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दिल्ली के नतीजों से उत्तराखंड में भाजपा सतर्क, नेतृत्व ने शुरू किया चिंतन

दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपेक्षा के मुताबिक नतीजे न मिलने से अब उत्तराखंड में भी भाजपा सतर्क हो गई है। साथ ही पार्टी नेताओं का दावा है कि उत्तराखंड की जनता भाजपा के साथ है।

By Edited By: Published: Tue, 11 Feb 2020 09:45 PM (IST)Updated: Wed, 12 Feb 2020 08:43 AM (IST)
दिल्ली के नतीजों से उत्तराखंड में भाजपा सतर्क, नेतृत्व ने शुरू किया चिंतन
दिल्ली के नतीजों से उत्तराखंड में भाजपा सतर्क, नेतृत्व ने शुरू किया चिंतन

देहरादून, विकास धूलिया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपेक्षा के मुताबिक नतीजे न मिलने से अब उत्तराखंड में भी भाजपा सतर्क हो गई है। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के लिए हालांकि अभी दो साल का वक्त है, लेकिन सूबे के मतदाताओं के मिजाज के लिहाज से पार्टी किसी तरह का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। यही वह वजह है जिसने भाजपा नेतृत्व को अभी से चिंतन के लिए बाध्य कर दिया है। अब यह बात दीगर है कि पार्टी नेताओं का दावा यही है कि उत्तराखंड की जनता पूरी तरह भाजपा के साथ है। 

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पिछले साल ही लोकसभा चुनाव में सातों सीटों पर जीत दर्ज करने के बावजूद दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहा। अब अगर उत्तराखंड में देखा जाए तो भाजपा ने पिछले दो लोकसभा चुनावों में पांचों सीटों पर जीत दर्ज की। यही नहीं, तीन साल पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को उत्तराखंड में तीन-चौथाई से अधिक बहुमत हासिल हुआ। 

इस सबके बावजूद भाजपा चिंतित है, क्योंकि उत्तराखंड की जनता का मिजाज हमेशा बदलाव वाला रहा है। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद से अब तक हुए चार विस चुनाव में यहां हर बार सत्ता परिवर्तन हुआ है। नौ नवंबर 2000 को जब उत्तराखंड अलग राज्य बना, उस वक्त उत्तर प्रदेश में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा व विधान परिषद के 30 सदस्यों को लेकर राज्य की पहली अंतरिम विधानसभा का गठन किया गया और सरकार भाजपा की बनी। 

महज डेढ़ साल बाद वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में मतदाता ने भाजपा को सत्ता से बेदखल करते हुए कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका दिया। वर्ष 2007 के दूसरे विस चुनाव में जनादेश मिला भाजपा को। यही परिपाटी वर्ष 2012 के तीसरे चुनाव में भी नजर आई, जब भाजपा को दरकिनार कर एक बार फिर कांग्रेस को जनता ने सत्ता तक पहुंचा दिया।

वर्ष 2017 के चौथे विधानसभा चुनाव में फिर मतदाता ने कांग्रेस को दरकिनार कर भाजपा को 70 में से 57 सीटें दे दी। भाजपा की चिंता इसलिए भी वाजिब है, क्योंकि पिछले कुछ समय के दौरान हुए अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा को आशानुरूप कामयाबी नहीं मिली।

इसके विपरीत लोकसभा चुनावों में इन राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन खासा बेहतर रहा। उस पर उत्तराखंड में हर चुनाव में मतदाता के मिजाज में बदलाव दिखा है। दिलचस्प बात यह कि इसी फैक्टर के बूते कांग्रेस वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की आस बांधे हुए है। विधानसभा चुनाव के नजदीक आते-आते जिस तरह प्रदेश कांग्रेस में वर्चस्व की होड़ बढ़ती जा रही है, उसे इससे ही जोड़कर देखा जा रहा है। उत्तराखंड में चुनाव का दिल्ली से मेल नहीं 

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भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत के अनुसार, दिल्ली विधानसभा चुनाव में यह पहले से ही नजर आ रहा था। हमें तो पूरी ताकत से वहां लड़ना ही था। जब मुफ्त की बिजली, मुफ्त का पानी वाली बात हो कोई क्या कर सकता है। दिल्ली चुनाव का उत्तराखंड के चुनाव से कोई मेल नहीं है। पिछली बार हमने 57 सीटें जीती थीं, इस बार 60 से आगे जाएंगे। इसी के हिसाब से पार्टी ने चुनाव की रणनीति तय की है।

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