कंट्रोल रूम है नहीं और जीपीएस-पैनिक बटन कर दिए अनिवार्य; कैसे मिलेगी मदद
उत्तराखंड सरकार ने भी प्रदेश में महिला और यात्री सुरक्षा को लेकर वाहनों में जीपीएस और पैनिक बटन लगाना अनिवार्य तो कर दिया। लेकिन इसके लिए कंट्रोल रूम नहीं बनाया गया है।
देहरादून, अंकुर अग्रवाल। केंद्र सरकार के फरमान पर उत्तराखंड सरकार ने भी प्रदेश में महिला और यात्री सुरक्षा को लेकर वाहनों में जीपीएस और पैनिक बटन लगाना अनिवार्य तो कर दिया मगर इसकी 'जमीन' तैयार करना सरकार भूल गई। दरअसल, सार्वजनिक वाहनों में जीपीएस व पैनिक बटन इसलिए लगाए जा रहे हैं, जिससे किसी आपातकाल स्थिति में बटन को दबाने पर अलार्म बज जाए और नजदीकी पुलिस स्टेशन से लेकर एंबुलेंस सेवा व परिजनों को जानकारी मिल जाए।...लेकिन उत्तराखंड में यह महज केंद्र का फरमान मानने का दिखावा साबित हो रहा। हकीकत ये है कि सरकार ने इस तकनीक से मिलने वाली सूचना के लिए अभी तक कंट्रोल रूम ही स्थापित नहीं किया। ऐसी स्थिति में आपात स्थिति में मदद पहुंचाना तो दूर, सूचना आना भी मुनासिब नहीं।
सार्वजनिक वाहनों में महिला यात्रियों के साथ हो रही यौन उत्पीड़न और हिंसा की घटनाओं के मद्देनजर केंद्र ने एक जनवरी 2019 से पंजीकृत सभी सार्वजनिक वाहनों में जीपीएस के साथ इमरजेंसी बटन लगाना अनिवार्य कर दिया है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से नोटिफिकेशन जारी कर सभी वाहन निर्माताओं को इसका अनुपालन करने के आदेश दिए गए। इसमें ऑटोरिक्शा और ई-रिक्शा को रियायत दी गई है।
नोटिफिकेशन में राज्यों को आदेश दिए गए थे कि जिस सार्वजनिक वाहनों में जीपीएस की तरह व्हीकल लोकेशन ट्रैकिंग (वीएलटी) व इमरजेंसी बटन न लगा हो, उसे फिटनेस प्रमाण-पत्र न दिया जाए। इस दौरान राज्य सरकारों को निर्देश दिए गए थे कि वे वीएलटी निर्माता के साथ संयुक्त रूप से कंमाड और कंट्रोल सेंटर स्थापित करें। साथ ही, सड़क परिवहन मंत्रालय, परिवहन विभाग एवं स्थानीय परिवहन कार्यालयों के लिए गाइडलाइन जारी की गई कि वे अपने क्षेत्रीय स्तर पर एजेंसी, डिवाइस निर्माता व अधिकृत डीलर की नियुक्ति करें ताकि सभी वाहनों व डिवाइस का स्टेटस सेंट्रल वाहन डेटाबेस को मिल सके। स्थिति यह है कि उत्तराखंड में परिवहन विभाग द्वारा डिवाइस के लिए एजेंसी अधिकृत कर शेष कर्तव्यों से पल्ला झाड़ लिया गया। कंट्रोल रूम के लिए कोई प्रयास ही नहीं किए गए।
अभी चल रही सिर्फ खानापूर्ति
कंट्रोल रूम न बनने से अभी प्रदेश में वाहनों में जीपीएस व पैनिक बटन लगाने की खानापूर्ति चल रही। अभी जो जीपीएस व पैनिक बटन लगाया जा रहा है, कंपनी उसका सॉफ्टवेयर वाहन मालिक-चालक के मोबाइल में अपलोड कर रही। ऐसे में अगर मालिक या चालक खुद अनहोनी के वक्त वाहन में हों तो वे सूचना आगे कैसे फॉरवर्ड कर सकेंगे।
सहायक परिवहन आयुक्त एसके सिंह ने बताया कि एनआइसी के माध्यम से सॉफ्टवेयर सोल्यूशन बनाया जा रहा है। एक माह में परिवहन मुख्यालय में कंट्रोल रूम की स्थापना कर दी जाएगी।
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