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    World pangolin day: पैंगोलिन प्रजाति पर मंडरा रहा है खतरा, घटती जा रही है इनकी संख्या

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Sat, 15 Feb 2020 08:46 PM (IST)

    किसी को नुकसान न पहुंचाने के बावजूद पैंगोलिन की संख्या घटती जा रही है। यह जीव संकटग्रस्त प्रजाति में शामिल है। इसके संरक्षण के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।

    World pangolin day: पैंगोलिन प्रजाति पर मंडरा रहा है खतरा, घटती जा रही है इनकी संख्या

    देहरादून, विजय जोशी। पैंगोलिन यानी सल्लू सांप बेहद सीधा वन्य जीव है। किसी को नुकसान न पहुंचाने के बावजूद पैंगोलिन की संख्या घटती जा रही है। यह जीव संकटग्रस्त प्रजाति में शामिल है। इसके संरक्षण के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन, शिकारियों पर शिकंजा न कसे जाने के कारण पैंगोलिन प्रजाति पर खतरा मंडरा रहा है।

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    गहरे-भूरे, पीले-भूरे या रेतीले रंग का शुंडाकार जीव पैंगोलिन उत्तराखंड में पाया जाता है। शरीर पर शल्क होने के कारण इसे 'वज्रशल्क' नाम से भी जाना जाता है और कीड़े-मकोड़े खाने से इसको 'चींटीखोर' भी कहते हैं। पैंगोलिन प्रजाति का अस्तित्व अब खतरे में है। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने इसे संकटग्रस्त घोषित करते हुए इसके संरक्षण की आवश्यकता बताई है। साथ ही भारतीय वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत पैंगोलिन को सुरक्षा प्रदान की गई है। विभिन्न संस्थाएं लोगों को यह संदेश देने का प्रयास करती रहती हैं कि पैंगोलिन का जैवविविधता में महत्वपूर्ण स्थान है। उत्तराखंड वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान संयुक्त रूप से पैंगोलिन के संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं। उत्तराखंड में पैंगोलिन संभावित क्षेत्रों को चिह्नित किया जा रहा है और उनके अनुकूल वातावरण मुहैया कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। यही नहीं शिकारियों पर भी पैनी नजर रखी जा रही है।

    पैंगोलिन का निवास स्थल

    पैंगोलिन जलीय स्त्रोतों के आसपास जमीन में बिल बनाकर एकाकी जीवन व्यतीत करते हैं। चींटी और दीमक खाने वाला यह जीव किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता।

    पीके पात्रो (निदेशक, राजाजी नेशनल पार्क) का कहना है कि पैंगोलिन एक संकटग्रस्त प्रजाति है। उत्तराखंड में भी शिकारियों की नजर इन पर रहती है। वन विभाग की ओर से शिकारियों पर नकेल कसने की भरसक कोशिश की जाती है। साथ ही पैंगोलिन के संरक्षण को भी प्रयास जारी हैं।

    अंतरराष्ट्रीय बाजार में तस्करी

    पैंगोलिन के शिकार के कई कारण हैं। कुछ फकीर-तांत्रिक टोना-टोटका के लिए पैंगोलिन का शिकार कर देते हैं। वहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके मांस की खासी डिमांड है। चीन व वियतनाम जैसे कई देशों के होटलों व रेस्तरां में बेधड़क परोसा जाता है। इसके अलावा पैंगोलिन की चमड़ी, शल्क, हड्डियां व अन्य शारीरिक अंगों की भी तस्करी की जाती है। दूसरी ओर चीन व थाईलैंड आदि देशों में इसके शल्कों का उपयोग यौनवर्धक औषधि बनाने में भी किया जाता है।

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    लोगों को किया जाएगा जागरूक

    शनिवार को माटी संस्था, उत्तराखंड जैवविविधता बोर्ड और यूसर्क की ओर से पैंगोलिन दिवस के उपलक्ष्य में विभिन्न स्थानों पर लोगों को जागरूक किया जाएगा। प्रत्येक वर्ष फरवरी के तीसरे शनिवार को विश्व पैंगोलिन दिवस मनाया जाता है। इसी के तहत शनिवार को जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। जैवविविधता बोर्ड के सदस्य सचिव एसएस रसेली और राजाजी नेशनल पार्क के निदेशक पीके पात्रो हरी झंडी दिखाकर जागरूकता अभियान की शुरुआत करेंगे। माटी संस्था के शोधार्थी भी नुक्कड़-नाटक के माध्यम से लोगों को पैंगोलिन संरक्षण के प्रति जागरूक करेंगे।

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