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अब पता चल सकेगा उत्तराखंड की पर्यावरणीय सेवाओं का मोल

71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड के जंगल कितने रुपये मूल्य की पर्यावरणीय सेवाएं दे रहे हैं, सूबा अब यह बता पाने में सक्षम होगा। इसके लिए वैज्ञानिक अध्ययन में जुट गए हैं।

By BhanuEdited By: Published: Mon, 17 Apr 2017 10:10 AM (IST)Updated: Tue, 18 Apr 2017 06:00 AM (IST)
अब पता चल सकेगा उत्तराखंड की पर्यावरणीय सेवाओं का मोल
अब पता चल सकेगा उत्तराखंड की पर्यावरणीय सेवाओं का मोल

देहरादून, [केदार दत्त]: 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड के जंगल कितने रुपये मूल्य की पर्यावरणीय सेवाएं दे रहे हैं, सूबा अब यह बता पाने में सक्षम होगा। भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (आइआइएफएम) भोपाल इस सिलसिले में अध्ययन में जुटा है। इसमें उत्तराखंड का वन महकमा और अर्थ एवं सांख्यिकी विभाग उसकी मदद कर रहे हैं। यह अध्ययन अब अंतिम चरण में है और वनों की पर्यावरणीय सेवाओं का मोल जल्द ही सामने आ जाएगा।

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प्रदेश सरकार अक्सर इस बात का खम ठोकती आई है कि मध्य हिमालयी क्षेत्र में स्थित उत्तराखंड देश को अमूल्य पर्यावरणीय सेवाएं दे रहा है। लेकिन, अभी तक इन सेवाओं की वास्तविक कीमत कितनी है, इसे लेकर स्थिति साफ नहीं थी। 

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों और संस्थाओं की ओर से कराए गए अध्ययन के आधार पर इन्हें 107 करोड़ रुपये के करीब अवश्य आंका गया था। अब इसे लेकर संशय नहीं रहेगा, क्योंकि सरकारी स्तर पर पहली बार राज्य के वनों से मिलने वाली पर्यावरणीय सेवाओं का आकलन कराया जा रहा है।

प्रमुख वन संरक्षक जय राज के मुताबिक पर्यावरणीय सेवाओं के आकलन का जिम्मा आइआइएफएम भोपाल को सौंपा गया है। उन्होंने बताया कि टीम लीडर डॉ. मधु वर्मा की अगुआई में आइआइएफएम की टीम इस अध्ययन में जुटी है। अब जल्द ही यह साफ हो जाएगा कि उत्तराखंड के जंगल, हवा, मिट्टी, पानी, चारा, लकड़ी आदि के मामले में कितनी लागत की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सेवाएं दे रहे हैं। इससे पर्यावरणीय सेवाओं के संबंध में नीति बनाने में मदद मिलेगी।

तैयार हो रहा जीईपी का सूचकांक

उत्तराखंड में जून 2013 में आई भीषण आपदा से सबक लेते हुए सूबे का सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) का सूचकांक भी आइआइएफएम तैयार कर रहा है। प्रमुख वन संरक्षक जयराज के मुताबिक राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तर्ज पर जीईपी भी तैयार किया जा रहा है। इसके तहत जंगल, नदी, ग्लेशियर, हवा, मिट्टी, पानी का भी हिसाब रखा जाएगा। यह पर्यावरण विकास के बीच संतुलन को बताएगा। ऐसी पहल भी पहली बार की जा रही है।

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