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गजब: अनुबंधित बसों में नई तकनीक, सरकारी में पुरानी; पढ़िए पूरी खबर

परिवहन निगम ने अपने लिए टाटा कंपनी से गुणवत्ता व तकनीक से समझौता कर पुराने मॉडल के गियर लीवर वाली 150 बसें खरीद लीं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 28 Nov 2019 06:35 PM (IST)Updated: Thu, 28 Nov 2019 08:44 PM (IST)
गजब: अनुबंधित बसों में नई तकनीक, सरकारी में पुरानी; पढ़िए पूरी खबर
गजब: अनुबंधित बसों में नई तकनीक, सरकारी में पुरानी; पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। उत्तराखंड परिवहन निगम के कहने ही क्या। यहां निजी ऑपरेटरों के लिए अलग मानक हैं, जबकि अपने लिए अलग। बात नई बसों की है। परिवहन निगम ने अपने लिए टाटा कंपनी से गुणवत्ता व तकनीक से समझौता कर पुराने मॉडल के गियर लीवर वाली 150 बसें खरीद लीं, जबकि निगम ने हाल ही में जो 75 बसें अनुबंध पर लगाई हैं, वे सभी आधुनिक तकनीक से लैस हैं। इनमें नए मॉडल के छोटे गियर लीवर हैं व सीटें भी सरकारी बस से आरामदायक हैं। सरकारी बसों की सीटें सीधी हैं, जबकि जो बसें अनुबंध पर ली गई हैं उनमें सीटें यात्री की पीठ को ध्यान में रखकर पीछे की तरफ झुकी हुई हैं। हैरानी वाली बात यह है कि अनुबंधित बसों की निर्माता भी टाटा कंपनी ही है।

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पिछले तीन साल में लगातार दूसरी बार ऐसा हुआ है, जब परिवहन निगम के लिए खरीदी गई नई बसों पर सवाल उठ रहे हों। दरअसल, वर्ष 2016 में कांग्रेस शासनकाल में रोडवेज ने 383 नई बसें खरीदी थीं। बाद में खुलासा हुआ कि ये सभी बसें यूरो-तीन श्रेणी की थी, जिन पर केंद्र सरकार की रोक लगी हुई थी। इसके बाद परिवहन निगम ने बीते दिनों दोबारा 300 नई बसों की खरीद प्रक्रिया शुरू की।

इसमें 150 छोटी बसों को पर्वतीय मार्गों पर संचालित करने को लेकर टाटा कंपनी को आर्डर दिया गया और शेष 150 बड़ी बसों का आर्डर अशोका लेलैंड कंपनी को दिया गया। टाटा कंपनी से 150 बसें अक्टूबर के तीसरे हफ्ते में मिल चुकी हैं, जबकि अशोका लेलैंड की बसें मिलनी बाकी हैं। नई बसें यूरो-चार श्रेणी की तो हैं लेकिन इनमें ओल्ड मॉडल के गियर लीवर लगे हैं। लंबी रॉड वाले इन गियर लीवर की गुणवत्ता इतनी खराब रही कि बसों में यह शुरू में ही जड़ से टूट गए। गियर फंसने की शिकायतें भी काफी ज्यादा हैं। इस वजह से पर्वतीय मार्गों पर चालकों को बस संचालन में परेशानी हो रही। लीवर टूटने के खतरे से चालक नई बसों को ले जाने से इन्कार कर रहे। एक बस की कीमत लगभग 25 लाख रुपये बताई जा रही।

लीवर के अलावा इंजन में भी फॉल्ट

रोडवेज के अफसरों के मुताबिक बसों के गियर लीवर में वेल्डिंग स्तर से टूटने की शिकायत मिली है। कंपनी द्वारा उन बसों के लीवर बदले गए थे, जिनमें शिकायत आई थी, लेकिन इसी दौरान बसों में दूसरे फॉल्ट भी सामने आने लगे। गियर लीवर के बाद अब इनके इंजन में भी परेशानी आने लगी। जोशीमठ जा रही बस व रुद्रप्रयाग जा रही बस में इंजन की परेशानी के मामले सामने आए तो हल्द्वानी की बस में एक सवारी के ऊपर खिड़की आ गिरी थी। रोडवेज कर्मियों की मानें तो बसों की बॉडी से भी समझौता किया गया है।

अभी फंसी हुई है कंपनी

गियर लीवर टूटने की शिकायतों के बाद निगम ने टाटा कंपनी के 37 करोड़ रुपये के भुगतान पर रोक लगा दी थी। नई बसों की एवज में टाटा कंपनी को एक भी रुपये का भुगतान नहीं किया गया है। ऊपर से कंपनी की पांच करोड़ रुपये की सुरक्षा राशि भी रोडवेज के पास जमा है।

जांच के लिए हिमाचल जाएंगे अफसर

निगम अफसरों ने बताया कि टाटा कंपनी ने दावा किया है कि उसने इसी मॉडल की बसें हिमाचल परिवहन को भी डिलीवर की हैं। अब उत्तराखंड परिवहन निगम के आला अधिकारी हिमाचल जाकर बसों के रिजल्ट का परीक्षण करेंगे। उत्तराखंड और हिमाचल को मिली बसों की तकनीकी व गुणवत्ता की तुलनात्मक जांच भी की जाएगी।

बोले अधिकारी

रणवीर चौहान (प्रबंध निदेशक उत्तराखंड परिवहन निगम) का कहना है कि निगम की ओर से 300 बसों की खरीद प्रक्रिया मेरे कार्यकाल से पहले ही पूरी कर ली गई थी। मेरे आने के बाद केवल बसों की डिलीवरी होनी बाकी थी। नई बसों में ओल्ड मॉडल के गियर लीवर क्यों लगाए गए, यह गंभीर बात है। एआरआइ पुणे से ये बसें पास कराई गई थी या नहीं, इसका परीक्षण कराया जा रहा है। तकनीकी जांच थर्ड पार्टी से कराई जाएगी। गियर लीवर के टूटने से हादसों की आशंका को देखते हुए बसों का संचालन रोक दिया गया है।

बसों के प्रदूषण पर चालान मामले में कोर्ट जाएगा रोडवेज

दिल्ली में प्रदूषण को लेकर उत्तराखंड रोडवेज की दो बसों के एक-एक लाख रुपये के चालान व बसों के सीज करने के मामले में रोडवेज ने अदालत में जाने की तैयारी कर ली है। उक्त दोनों बसों में वैध प्रदूषण प्रमाण पत्र होने के बाद भी बसों को सीज करने का आरोप है। महाप्रबंधक दीपक जैन ने बताया कि नियम तोड़ने पर केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित जुर्माना है, इसके बावजूद एक लाख रुपये जुर्माना लगाना न्यायसंगत नहीं है।

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की ओर से इन बसों को सीज किया गया है। बताया जा रहा कि पुलिस के साथ इसी कमेटी ने बसों को प्रदूषण फैलाने के आरोप में सीज किया। परिवहन निगम के लिए दिल्ली रूट सबसे फायदे का रूट माना जाता है। प्रदेश के सभी डिपो से रोजाना लगभग 550 बसें दिल्ली लौट-फेर करती हैं। इनमें पुरानी और आयु सीमा पूरी कर चुकी बसों को भी लंब रूटों पर दौड़ाया जा रहा।

यही वजह है कि ये बसें प्रदूषण फैलाने में भी पीछे नहीं हैं। इन्हीं में एक रुद्रपुर डिपो की साधारण बस (यूके07पीए-1488) का प्रदूषण फैलाने के आरोप में सोमवार को आनंद विहार में एक लाख का चालान हुआ। इससे दो दिन पूर्व शनिवार को भी ऋषिकेश डिपो की साधारण बस (यूके07पीए-1952) का भी प्रदूषण के मामले में एक लाख का चालान कर उसे सीज किया गया था। 

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दो बसों के सीज होने व एक-एक लाख का जुर्माना होने के बाद रोडवेज में खलबली मची हुई। निगम द्वारा कराई जांच में पाया गया कि दोनों बसों में वैध प्रदूषण जांच प्रमाण पत्र थे। रोडवेज के डीजीएम सीपी कपूर ने मामले में बुधवार को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी के समक्ष पेश होकर पक्ष रखा। वहां से कोई राहत न मिलने पर अब रोडवेज ने अदालत में जाने की तैयारी कर ली है।

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दिल्ली रूट पर नया ढाबा अनुबंधित

निगम ने देहरादून-दिल्ली रूट पर खतौली में बसों के ठहराव के लिए नया अनुबंधित ढाबा तय कर दिया है। बताया गया कि इस बार टेंडर में तीन आवेदन आए थे। जिनकी जांच के बाद खतौली के दीपमाला ढाबे का अनुबंध किया गया है। यहां देहरादून के ग्रामीण व पर्वतीय डिपो और रुड़की डिपो की साधारण बसें दिल्ली जाते हुए ठहराव करेंगी।

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