओर घटना के सजीव चित्रण से समाज को जागने का भी काम करता है। इसलिए आज भी रंगमंच का बड़ा दर्शक वर्ग है।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sat, 27 Mar 2021 12:19 PM (IST)Updated: Sat, 27 Mar 2021 12:19 PM (IST)
World Theatre Day: वरिष्ठजनों के सहयोग से रंगमंच की जोत जला रहे युवा, जानें- क्या है उनका कहना
World Theatre Day: वरिष्ठजनों के सहयोग से रंगमंच की जोत जला रहे युवा।

जागरण संवाददाता, देहरादून। World Theatre Day रंगमंच का अपना अलग ही मजा है। ये दर्शकों को जहां एक ओर बांधे रखता है। वहीं, दूसरी ओर घटना के सजीव चित्रण से समाज को जागने का भी काम करता है। इसलिए आज भी रंगमंच का बड़ा दर्शक वर्ग है। इससे युवा कलाकारों का हौसला बढ़ता है, साथ ही उन्हें कुछ नया करने की भी प्रेरणा मिलती है। देहरादून में वरिष्ठजनों का अनुभव और युवाओं की ऊर्जा रंगमंच की जोत जलाए हुए हैं। इन्हीं में से एकलव्य, संभव और दूनघाटी रंगमंच से जुड़े कलाकार आज भी इस विधा को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। 

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रंगमंच से जुड़े कलाकारों का कहना है कि शौक के बूते रंगमंच जिंदा नहीं रह सकता। ऐसे में इसे रोजगारपरक बनाया जाना चाहिए। कलाकारों को अब सरकार व संस्था की ओर से नुक्कड़ नाटक करने का मौका मिल रहा है। उन्हें रोजगार मिलना परिवर्तन के रूप में देखने को मिल रहा है। एकलव्य, संभव और दूनघाटी रंगमंच से जुड़े कलाकार देहरादून ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में जाकर प्रस्तुति दे रहे हैं। उनका कहना है कि दर्शकों को लगातार बांधें रखना प्राथमिकता रहती है, ऐसे में अधिकाधिक शहरों में मंचन किए जा रहे हैं। 

इनका कहना है

दून घाटी रंगमंच के डायरेक्टर बृजेश नारायण का कहना है कि रंगमंच में बदलाव की बात करें तो पहले नाटकों में वेशभूषा व सेट तैयार करने पर भी ज्यादा ध्यान दिया जाता था, लेकिन आज का युवा इन पर खर्च कम करता है और पूरा फोकस नाटक को बेहतर ढंग से मंचन कर सकारात्मक संदेश देने का प्रयास करता है। इससे रंगमंच दुनिया में सुखद परिवर्तन आया है। चिंता की बात यह है कि मंचन के लिए अधिकांश युवा नई स्क्रिप्ट तैयार नहीं करते। यदि इस ओर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो नए नाटकों के मंचन से दर्शकों को अधिक आकर्षित किया जा सकता है। 

संभव थियेटर के संस्थापक अध्यक्ष अभिषेक मैंदोला कहते हैं कि लॉकडाउन में भी रंगमंच के कलाकारों ने समय का सदुपयोग किया। जब बाहर सब कुछ बंद था तो उस समय कलाकारों ने घर पर ही रहकर खुद को तरासा। साथ ही कई युवाओं को गीत, नाटक व उनके हावभाव को लेकर सुबह व शाम निश्शुल्क प्रशिक्षण दिया। इसके अलावा कई संदेशपरक फिल्में बनाई और दर्शकों को विभिन्न सामाजिक विषयों के प्रति इंटरनेट मीडिया के जरिये जागरूक भी किया। 

एकलव्य थियेटर के डायरेक्टर अखिलेश नारायण का कहना है कि रंगमंच के लिए विशेष योगदान देने वाले दिग्गज कलाकारों के साथ ही उभरते हुए कलाकारों को सम्मानित किया जा रहा है, जिससे कलाकारों को उत्साह बढ़ रहा है और वह इसमें नए प्रयोग कर रहे हैं। इंटरनेट मीडिया, सिनेमा, फिल्में होने के बाद भी थियेटर के कलाकारों के सामने चुनौती जरूर हैं, लेकिन इसके बाद भी वह अपनी लगन और मेहनत से दर्शकों को थियेटर के जरिये लगातार बांधे हुए है।

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