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    Uttarakhand Panchayat Chunav: दांव पर BJP और Congress के इन दिग्गजों की प्रतिष्ठा, 31 जुलाई को साफ होगी तस्वीर

    Updated: Tue, 29 Jul 2025 01:00 PM (IST)

    उत्तराखंड पंचायत चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। भाजपा ने नगर निकाय चुनाव की तरह रणनीति अपनाई है वहीं कांग्रेस ने अपने दिग्गजों पर भरोसा जताया है। 12 जिलों में हुए चुनाव के नतीजों का सभी को इंतजार है। परिणाम से पता चलेगा कि किस पार्टी का दबदबा रहेगा और 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए ग्रामीण मतदाताओं को साधने की रणनीति कैसी होगी।

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    Uttarakhand Panchayat Chunav: दांव पर भाजपा और कांग्रेस के दिग्गजों की प्रतिष्ठा (सांकेतिक तस्वीर)

    रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। उत्तराखंड में भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों दलों के दिग्गजों के लिए पंचायत चुनाव अग्नि परीक्षा साबित होने जा रहे हैं। 12 जिला पंचायतों में छोटी सरकार के गठन के लिए भाजपा ने नगर निकाय चुनाव की तर्ज पर रणनीति का दावा किया है।

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    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने सहयोगी मंत्रियों और प्रदेश संगठन के साथ त्रिस्तरीय पंचायतों में अपने दल की पतवार थामे रहे हैं। वहीं, कांग्रेस ने सत्ताधारी दल की किलेबंदी को भेदने और गांवों में पैठ मजबूत करने के इस अवसर को भुनाने के लिए क्षत्रपों पर अधिक भरोसा किया है।

    प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के साथ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल की प्रतिष्ठा भी इस चुनाव से जुड़ी है। दलों को 31 जुलाई को चुनाव परिणाम घोषित होने की प्रतीक्षा है।

    प्रदेश में हरिद्वार को छोड़कर शेष 12 जिलों में दो चरणों में पंचायत चुनाव सोमवार को संपन्न हो गए। अब दो दिन बाद यानी आगामी गुरुवार को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद यह भी सामने आ जाएगा कि त्रिस्तरीय पंचायतों में किस दल का बोलबाला रहने जा रहा है या निर्दलीयों की धमक बढ़ेगी।

    पंचायतों में छोटी सरकार के गठन के लिए दलों ने सीधे तौर पर चुनाव नहीं लड़ा है। भाजपा हो या कांग्रेस, सभी ने समर्थित प्रत्याशियों पर दांव खेला।

    यह अलग बात है कि हर दल ने अपने कैडर और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को ही समर्थित प्रत्याशियों के रूप में प्राथमिकता दी। चुनाव परिणाम से यह भी तय होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाताओं पर किस दल और नेता की पकड़ कितनी मजबूत है।

    दलों के बीच कड़ा संघर्ष जिला पंचायतों में होना है। अभी जिला पंचायतों में सदस्यों के चुनाव हुए हैं। बाद में ये सदस्य ही जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। क्षेत्र पंचायतों में भी चुने जाने वाले क्षेत्र पंचायत सदस्य ब्लाक प्रमुख को चुनेंगे।

    इस दंगल में भाजपा के 44 बनाम कांग्रेस के 15 विधायकों के दमखम का पता चलेगा। पंचायतों में छोटी सरकार बनाने के लिए दोनों दलों के दिग्गजों ने समर्थित प्रत्याशियों के बहाने खूब दांव-पेच चले हैं।

    कांग्रेस ने समर्थित प्रत्याशियों को जिताने के लिए विधायकों के साथ ही टिकट की पैरोकारी करने वाले क्षत्रपों को ही जिम्मा सौंपा। नगर निकाय चुनाव की भांति पंचायत चुनाव में भी प्रत्याशियों की सूची को अंतिम रूप देने में प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

    प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा को पार्टी हाईकमान ने नई प्रदेश कार्यकारिणी अब तक नहीं थमाई, लेकिन समन्वय समिति की कमान जरूर थमा दी। समिति में लगभग सभी बड़े नेता एवं विधायकों को सम्मिलित हैं।

    भाजपा में मुख्यमंत्री धामी ने पंचायत चुनाव को धार दी है। दोनों चरणों के मतदान के दौरान दोनों मंडलों गढ़वाल और कुमाऊं में मुख्यमंत्री सक्रिय रहे। जिलों के प्रभारी के रूप में उनके मंत्रिमंडल सहयोगियों के लिए भी पंचायत चुनाव के परिणाम महत्वपूर्ण साबित होंगे।

    इससे यह भी पता चलेगा कि वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले ग्रामीण मतदाताओं को कैसे साधा जा सकता है। यही कारण रहा कि भाजपा के सभी सांसद चुनाव के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में संपर्क साधते देखे गए।

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