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उत्तराखंड में पलायन थमेगा और बरकरार रहेगी गांवों की रौनक, जानिए कैसे

उत्तराखंड में 20 साल के लंबे अंतराल के बाद पलायन थामने के लिए चल रही कसरत उम्मीदें जगाने वाली है। वहीं पलायन के कारणों का पता लगने के बाद अब इसके निवारण को कदम उठाए जा रहे हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 08 Nov 2020 03:26 PM (IST)Updated: Sun, 08 Nov 2020 11:45 PM (IST)
उत्तराखंड में पलायन थमेगा और बरकरार रहेगी गांवों की रौनक।

देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड में 20 साल के लंबे अंतराल के बाद पलायन थामने के लिए चल रही कसरत उम्मीदें जगाने वाली है। पलायन के कारणों का पता लगने के बाद अब इसके निवारण को कदम उठाए जा रहे हैं। इस बीच कोरोना संकट ने भी प्रवासियों की घर वापसी की राह सुनिश्चित करने में मुख्य भूमिका निभाई। साढ़े तीन लाख से ज्यादा प्रवासी वापस लौटे, जिनमें ढाई लाख यहीं रुके हैं। कई प्रवासियों ने स्वरोजगार के क्षेत्र में हाथ आजमाए हैं और सरकार उन्हें हरसंभव सहयोग दे रही है। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना समेत अन्य रोजगारपरक योजनाएं न सिर्फ प्रवासियों, बल्कि अन्य व्यक्तियों को भी संबल दे रही है। ऐसे में उम्मीद जगी है कि अब न सिर्फ पलायन का दाग धुलेगा, बल्कि गांवों में लौटी रौनक भी बरकरार रहेगी।

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उत्तराखंड के गांवों से निरंतर हो रहे पलायन को थामने के मद्देनजर पूर्व में बातें तो खूब हुईं, मगर धरातल पर कोई ठोस पहल नहीं हो पाई। ये आधिकारिक आंकड़ा तक नहीं था कि वास्तव में कितने व्यक्ति यहां से पलायन कर चुके हैं। कोई डाटाबेस न होने के कारण योजनाएं भी नहीं बन पाईं। इस सबको देखते हुए मौजूदा सरकार ने राज्य में पलायन आयोग का गठन कर सबसे पहले पलायन की स्थिति और कारणों का पता लगाया। बात सामने आई कि राज्य गठन के बाद से अब तक 1702 गांव निर्जन हो गए। तमाम गांवों में जनसंख्या अंगुलियों में गिनने लायक रह गई है। 

सीमांत क्षेत्र के गांव भी खाली हो रहे हैं। आयोग की रिपोर्ट के अनुसार मूलभूत सुविधाओं और रोजगार के साधनों का अभाव जैसे कारणों से गांवों से बेहतर भविष्य की तलाश में पलायन हो रहा है। कारणों का पता चलने के बाद पलायन को थामने के लिए विभागवार कार्ययोजनाएं बनाने की कसरत हुई, जिसके बेहतर परिणाम आए। काफी संख्या में रिवर्स पलायन हुआ और वापस लौटे प्रवासियों ने गांव में रहकर तरक्की की इबारत लिख डाली।

इस बीच कोरोना संकट की दस्तक के बाद देश के विभिन्न राज्यों में रह रहे प्रवासियों के लौटने का सिलसिला शुरू हुआ। जाहिर है कि इससे गांवों में बंद पड़े घरों के दरवाजे खुले और वहां रौनक फिर से लौटने लगी। पलायन आयोग के आंकड़ों पर ही गौर करें तो फरवरी से लेकर सितंबर तक राज्य में 357536 प्रवासी लौटे। हालांकि, अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद इनमें से 104849 फिर से वापस लौट गए। अलबत्ता, 252687 अभी गांवों में ही रुके हैं। अच्छी बात ये है कि इन प्रवासियों में 33 फीसद कृषि, बागवानी, पशुपालन, 38 फीसद मनरेगा, 12 फीसद स्वरोजगार और 17 फीसद ने अन्य स्रोतों से आजीविका पर निर्भर हैं।

प्रवासियों समेत अन्य व्यक्तियों को गांवों में रोजगार, स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न विभागों की स्वरोजगारपरक योजनाओं को एक छतरी के नीचे मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के अंतर्गत लाया गया है। बड़ी संख्या में राज्यवासी इसके जरिये जानकारी लेकर स्वरोजगारपक गतिविधियों से जुड़ रहे हैं। हालांकि, स्वयं का उद्यम खड़ा करने वालों की संख्या अभी कम है, लेकिन सरकार की कोशिश है कि अधिक से अधिक प्रवासी अपने कौशल के अनुरूप स्वरोजगारी बनें। इससे वे खुद के साथ ही अन्य व्यक्तियों को भी रोजगार दे सकेंगे। जाहिर है कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी।

राज्य में प्रवासियों की स्थिति

जिला, रुके, वापस लौटे

पौड़ी, 95079, 15101

टिहरी, 40420, 12398

अल्मोड़ा, 35444, 28861

रुद्रप्रयाग, 29497, 4459

बागेश्वर, 24158, 5063

पिथौरागढ़, 22792, 5869

ऊधमसिंहनगर, 22220, 3538

नैनीताल, 22439, 8673

चमोली, 20909, 6900

उत्तरकाशी, 18767, 4507

चंपावत, 17830, 5693

देहरादून, 4129, 2018

हरिद्वार, 3952, 1779

ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग के अध्यक्ष डॉ. शरद नेगी ने बताया कि प्रवासियों के आर्थिक पुनर्वास के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना समेत अन्य योजनाएं सरकार संचालित कर रही है। इसका उन्हें लाभ भी मिल रहा है। आयोग ने सरकार को यह भी सुझाव दिया है कि प्रवासियों के लिए हर जिले में विशेष प्रकोष्ठ बनाया जाए। साथ ही एक हेल्पलाइन भी होनी चाहिए, ताकि आजीविका, ऋण समेत जैसी समस्याओं को तुरंत सुलझाया जा सके। बैंकों को भी स्वरोजगार की मुहिम को गति देने के लिए आगे आना होगा।

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