देहरादून और हल्द्वानी में अब रियायती फीस पर एमबीबीएस नहीं
प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में रियायती दर पर पढ़ाई करने की सोच रहे छात्रों को झटका। राज्य सरकार ने बांड की सुविधा की तय की सीमा।

देहरादून, राज्य ब्यूरो। प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में रियायती फीस पर एमबीबीएस करने की हसरत पाले बैठे छात्र-छात्राओं को सरकार ने झटका दिया है। दो कॉलेजों राजकीय मेडिकल कॉलेज देहरादून और हल्द्वानी में अब नए दाखिल होने वाले छात्र-छात्राओं को रियायती फीस के एवज में सरकारी सेवा संबंधी बॉंड की सुविधा नहीं मिलेगी। उक्त दोनों कॉलेजों में वर्तमान में अध्ययनरत और जल्द पासआउट होने वाले चिकित्सकों से प्रदेश में चिकित्सकों के सभी रिक्त पद भरने की वजह से सरकार ने उक्त कदम उठाया है। अलबत्ता, अन्य दो सरकारी मेडिकल कॉलेजों श्रीनगर और अल्मोड़ा में दाखिला लेने वाले छात्र-छात्राओं को बॉंड की सुविधा ऐच्छिक आधार पर दी जा सकेगी। सरकार ने अहम फैसले में बॉंडधारक चिकित्सकों को पढ़ाई पूरी करने के बाद पहले वर्ष मेडिकल कॉलेजों में जूनियर और सीनियर रेजिडेंट के तौर पर तैनाती को मंजूरी दे दी।
दरअसल, प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में रियायती शिक्षण शुल्क का फायदा लेकर सरकारी सेवा बॉंड की सुविधा लेने वाले चिकित्सकों को पर्वतीय व दुर्गम-दूरस्थ क्षेत्रों में संविदा पर चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण महकमे में चिकित्सकों के रिक्त पदों पर नियुक्ति दी जाती है। वर्तमान में राज्य में चिकित्सकों के कुल 2735 पद रिक्त हैं। सृजित पदों के सापेक्ष 2056 चिकित्सक कार्यरत हैं। देहरादून और हल्द्वानी के सरकारी मेडिकल कॉलेजों से पासआउट होने वाले चिकित्सकों से उक्त सभी रिक्त पद भर जाएंगे।
हालांकि बॉंड की उक्त व्यवस्था में कुछ खामियां भी मानी जा रही है। पासआउट होने वाले चिकित्सकों को दुर्गम व दूरदराज में तैनाती का प्रावधान होने से सरकारी मेडिकल कॉलेजों में उन्हें सीनियर और जूनियर रेजिडेंट के रिक्त पदों पर नहीं रखा जा रहा है। इस वजह से सरकारी कॉलेजों में सीनियर व जूनियर रेजीडेंट चिकित्सकों की भारी कमी बनी हुई है। साथ ही सरकारी सेवा संबंधी बॉंड पर नॉन क्लीनिकल विषयों में पीजी पाठ्यक्रम पास करने वाले चिकित्सकों को प्रांतीय चिकित्सा सेवा में उनकी विशेषज्ञता के मुताबिक पद उपलब्ध नहीं हैं। चिकित्सा शिक्षा सचिव नितेश झा ने बताया कि सरकार ने उक्त समस्याओं पर गौर करते हुए अहम फैसले लिए हैं। इसके मुताबिक सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ऑल इंडिया कोटे के माध्यम से एमबीबीएस पाठ्यक्रम में बॉंड लागू नहीं होगा। वहां पूरी फीस पर ही छात्र-छात्राओं को पढाई करनी होगी। बॉंडधारी चिकित्सक पासआउट होने के बाद एक वर्ष के लिए रेजिडेंट चिकित्सक बन सकेंगे। दूसरे व तीसरे वर्ष की सेवाएं उन्हें दुर्गम-दूरदराज में देनी होगी।
वहीं नॉन क्लीनिकल विषयों के पीजी पाठ्यक्रमों में चयनित छात्रों को बॉंड की सुविधा नहीं होगी। सरकारी मेडिकल कॉलेजों से पास पीजी चिकित्सकों को कॉलेजों में पहले वर्ष सीनियर रेजीडेंट के रूप में तैनाती का निर्णय लिया गया है। शेष दूसरे वर्ष की सेवाएं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों व सामुदायिक केंद्रों में दे सकेंगे।
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