उत्तराखंड में सालभर के भीतर बनेगी बुग्यालों की एटलस, इन की सेहत की भी रहेगी जानकारी
Atlas of Bugyals उत्तराखंड में बुग्यालों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए राज्य सरकार बुग्यालों की एक एटलस तैयार कर रही है। इस एटलस में राज्य के लगभग 200 बुग्यालों का संपूर्ण विवरण उनकी सेहत की जानकारी और भूस्खलन-भूकटाव की स्थिति का ब्योरा होगा। इस एटलस के आधार पर बुग्यालों के उपचार के लिए कदम उठाए जाएंगे।

केदार दत्त, जागरण, देहरादून। आपदा की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित बुग्याल यानी मखमली हरी घास के मैदान भी दरक रहे हैं। भूस्खलन, भूकटाव से कराहते बुग्यालों के उपचार को लेकर सरकार संजीदा हुई है। इसी कड़ी में उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के सहयोग से वन विभाग अब बुग्यालों की एटलस बना रहा है, जिसमें इनका संपूर्ण ब्योरा व सेहत की जानकारी रहेगी।
राज्य में बुग्यालों की संख्या लगभग दो सौ हैं। एटलस तैयार करने को सालभर का समय निर्धारित किया गया है। फिर इसके आधार पर इनके उपचार को कदम उठाए जाएंगे। इसमें जियो जूट तकनीकी पर जोर रहेगा। दयारा बुग्याल में इस तकनीकी से हुए कार्यों के सार्थक परिणाम सामने आए हैं।
बुग्याल क्या हैं
समुद्रतल से साढे तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर अत्यधिक ठंडे वातावरण के कारण वृक्ष प्रजातियां सामान्यतया समाप्त होने पर इसे वृक्ष रेखा कहते हैं। साढ़े तीन से साढ़े चार हजार मीटर पर वृक्ष और हिम रेखा के बीच के क्षेत्र को बुग्याल कहा जाता है। बुग्यालों में 3300 से 3800 मीटर तक फिच्ची घास और 3800 मीटर से ऊपर बुग्गी घास समेत अनमोल वनस्पतियों के विपुल भंडार हैं।
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यह क्षेत्र हल्के ढलान वाले होते हैं और अधिकतर में घास होती है। नवंबर से मई जून तक ये बर्फ से ढके रहते हैं। शेष मौसम में बुग्याल भेड़पालकों के लिए ग्रीष्मकालीन चरान स्थल हैं तो प्रकृति प्रेमियों व साहसिक पर्यटन के शौकीनों को ये अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
दयारा बुग्याल में इस तरह किए गए हैं उपचारात्मक कार्य। साभार वन विभाग
इन कारणों से दरक रहे बुग्याल
बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप, अनियंत्रित चरान-चुगान, जलवायु परिवर्तन, अवांछित प्रजातियों की घुसपैठ, जड़ी-बूटियों का अनियंत्रित विदोहन का दुष्प्रभाव बुग्यालों पर पड़ा है। बादल फटने, अतिवृष्टि, शीतकाल का सिकुडऩा जैसे कारणों से बुग्याल दरक रहे हैं। इसे लेकर सरकार भी सतर्क हो गई है।
एटलस से सामने आएगी सही तस्वीर
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल में ही बुग्यालों के संरक्षण पर जोर देते हुए राज्य में दो सितंबर को बुग्याल दिवस मनाने की घोषणा की। मुख्यमंत्री के निर्देशों के क्रम में बुग्यालों की एटलस तैयार करने का निर्णय लिया गया है। वन मंत्री सुबोध उनियाल ने भी विभागीय समीक्षा बैठक में इसकी कार्ययोजना बनाने के निर्देश अधिकारियों को दिए। अब इस दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं।
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वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डा धनंजय मोहन के अनुसार उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के सहयोग से राज्य में स्थित लगभग दो सौ बुग्यालों की एटलस सालभर में तैयार हो जाएगी। इसमें बुग्यालों का क्षेत्रफल, वहां पाई जाने वाली जड़ी-बूटियां व वनस्पतियां, भूस्खलन-भूकटाव की स्थिति का ब्योरा रहेगा। इसके आधार पर बुग्यालों का उपचार किया जाएगा।
दयारा में सफल रही जियो जूट तकनीक
भूस्खलन व भूकटाव की समस्या से जूझ रहे उत्तरकाशी जिले के दयारा बुग्याल में वर्ष 2019 से उपचारात्मक कार्य शुरू किए गए। इसमें जियो जूट तकनीकी का उपयोग किया गया। इसके तहत प्रभावित क्षेत्र में जूट के साथ पिरुल व बायोमास का इस्तेमाल किया गया। इसी से चेकडैम बनाए गए तो दरकने वाले स्थानों पर जूट की मैट भी बिछाई गई।
प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डा धनंजय मोहन के अनुसार यह प्रयोग सफल रहा है। उपचारित क्षेत्र के 40 प्रतिशत से अधिक हिस्से में वनस्पतियों का पुनर्जनन हुआ है और कटाव भी थमा है। निकट भविष्य में अन्य क्षेत्रों के बुग्यालों के संरक्षण में भी यह तकनीकी अपनाई जाएगी।
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