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उत्तराखंड में गेहूं उत्पादन राष्ट्रीय औसत का महज 13 फीसद, पढ़िए पूरी खबर

देश में प्रति हेक्टेयर जितना गेहूं पैदा होता है उत्तराखंड के खेतों में उसका महज 13.40 फीसद ही उत्पादन हो पाता है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 22 Sep 2019 04:17 PM (IST)Updated: Sun, 22 Sep 2019 08:50 PM (IST)
उत्तराखंड में गेहूं उत्पादन राष्ट्रीय औसत का महज 13 फीसद, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड में गेहूं उत्पादन राष्ट्रीय औसत का महज 13 फीसद, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड के खेतों की उर्वरा क्षमता चिंताजनक स्थिति में है। देश में प्रति हेक्टेयर जितना गेहूं पैदा होता है, उत्तराखंड के खेतों में उसका महज 13.40 फीसद ही उत्पादन हो पाता है। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के 15वें स्थापना दिवस पर कटाई पूर्व फसल उत्पादन की जानकारी के प्रशिक्षण में गेहूं उत्पादन के आंकड़े प्रस्तुत किए गए। 

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यूसैक के आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में गेहूं की फसल का रकबा 3.58 लाख हेक्टेयर है और इसमें वर्ष 2018-19 में 8.34 लाख मीट्रिक टन गेहूं का उत्पादन किया गया। इस तरह प्रति हेक्टेयर औसतन 429 किलो गेहूं का उत्पादन हुआ। वहीं, राष्ट्रीय औसत की बात करें तो यह आंकड़ा 3200 किलो है। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की बात करें तो वहां भी प्रति हेक्टेयर 3000 किलो गेहूं पैदा हो रहा है। यूसैक के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने बताया कि रिमोट सेंसिंग और जीआइएस के माध्यम से कटाई से पूर्व ही खेतों में खड़ी फसल के उत्पादन का आकलन कर दिया जाता है। यही आंकड़े केंद्र सरकार को भी भेजे जाते हैं। 

प्रदेश में गेहूं उत्पादन की तस्वीर 

जिला, फसल रकबा, उत्पादन 

ऊधमसिंहनगर, 99.67, 3.67 

हरिद्वार,        45.37, 1.34 

देहरादून,       19.34, 58.14 

नैनीताल,       21.71, 65.74 

अल्मोड़ा,      34.69,  38.65 

पिथौरागढ़,    23.97,  24.98 

टिहरी,          22.58,  34.65 

पौड़ी,            22.73,   33.97 

चमोली,        14.22,    16.54 

रुद्रप्रयाग,     10.28,   13.20 

उत्तरकाशी,   13.78,   16.54 

बागेश्वर,       17.65,   15.70 

चंपावत,        12.45,    14.78 

नोट: रकबा हेक्टेयर और उत्पादन मीट्रिक टन में है। 

घटती कृषि भूमि और उत्पादन पर चिंता 

स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए यूैसक निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने पर्वतीय क्षेत्रों में घटती कृषि भूमि व उत्पादन पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि पलायन के चलते खेत बंजर या जंगलों में तब्दील हो रहे हैं। पोषण से भरपूर झंगोरा, मंडवा, कुलथ, तोर आदि की मांग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने के बाद भी इस तरह की पारंपरिक फसलों का रकबा घटता जा रहा है।

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दूसरी तरफ इस अवसर पर आयोजित कार्यशाला में कृषि विभाग के 42 अधिकारियों समेत 50 कार्मिकों को सिखाया गया कि किस तरह कटाई पूर्व फसल उत्पादन का आकलन किया जा सकता है। कार्यक्रम में डॉ. हेमंत कुमार बडोला, आइआइआरएस के विज्ञानी डॉ. अभिषेक डंडोलिया, यूसैक के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रियदर्शी उपाध्याय, डॉ. आशा थपलियाल, डॉ. नीलम रावत, डॉ. गजेंद्र सिंह आदि उपस्थित रहे। 

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