पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड के गांवों में लौटेगी रंगत, फिर से होंगे आबाद
पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड के गांवों में न सिर्फ रंगत लौटेगी बल्कि इनके आबाद होने की उम्मीद जगी है। वापस लौट रहे प्रवासियों का उत्साह तो इसी तरफ इशारा कर रहा है।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड के गांवों में न सिर्फ रंगत लौटेगी, बल्कि इनके आबाद होने की उम्मीद जगी है। भले ही परिस्थितियां विषम हों, मगर अपनी जड़ों की ओर वापस लौट रहे प्रवासियों का उत्साह तो इसी तरफ इशारा कर रहा है। लॉकडाउन होने पर करीब 60 हजार लोग पहले अपने गांव लौट चुके थे, जबकि अब वापसी का रास्ता खुला है तो 1.25 लाख प्रवासियों ने वापसी के लिए पंजीकरण कराया है। प्रवासियों की यह वापसी सुखद अहसास करा रही है, लेकिन इसके साथ ही चुनौतियां भी कम नहीं हैं। यदि इनके कदम गांवों में ही थमे रहते हैं तो उनके आर्थिक पुनर्वास की दिशा में बेहद गंभीरता से कदम उठाने की दरकार है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि उत्तराखंड में पलायन एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया। मूलभूत सुविधाओं व रोजगार के साधनों के अभाव चलते बेहतर भविष्य की आस में पहाड़ के गांवों से पलायन का जो सिलसिला उत्तर प्रदेश के दौर से शुरू हुआ था, वह उत्तराखंड बनने के बाद भी बदस्तूर चलता रहा। आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। पलायन आयोग की रिपोर्ट ही बताती है कि राज्य गठन के बाद से अब तक प्रदेश में 1702 गांव पूरी तरह जनविहीन हो चुके हैं।
वर्ष 2011 के बाद से 3.38 लाख लोगों ने राज्य से पलायन किया। सैकड़ों गांवों में आबादी उंगलियों में गिनने लायक है। हालांकि बाद में रिवर्स पलायन भी हुआ और कई लोगों ने पहाड़ लौटकर तरक्की की इबारत लिख डाली, मगर इनकी संख्या बहुत अधिक नहीं है।
अब जबकि कोरोना महामारी के बाद परिस्थितियां बदली हैं तो बड़ी संख्या में प्रवासियों ने अपने गांवों की ओर रुख किया। पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन होने पर राज्य के 10 पर्वतीय जिलों में करीब 60 हजार लोग अपने गांव लौटे। इससे गांवों में बंद घरों के दरवाजे फिर से खुले तो वहां चूल्हा भी जल रहा है।
अब केंद्र सरकार ने दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासियों की वापसी को छूट दी है तो उत्तराखंड के 1.25 लाख लोगों ने गांव वापसी के लिए पंजीकरण कराया है और इनकी वापसी का क्रम भी शुरू हो गया है। जाहिर है कि आने वाले दिनों में गांवों की रंगत निखरेगी। यह सुखद अहसास कराता है, मगर चुनौतियां भी कम नहीं हैं। पलायन आयोग के उपाध्यक्ष डा.एसएस नेगी भी इससे इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं कि प्रवासियों की वापसी अच्छा संकेत है, लेकिन उनके लिए इसी हिसाब से व्यवस्थाएं भी बनानी होंगी।
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डॉ.नेगी के अनुसार आयोग पहले ही सुझाव दे चुका है कि प्रवासियों के आॢथक पुनर्वास को विशेष अभियान चलाया जाना आवश्यक है। यह भी कदम उठाने होंगे कि जितने भी प्रवासी लौटे हैं, उनमें से एक-एक से संपर्क किया जाए कि वे गांव में रहकर क्या कार्य करने के इच्छुक हैं। संपर्क के लिए विकासखंड स्तर से व्यवस्था करना समय की मांग है। बैंकों से समन्वय कर प्रवासियों को उनकी इच्छानुसार कार्य करने के लिए ऋण की सुविधा दिलानी आवश्यक है। वह कहते हैं कि प्रवासी अनुभवी हैं और वे कुछ न कुछ अनुभव लेकर दूसरे राज्यों से लौटे हैं। लिहाजा, इसका भी लाभ उठाया जाना चाहिए।
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