Move to Jagran APP

Uttarakhand News: दो अक्‍टूबर 1994 में मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड को याद कर सिहर उठते हैं आंदोलनकारी

वर्ष 1994 में दो अक्‍टूबर के ही दिन राज्य की मांग को दिल्ली जा रहे प्रदर्शनकारियों पर प्रशासन ने कहर बरसाया था। राज्य आंदोलनकारी बोले खून पसीना बहाकर अलग राज्य तो बन गया लेकिन इसके विकास को अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

By Jagran NewsEdited By: Sunil NegiPublished: Sat, 01 Oct 2022 11:50 PM (IST)Updated: Sat, 01 Oct 2022 11:50 PM (IST)
Uttarakhand News: दो अक्‍टूबर 1994 में मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड को याद कर सिहर उठते हैं आंदोलनकारी
वर्ष 1994 में दो अक्‍टूबर को राज्य की मांग को दिल्ली जा रहे प्रदर्शनकारियों पर प्रशासन ने कहर बरसाया था।

जागरण संवाददाता, देहरादून : Rampur Tiraha Kand कोदा-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे के नारे हवा में तैर रहे थे। हर कोई पृथक राज्य के आंदोलन में किसी न किसी रूप में जुड़ा था।

loksabha election banner

बस से दिल्ली जा रहे आंदोलनकारी

पृथक राज्य की मांग को लेकर बस से दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों के साथ दो अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा में जो दर्दनाक घटना हुई, उसे याद कर राज्य आंदोलनकारी आज भी सिहर उठते हैं। उनका कहना है कि खून पसीना बहाकर अलग राज्य तो बन गया लेकिन जिस आदर्श राज्य का सपना आंदोलनकारियों ने देखा था उस ओर अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

रामपुर तिराहा पर हुई फायरिंग और लाठीचार्ज

प्रदीप कुकरेती जिलाध्यक्ष (उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच) ने बताया कि 28 साल पहले दो अक्टूबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर अलग राज्य के लिए प्रदर्शन करना तय हुआ तो गढ़वाल और कुमाऊं से बसों में भरकर लोग दिल्ली के लिए रवाना हुए। काफी संख्या में होने के कारण आंदोलनकारी आगे बढ़े और मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पहुंचे जहां फायरिंग, बेबसों पर कहर, लाठीचार्ज, पथराव हुए। बच्चों महिलाओं के साथ अभद्रता हुई। जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।

बलिदानियों के स्वजन को नहीं मिला न्याय

पुष्पलता सिलमाना (वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी) ने बताया कि आंदोलनकारियों के लिए आज भी दुख इस बात का है कि राज्य बनने का सपना जरूर पूरा हो गया, लेकिन राज्य गठन से पूर्व जो सपने देखे थे वह आज भी सपने ही बने हैं। उस दिन रात का मंजर ध्यान करती हूं तो सिहरन उठ आती हैं। मन दुखी होता है कि इतने वर्षों बाद भी इस कांड में बलिदानियों के स्वजन को न्याय नहीं मिला।

कभी न भूलने वाला है दमन का वीभत्स दृश्य

प्रदीप डबराल (वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी) ने बताया कि तत्कालीन सरकार की दमन और निरंकुशता का वीभत्स दृश्य कभी न भूलने वाला है। अलग राज्य बनने के बाद काफी उपलब्धि मिली लेकिन आकांक्षाओं के मुताबिक नहीं। रोजगार, पलायन को लेकर आज भी लोग परेशान हैं। खाली होते पहाड़ इस समय चिंता का विषय है। सरकार को चाहिए कि इस ओर गंभीरता से कार्य करें जिससे व राज्य विकास के पथ पर दौड़ता दिखे।

यह भी पढ़ें:-रामपुर तिराहा कांड बरसी: पुलिस और प्रशासन ने काली रात में अमानवीयता की हदें कर दी थीं पार, पहाड़ का बहा था खून

रामपुर तिराहा का मंजर याद कर आता है रोना

राज्य आंदोलनकारी राकेश नौटियाल ने बताया कि जब भी दो अक्टूबर आता है तो रामपुर तिराहा का वो मंजर याद कर रोना आता है। स्थिति यह है कि आज भी अपने सपने के उत्तराखंड के लिए लड़ रहे हैं। इस दिन बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी जाती है लेकिन उनके सपने कितने साकार हुए इस बारे में भी प्रशासन, सरकार द्वारा प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

यह भी पढ़ें:- Mussoorie Golikand: ताजा है 2 सितंबर 1994 को हुआ मसूरी गोलीकांड, पुलिस ने आंदोलनकारियों पर बरसाईं थी गोलियां


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.