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    आगे की चुनौतियां: आग का दरिया है और तैर कर जाना है

    By Raksha PanthariEdited By:
    Updated: Sun, 08 Nov 2020 05:46 PM (IST)

    उत्तराखंड ने अपने 20 साल के सफर में प्रति व्यक्ति आय राज्य सकल घरेलू उत्पाद में राष्ट्रीय औसत से आगे निकलने समेत कई उपलब्धियां अपने नाम की हैं। बावजूद इसके तल्ख हकीकत ये है कि राज्य के भीतर जिलों और विकासखंडों के बीच ही असमानताएं तेजी से बढ़ी हैं।

    आगे की चुनौतियां: आग का दरिया है और तैर कर जाना है।

    देहरादून, राज्य ब्यूरो। ढांचागत विकास, जन सुविधाओं और सेवाओं ने पहाड़ों और गांवों में जाने से कन्नी काटने की मौजूदा रफ्तार बरकरार रखी तो मैदानों और शहरों की परेशानी में इजाफा होना तय है। उत्तराखंड में सुगम और दुर्गम क्षेत्रों के बीच सामाजिक-आर्थिक विषमताओं की चौड़ी होती खाई को समय रहते पाटा नहीं गया तो जनसांख्यिकी संतुलन डोलना तय है। पलायन, बेरोजगारी, आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी चुनौतियां आग का दरिया बन रही हैं। ठोस रोडमैप बनाकर ही इससे निपटा जा सकता है। 

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    उत्तराखंड ने अपने 20 साल के सफर में प्रति व्यक्ति आय, राज्य सकल घरेलू उत्पाद में राष्ट्रीय औसत से आगे निकलने समेत कई उपलब्धियां अपने नाम की हैं। बावजूद इसके तल्ख हकीकत ये है कि राज्य के भीतर जिलों और विकासखंडों के बीच ही असमानताएं तेजी से बढ़ी हैं। राज्य की आर्थिकी के आंकड़े हों या मानव विकास रिपोर्ट, सभी असमानता की बढ़ती समस्या की तस्दीक कर रही हैं। बीते वर्ष सामने आई मानव विकास रिपोर्ट में जो तीन जिले सबसे आगे रहे, उनमें देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर शामिल हैं। ये तीनों जिले मानव विकास सूचकांक में क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। 

    पर्वतीय जिले रुद्रप्रयाग, चंपावत और टिहरी जिले क्रमश: 11वें, 12वें व 13वें स्थान पर हैं। अब जनसांख्यिकी का असर देखिए। इसी रिपोर्ट में लैंगिक विकास सूचकांक में ऊधमसिंहनगर 11वें, देहरादून 12वें व हरिद्वार 13वें पर आए हैं। प्रति व्यक्ति आय और सकल घरेलू उत्पाद में भी नौ पर्वतीय जिले चार मैदानी जिलों से काफी पीछे हैं। इसके साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य की गुणवत्ता मौजूदा दौर की बड़ी चुनौतियां हैं। इनका समाधान बीते 20 वर्षों में भी नहीं निकला है। प्राथमिक से माध्यमिक तक सरकारी स्कूलों पर आम व्यक्ति का भरोसा कम हुआ है। 

    निजी स्कूलों पर निर्भरता बढ़ी है। कम आय वाला बड़ा वर्ग अपनी आमदनी का करीब 11 फीसद बच्चों की शिक्षा पर खर्च करने को मजबूर है। ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य के ढांचे को मजबूत करना होगा। कोरोना काल में स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार की इच्छाशक्ति को आगे जारी रखा गया तो आम जन के स्वास्थ्य को अच्छा रखा जा सकेगा।

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