ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे पर 2 पहाड़ों के बीच आई दरार, चारधाम यात्रा से पहले होगी मरम्मत?
ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे पर तोता घाटी में सड़क से सौ मीटर ऊपर पहाड़ में दरार आने से यह दो हिस्सों में बंट गया है। टीएचडीसी एक सप्ताह में सर्वे कराएगा। चार ...और पढ़ें

दीपक सेमवाल, ऋषिकेश। ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे पर तोता घाटी में सड़क से सौ मीटर ऊपर पहाड़ में दरार आने से यह दो हिस्सों में बंट गया है। यह दरार 60 सेंटीमीटर चौड़ी और करीब 26 मीटर गहरी है। टीएचडीसी इस दरार का एक सप्ताह में सर्वे कराएगा। उसके 15 दिन बाद रिपोर्ट केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय को भेजी जाएगी। अगले साल मई-जून में होने वाली चारधाम यात्रा से पहले काम पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
केंद्र सरकार ने दिसंबर 2016 में आल वेदर रोड परियोजना शुरू की थी। इस परियोजना में ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे का चौड़ीकरण किया गया। हाईवे को चौड़ा करने के लिए पहाड़ों को काटा गया। कई जगह उसके बाद दिक्कत बढ़ गई। सबसे ज्यादा दिक्कत वाले क्षेत्रों में ऋषिकेश से करीब 40 किलोमीटर दूर तोता घाटी रही।
सड़क चौड़ीकरण के बाद यहां लगातार पहाड़ी से मार्ग पर पत्थर गिरते रहे हैं। जिससे कई बार हाईवे बाधित हुआ। पहाड़ से गिरने वाले पत्थरों के कारण दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है। एक मार्च 2021 को केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने हाईवे पर डेंजर जोन के उपचार के लिए टीएचडीसी को कंसल्टेंसी एजेंसी बनाया।
टीएचडीएसी के इंजीनियरों ने कौड़ियाल से लेकर तीनधारा के पास तक पहले चरण का काम पूरा किया। अब तोताघाटी के मुख्य क्षेत्र में दूसरे चरण का काम होना है। यहां मुख्य सड़क से सौ मीटर ऊपर वर्टिकल (लंबवत) दो पहाड़ों के दरार उभरी है। इसकी चौड़ाई करीब 60 मीटर और गहराई करीब 28 मीटर है।
कंसल्टेंसी एजेंसी क्रैक मीटर से इसकी पूरी संरचना को देखेगी। इसके लिए एक सप्ताह में विशेषज्ञों की टीम इसका सर्वे करेगी। दो दिन इसमें लगेंगे। उसके 15 दिन बाद रिपोर्ट शासन के माध्यम से केंद्र सरकार को भेजी जाएगी। चारधाम यात्रा से पहले इस दरार को भरा जाएगा।
खर्च कम, जगह तक पहुंचना चुनौती
टीएचडीसी के विशेषज्ञ पहाड़ियों के बीच आई दरार में राक टेस्टिंग, दरारों की बढ़ने की स्थिति, अंदर जमा पानी की स्थिति का आकलन करेंगे। इसके बाद अंदर कंक्रीट, पाइप आदि डालकर उसमें कंक्रीट भरा जाएगा। इस काम पर अनुमानित खर्च करीब पांच करोड़ रुपये है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती जिस जगह यह दरार है वहां तक विशेषज्ञों को पहुंचना है।
पानी के संपर्क में आने पर खिसकते हैं पत्थर
तोताघाट के पहाड़ों में जो पत्थर हैं वह डोलोमाइट (चूना पत्थर) है। यह जब तक पानी के संपर्क में नहीं आता है तब तक ठोस रहता है। पानी के संपर्क में आने के बाद यह खिसकने लगता है। मानसून अवधि में इस क्षेत्र में भारी वर्षा होती है। जिससे इसके नीचे गिरने का खतरा बना रहा है। यह इस मार्ग से आवागमन करने वालों के लिए खतरा बना रहता है।
यह है तोता घाटी का इतिहास
टिहरी में राजशाही के दौर में इस सड़क का निर्माण किया गया था। प्रतापनगर क्षेत्र के रहने वाले ठेकेदार तोता सिंह रांगड़ ने इस सड़क को बनाया। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम तोताघाटी पड़ा। यह सड़क इतनी संकरी थी कि तब यहां गेट सिस्टम होता था।
ऋषिकेश से सटे कैलाश गेट का नाम ही इस गेट सिस्टम के कारण पड़ा। उस दौर में जो गाड़ी सबसे पीछे जाती थी उस पर झंडा लगा होता था। जब झंडा लगा यह वाहन निकल जाता, तब दूसरी ओर से वाहन छोड़े जाते थे। सड़क संकरी होने के कारण गेट सिस्टम बाद के कई दशकों तक जोशीमठ से बदरीनाथ के बीच भी रहा।
पहाड़ी जिलों की लाइफ लाइन है यह सड़क
कोविड काल में पहले लाकडाउन के दौरान तोता घाटी का चौड़ीकरण किया गया। पहले एक माह के लिए सड़क को बंद किया गया। विषम भौगोलिक क्षेत्र वाले इस क्षेत्र में सड़क चौड़ीकरण के दौरान नई जमाने की मशीने भी हांफने लगी। बाद में यह समय अवधि बढ़ती गई और करीब छह माह तक सड़क बंद रही। यह सड़क पहाड़ को ऋषिकेश से जोड़ने वाली लाइफ लाइन है। इस सड़क के बंद होने पर चंबा रूट से जाना पड़ता है। जिसमें करीब 35 किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है।
पहले चरण में तोताघाटी क्षेत्र में काम हो चुके हैं। अब दूसरे चरण में काम होना है। एक सप्ताह में सर्वे कर 15 दिन में रिपोर्ट बना दी जाएगी। इस पर खर्च तो अधिक नहीं है, लेकिन जहां दरार है वहां पहुंचना ही मुश्किल है। आगामी चारधाम यात्रा से पहले इसे ठीक कर दिया जाएगा। - नीरज अग्रवाल, महाप्रबंधक, डिजाइन, टीएचडीसी

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