इन कहानियों से समझें, कैसे चंद्रयान-3 मिशन की सफलता में उत्तराखंड की रही अहम भूमिका
चंद्रयान-3 मिशन की सफलता में उत्तराखंड की अहम भूमिका रही है। ISRO में विज्ञानी दुगड्डा निवासी दीपक अग्रवाल इस मिशन से थर्मल विभाग के प्रमुख के रूप में जुड़े रहे जबकि उनकी पत्नी पायल साफ्टवेयर विज्ञानी के रूप में मिशन में शामिल रहीं। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र त्रिवेंद्रम (केरल) में विज्ञानी रुड़की के रवीश कुमार और BHEL हरिद्वार ने भी अपना अमूल्य योगदान दिया।

कोटद्वार से अजय खंतवाल, रूड़की से रीना डंडरियाल और हरिद्वार से अनूप कुमार सिंह की रिपोर्ट: हमें भरोसा था कि चंद्रयान-3 मिशन पूरी तरह सफल रहेगा। हां! हमारी कार्ययोजना के अनुरूप ही चंद्रयान-3 चंद्रमा की जमीन पर लैंड करेगा, इसे लेकर थोड़ा संशय था।
लेकिन, जैसे ही चंद्रयान-3 ने चांद की सतह को छुआ, इसरो के साथ ही पूरा देश झूम उठा। यह बात बुधवार शाम दूरभाष पर चंद्रयान-3 मिशन में अहम भूमिका निभाने वाले पौड़ी जिले (उत्तराखंड) के दुगड्डा निवासी विज्ञानी दीपक अग्रवाल ने कही।
दीपक ने बताया कि चंद्रयान-3 से जुड़े इसरो के सभी विज्ञानी शुरुआत से ही मिशन की सफलता को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे। समय को लेकर थोड़ा असमंजस था, जो स्वाभाविक भी है।
टीम का मेहनत रंग लाई और चंद्रयान-3 ने उसी तरह चांद की सतह को छुआ, जैसी कार्ययोजना तैयार की गई थी। कहा कि चंद्रयान-3 की सफलतापूर्वक लैंडिंग ने विश्व में भारत की नई तस्वीर प्रस्तुत की है।
वर्ष 1979 दुगड्डा निवासी गोपाल चंद्र अग्रवाल व कृष्णा देवी के घर जन्मे दीपक की प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर दुगड्डा में हुई।
राजकीय इंटर कालेज दुगड्डा से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद दीपक ने वर्ष 2002 में गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया।
वर्ष 2004 में आइआइटी कानपुर से एमटेक करने के तत्काल बाद उनका चयन इसरो के लिए हो गया। इसरो में भी उन्होंने अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन बनाए रखा। वर्ष 2009 से 2015 के बीच दीपक ने एयरो स्पेस के क्षेत्र में पीएचडी की। इसके बाद तो वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गए और आज चंद्रयान-3 अभियान का अहम हिस्सा हैं। वह इससे पूर्व मंगल मिशन, चंद्रयान-1, जीएसएलवी उड़ान के लिए क्रायोजेनिक इंजन के विकास व जीएसएलवी एमके-3 मिशन में भी योगदान दे चुके हैं।
रवीश कुमार ने बढ़ाया मान
रुड़की चंद्रयान-3 मिशन का हिस्सा बनकर विज्ञानी रवीश कुमार ने शिक्षानगरी का मान बढ़ाया है। रुड़की के मालवीय चौक एवं मूलरूप से मुजफ्फरनगर के भूराहेड़ी निवासी रवीश बतौर विज्ञानी विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र त्रिवेंद्रम (केरल) से जुड़े हुए हैं।
रवीश की मां मिथलेश पंवार ने बताया कि बेटे के चंद्रयान-3 मिशन से जुड़े होने पर उन्हें गर्व की अनुभूति हो रही है। उसने रुड़की के साथ ही पूरे उत्तराखंड को गौरवान्वित किया है।
चंडीगढ़ में रह रही छोटी बहन रश्मि पंवार ने दूरभाष पर बताया कि उनके भाई का सपना बचपन से ही विज्ञानी बनने का था। इसके लिए भाई ने कड़ी मेहनत की। उन्होंने मुजफ्फरनगर के पास स्थित अमृत इंटर कालेज से दसवीं में स्कूल टाप किया।
डीएवी इंटर कालेज रुड़की से इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने शहर के ही एक निजी कालेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग ब्रांच में बीटेक किया। इसके बाद गेट क्वालिफाई कर आइआइटी रुड़की में एमटेक में दाखिला लिया। रश्मि ने बताया कि इस बीच उनका चयन इसरो में हो गया, इसलिए एमटेक पूरा नहीं कर पाए।
बाद में नौकरी के साथ-साथ उन्होंने आइआइएससी बंगलौर से डिजाइन में एमटेक किया। रश्मि के अनुसार अब तक अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) और चीन ने ही चंद्रमा की सतह पर अपने लैंडर उतारे हैं। लेकिन, इनमें से एक भी देश चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं पहुंच सका।
इधर, बुधवार को रवीश के घर पर मां मिथलेश पंवार व पिता नरेश पाल सिंह समेत पड़ोसियों ने चंद्रयान-3 की चंद्रमा की सतह पर साफ्ट लैंडिंग का सीधा प्रसारण देखा।
रवीश के पिता पिछले तीन साल से बीमार हैं और बिस्तर पर हैं। इस ऐतिहासिक सफलता के बाद पड़ोसियों ने उनकी मां को मिठाई खिलाकर शुभकामनाएं दी।
BHEL ने पूरी की प्रोपल्सन माड्यूल-लैंडर की ऊर्जा जरूरतें
हरिद्वार चंद्रयान-3 के प्रोपल्सन माड्यूल-लैंडर की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में बीएचईएल का महत्वपूर्ण योगदान है।
बीएचईएल ने चंद्रयान-तीन के सफर को सुगम एवं निर्बाध बनाने के लिए स्वदेशी तकनीक पर आधारित टाइटेनियम प्रोपेलेंट टैंक और प्रोपल्सन माड्यूल व लैंडर माड्यूल में लगी बैटरियों का निर्माण किया।
बीएचईएल बीते दो दशक से देश की अंतरिक्ष आकांक्षाओं को शक्ति देने के लिए इसरो के साथ सक्रिय सहयोग व साझेदारी कर रही है।
बीएचईएल निर्मित बैटरी ने लैंडर की ऊर्जा आवश्यताओं की पूर्ति तो की ही, प्रोपल्सन माड्यूल यान को ऊपर ले जाने में सहयोग भी किया। इसके अलावा चंद्रयान-तीन के ईंधन टैंक टाइटेनियम प्रोपेलेंट का निर्माण भी बीएचईएल ने ही किया।
टाइटेनियम एक विशेष तरह की धातु है, जो वजन में कम और मजबूती में अन्य धातुओं से बेहतर है। जहां एक ओर इसका वजन कम होता है, वहीं दूसरी ओर यह बेहद मजबूत होती है।
इन्हीं खूबियों के कारण अंतरिक्ष मिशन में इसका उपयोग किया जाता है। क्योंकि, यान का वजन कम रहना सबसे महत्वपूर्ण होता है। प्रोपेलेंट एक तरह ईंधन है, जिसका अंतरिक्ष मिशन में बहुधा उपयोग होता है।
इस ईंधन को रखने के लिए जिस टैंक की चंद्रयान-तीन को आवश्यकता थी, उस टाइटेनियम प्रोपेलेंट टैंक का निर्माण इसरो के लिए देश की महारत्न कंपनी बीएचईएल ने किया।
बीएचईएल हरिद्वार के कार्यपालक निदेशक प्रवीण चंद्र झा कहते हैं कि इस कामयाबी से हर भारतीय खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा है।
मिशन को सफल बनाने के लिए बीएचईएल ने चंद्रयान-तीन के लिए स्वदेशी तकनीक पर आधारित टाइटेनियम प्रोपेलेंट टैंक तथा प्रोपल्सन माड्यूल एवं लैंडर माड्यूल में लगी बैटरियों को निर्मित किया है।कहा कि चंद्रयान-3 के इस मिशन में बीएचईएल की विभिन्न इकाइयों ने सहयोग किया।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।