जिस मां को मृत बताया, वह कोर्ट में हुई पेश, दुष्कर्म का आरोपी बरी
एक चौंकाने वाली घटना में, जिस महिला को मृत मान लिया गया था, वह अदालत में पेश हुई, जिससे बलात्कार के आरोपी को रिहा कर दिया गया। महिला की उपस्थिति ने अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर कर दिया। इस अप्रत्याशित मोड़ ने न्याय प्रणाली और गलत पहचान की संभावना पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अदालत ने सबूतों के अभाव में आरोपी को बरी कर दिया।

महिला ने अपने पति पर लगाया था नाबालिग भतीजी के साथ दुष्कर्म का आरोप। सांकेतिक तस्वीर
जागरण संवाददाता, देहरादून। दुष्कर्म जैसे गंभीर मामले में अदालत ने आरोपित को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया। शिकायतकर्ता ने कोर्ट में अपनी सगी भाभी को मृत बताया जबकि बचाव पक्ष ने मां को कोर्ट के समक्ष पेश कर दिया। गांव के प्रधान ने महिला की पहचान पीड़ित की मां के रूप में की। अपर जिला एवं सेशन जज फास्ट ट्रैक कोर्ट (पोक्सो) रजनी शुक्ला की अदालत ने आरोपित को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
एक महिला ने 18 अप्रैल 2020 को डालनवाला कोतवाली में तहरीर दी कि उनकी 10 साल की भतीजी उनके साथ रहती है। 15 अप्रैल को उसके पति ने भतीजी के साथ दुष्कर्म किया। पीड़ित ने जब यह बात आरोपित की मां को बताई तो उन्होंने उसने उसे आरोपित के साथ रसोई में बंद कर दिया।
इस मामले में डालनवाला कोतवाली ने आरोपित के विरुद्ध 18 अप्रैल 2020 को दुष्कर्म, आपराधिक षड़यंत्र व पोक्सो के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया। पांच माह जेल में रहने के बाद आरोपित जमानत पर बाहर आया। पीड़ित ने मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज कराए कि लाकडाउन के दौरान 15 अप्रैल को वह किचन में प्याज व टमाटर काट रही थी।
आरोपित किचन में आया और उसके हाथ पकड़ने के बाद छेड़छाड़ शुरू कर दी। डर के मारे वह चिल्लाई तो आरोपित की मां ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। कुछ देर बाद उसकी बुआ आई तो उसने सारी कहानी उसे बता दी। वहीं पीड़ित की बुआ व शिकायतकर्ता ने बताया कि पीड़ित की मां की मृत्यु हो चुकी है, ऐसे में उनकी भतीजी उनके साथ रहती है।
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आरोपित ने उनकी भतीजी के साथ दुष्कर्म किया। वह घटना के दो घंटे बाद मौके पर पहुंची तो भतीजी रो रही थी। जब उससे रोकने का कारण पूछा तो आरोपित व उसकी मां ने गिरने की बात बताई। अलग ले जाकर जब पीड़ित से बात की गई तो उसने सारी कहानी बता दी। तहरीर उसने एनजीओ चलाने वाली एक महिला को लिखाई थी।
बचाव पक्ष ने कहा कि घटना 15 अप्रैल की है जबकि तहरीर 18 अप्रैल को दी गई। शिकायतकर्ता ने घटना को अपनी आंखों से नहीं देखा। जिस एनओजी संचालिका ने तहरीर लिखी उसे अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में पेश नहीं किया। वहीं पीड़ित की जिस मां को मृत बताया गया, उसे बचाव पक्ष ने कोर्ट में पेश कर दिया।

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