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    ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में 65 करोड़ की लागत से बनेगा जलाशय

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Tue, 12 Jan 2021 03:26 PM (IST)

    ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में अवस्थापना सुविधाएं जुटाने की दिशा में सरकार ने तेजी से कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। इस कड़ी में गैरसैंण में भराड़ीसैंण स्थित विधानसभा परिसर के साथ ही इसके नजदीकी क्षेत्रों में पेयजल की पर्याप्त उपलब्धता के मद्देनजर जलाशय का निर्माण कराया जाएगा।

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    ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में 65 करोड़ की लागत से बनेगा जलाशय।

    राज्य ब्यूरो, देहरादून। ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में अवस्थापना सुविधाएं जुटाने की दिशा में सरकार ने तेजी से कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। इस कड़ी में गैरसैंण में भराड़ीसैंण स्थित विधानसभा परिसर के साथ ही इसके नजदीकी क्षेत्रों में पेयजल की पर्याप्त उपलब्धता के मद्देनजर जलाशय का निर्माण कराया जाएगा। सिंचाई विभाग ने इसकी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कर ली है। 65 करोड़ की इस परियोजना के वित्त पोषण के लिए प्रस्ताव राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) को भेजा जा रहा है।

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    उत्तराखंड आंदोलन की जनभावनाओं का केंद्र रहे गैरसैंण को मौजूदा प्रदेश सरकार ने पिछले वर्ष राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया। इसकी अधिसूचना भी जारी हो चुकी है। अब वहां अवस्थापना सुविधाओं के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इसी कड़ी में पेयजल की उपलब्धता के लिए रामगंगा नदी से पानी अपलिफ्ट कर भराड़ीसैंण (गैरसैंण) में जलाशय का निर्माण प्रस्तावित है। सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता मुकेश मोहन ने बताया कि इसकी डीपीआर तैयार की जा चुकी है। उन्होंने बताया कि जलाशय का निर्माण सिंचाई विभाग करेगा, जबकि पानी को अपलिफ्ट करने संबंधी कार्य पेयजल निगम द्वारा किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि नाबार्ड से धनराशि मंजूर होते ही जलाशय निर्माण का काम शुरू करा दिया जाएगा। इससे भराड़ीसैंण व आसपास के क्षेत्रों को पेयजल मुहैया कराने में प्राथमिकता दी जाएगी। शेष पानी का उपयोग सिंचाई सुविधा के लिए किया जाएगा।

    चार अन्य जलाशयों की भी कसरत

    सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता के मुताबिक राज्य में विभिन्न स्थानों पर चार अन्य जलाशयों के निर्माण के लिए भी कवायद चल रही है। इनमें खैरासैंण (सतपुली), धरकोट (रानीखेत), कोलीडेक (पिथौरागढ़) व गगास (अल्मोड़ा) शामिल हैं। इन जलाशयों का उपयोग भी संबंधित क्षेत्रों में सिंचाई व पेयजल के लिए किया जाएगा।

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