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World Rose Day 2020: वर्ल्ड रोज डे पर मिलिए कुछ ऐसे लोगों से, जिनके बुलंद हौसले ने दी कैंसर को मात

कैंसर होने के बाद आम आदमी यही महसूस करता है कि मानो अब जिंदगी खत्म हो गई लेकिन ऐसा नहीं है। अगर हौसले बुलंद हों और मन में जज्बा हो तो इसे हराकर जंग जीती जा सकती है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 05:24 PM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2020 05:24 PM (IST)
World Rose Day 2020: वर्ल्ड रोज डे पर मिलिए कुछ ऐसे लोगों से, जिनके बुलंद हौसले ने दी कैंसर को मात
इनके बुलंद हौसले ने दी कैंसर को मात।

देहरादून, जेएनएन। World Rose Day 2020 इंसान बीमारी से एक बार, लेकिन इसके खौफ से हर रोज मरता है। कैंसर भी ऐसी ही बीमारी है। यह बीमारी होने के बाद आम आदमी यही महसूस करता है कि मानो अब जिंदगी खत्म हो गई, लेकिन ऐसा नहीं है। अगर हौंसले बुलंद हों और मन में जज्बा हो तो इसे हराया जा सकता है। वर्ल्ड रोज डे पर हम आपको ऐसे ही कुछ लोग से रूबरू कराने जा रहे हैं।

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कैंसर को मात देकर वापस काम पर लौटे

मर्ज कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसे हराने की ठान ली जाए तो सफलता जरूर मिलती है। गढ़वाल मंडल के अपर आयुक्त भी कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को मात देकर काम पर लौट आए हैं। अपर आयुक्त हरक सिंह रावत पिछले साल 23 अगस्त को कैंसर का इलाज कराने के लिए एम्स, नई दिल्ली में भर्ती हुए थे। उनकी आंत में कैंसर था और यह बीमारी दूसरे चरण में पहुंच चुकी थी। इससे पहले कि वह आंत के कैंसर को मात देते शरीर के अन्य हिस्से में भी कैंसर हो गया।

इसके बाद उन्हें टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, मुंबई में भर्ती कराया गया। कुछ समय बाद तीसरी जगह कैंसर पाया गया तो वह नानावती हॉस्पिटल, मुंबई में भर्ती हुए। लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार उन्होंने कैंसर से जंग जीत ली। वह बताते हैं कि कैंसर होने से पहले ही गिलोय, हल्दी, एलोवेरा आदि का सेवन करते रहे हैं। उनका मानना है कि इसके चलते ही वह कैंसर को मात दे पाए। उन्होंने कहा कि कैंसर को लेकर वह कभी हताश नहीं हुए, हमेशा सकारात्मक सोचते रहे।

कैंसर से जूझकर बने बेजुबानों के मसीहा

वन विभाग की रेस्क्यू टीम के हेड रवि जोशी कैंसर से जंग जीत औरों के लिए भी मिसाल बन गए हैं। वह कभी सांप, कभी बंदर, कभी गुलदार तो कभी मुसीबत में फंसे परिंदों को रेस्क्यू कर वापस उनकी दुनिया में भेजने की जद्दोजहद में जुटे रहते हैं। रवि ने कभी पान, तंबाकू, गुटखा आदि नहीं खाया, लेकिन फिर भी उन्हें मुंह का कैंसर हो गया। एक बार सर्जरी से कैंसर ठीक हो गया था, लेकिन कुछ माह में फिर पनप गया। मगर उन्होंने हार नहीं मानी और दोबारा सर्जरी करवाई। अब वह धीरे-धीरे इस दर्द से उबर चुके हैं। कैंसर के बाद भी रवि खुलकर जीए और अपने काम के साथ कभी समझौता नहीं किया। उन्हें बेजुबान जानवरों से इतना लगाव है कि दिन हो या रात उनकी मदद के लिए पहुंच जाते हैं। दून ही नहीं आसपास के इलाके में भी लोग रवि को सांप पकडऩे वाले भैया के नाम से जानते हैं।

कोर्ट में लड़ने वाली अंजना कैंसर से भी लड़ीं

अंजना साहनी आज उस जिंदादिली का नाम बन चुकी हैं, जिन्होंने खुद तो कैंसर से जंग जीती ही साथ ही कैंसर से जूझने वालों के लिए भी हौसला बन रही हैं। अंजना पेशे से वकील हैं। कोर्ट में कई मुकदमे उन्होंने जीते, लेकिन ब्रेस्ट कैंसर से जंग ने उन्हें सच्चा लड़ाका साबित किया। दून स्थित शांति विहार (गोविंदगढ़) निवासी अंजना बताती हैं कि वह पांच दिसंबर 2009 का दिन था, जब उन्हें ब्रेस्ट में गांठ और दर्द महसूस हुआ। डॉ. अशोक लूथरा से चेकअप कराया और उन्होंने अल्ट्रासाउंड किया। रिपोर्ट आने के बाद डॉक्टर ने यूटेरस की बायोप्सी समेत कुछ और टेस्ट कराए। 

टेस्ट में कैंसर का नाम सुनकर लगा सब खत्म हो गया। उन्हें लेवल-2 ब्रेस्ट कैंसर था। कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या किया जाए, लेकिन उन्होंने खुद को समझाया कि बीमारी शरीर में है, इसे दिमाग में नहीं चढ़ने देना है। डॉक्टर से पूछा, अब क्या किया जा सकता है तो उन्होंने कीमोथेरेपी की सलाह दी। हर 21वें दिन इस थेरेपी के लिए जाना पड़ता था और यह इतना पीड़ादायक था कि सामान्य होने में 10 दिन लग जाते थे। उनका खाना-पीना बदल गया, दवाओं ने चिड़चिड़ा बना दिया, वजन भी बेहद कम हो गया। फिर भी उन्होंने जीने की चाह नहीं छोड़ी। छह कीमोथेरेपी के बाद एक महीने रेडियोथेरेपी हुई। आखिरकार अंजना ने ब्रेस्ट कैंसर से जंग जीत चुकी है।

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क्यों मनाया जा सकता है वर्ल्ड रोज डे

22 सितंबर, वर्ल्ड रोज डे के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस को कैंसर पीड़ितों के मनोबल बढ़ाने और उनके अंदर फिर से जीने की उम्मीद जगाने की एक छोटी-सी कोशिश के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन गुलाब देकर कैंसर पीड़ित को यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि कैंसर जिंदगी का अंत नहीं है। कैंसर से लड़ा जा सकता है और लड़कर जीत भी हासिल की जा सकती है। यह दिन कनाडा में रहने वाली 12 वर्षीय मेलिन्डा रोज की याद में मनाया जाता है। मेलिन्डा को महज 12 साल की उम्र में ही ब्लड कैंसर हो गया था। डॉक्टरों ने भी कह दिया था कि वह 2 सप्ताह से ज्यादा जी नहीं पाएगी, लेकिन छोटी-सी बच्ची ने हार नहीं मानी और डॉक्टरों को गलत साबित कर दिखाया। मेलिन्डा करीब 6 महीने तक जिंदा रही।

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