Uttarakhand Assembly Session: उत्तराखंड में जबरन मतांतरण पर अब 10 साल तक की सजा, जुर्माना भी बढ़ा
Uttarakhand Assembly Session विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन मंगलवार को सरकार ने उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक सदन में पेश किया। इसमें कानून का उल्लंघन करने पर सजा और कारावास दोनों में वृद्धि की गई है।
राज्य ब्यूरो, देहरादून: उत्तराखंड में मतांतरण विरोधी कानून अब उत्तर प्रदेश की तुलना में अधिक सख्त हो गया है। इस सिलसिले में धामी सरकार ने उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम में कड़े प्रविधान किए हैं। इसी कड़ी में विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन सरकार ने उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक सदन में पेश किया। इसमें कानून का उल्लंघन करने पर सजा और कारावास, दोनों में वृद्धि की गई है। सामूहिक मतांतरण के मामलों में सजा का प्रविधान 10 साल तक करने के साथ ही अधिकतम जुर्माना राशि 50 हजार रुपये की गई है। यही नहीं, मतांतरण के पीडि़त को आरोपित द्वारा पांच लाख रुपये तक का समुचित प्रतिकर भी न्यायालय दिला सकेगा।
कारावास की सजा की अवधि नहीं होगी तीन वर्ष से कम
धामी मंत्रिमंडल की इसी माह हुई बैठक में उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक को स्वीकृति दी गई थी, जिसे मंगलवार को सदन में प्रस्तुत किया गया। विधेयक में अधिनियम की धारा-दो में संशोधन कर दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मत परिवर्तन को सामूहिक मत परिवर्तन की श्रेणी में रखा गया है। सामूहिक मत परिवर्तन के मामले में संशोधन किया गया है कि इसमें कारावास की सजा की अवधि तीन वर्ष से कम नहीं होगी, जो अधिकतम 10 वर्ष तक हो सकेगी। साथ ही जुर्माने की राशि 50 हजार रुपये से कम नहीं होगी, जो पहले 25 हजार रुपये थी। यही नहीं, ऐसे मामलों में पीडि़त को प्रतिकर भी आरोपित से दिलाया जाएगा, जो अधिकतम पांच लाख रुपये तक हो सकता है और यह जुर्माने के अतिरिक्त होगा।
ये दर्ज करा सकेंगे प्रथम सूचना रिपोर्ट
अधिनियम की धारा-चार में किए गए संशोधन के अनुसार कोई व्यथित व्यक्ति या उसके माता-पिता या भाई-बहन ऐसे मत परिवर्तन के संबंध में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर सकेंगे, जो धारा-तीन का उल्लंघन करते हों। धारा तीन में प्रलोभन, परपीड़न, दुव्र्यपदेशन, बल, कपटपूर्ण साधन से किसी व्यक्ति का एक से दूसरे मत में परिवर्तन अथवा इसका षडयंत्र नहीं किया जा सकेगा। अधिनियम में धारा-आठ की उपधारा-पांच व छह में संशोधन कर उपधारा-एक का उल्लंघन होने पर छह माह से तीन वर्ष तक कारावास और 10 हजार रुपये जुर्माने की व्यवस्था की गई है। उपधारा-दो के उपबंधों का उल्लंघन करने पर एक वर्ष से पांच वर्ष तक कारावास व और 25 हजार रुपये जुर्माने का प्रविधान किया गया है।
व्यक्ति की अनुमति के बिना उसे मत परिवर्तन को विवश करने अथवा इस संबंध में षड्यंत्र रचने के मामलों में अब संशोधन कर सजा की अवधि दो वर्ष और अधिकतम सात साल की गई है। जुर्माना राशि भी 25 हजार रुपये की गई है। अधिनियम में पहले ऐसे मामलों में न्यूनतम एक साल और अधिकतम पांच साल की सजा और न्यूनतम जुर्माना 15 हजार रुपये नियत था। अवयस्क महिला या अनुसूचित जाति, जनजाति के संबंध में धारा-तीन का उल्लंघन करने पर न्यूनतम सजा दो साल और अधिकतम सात से बढ़ाकर 10 वर्ष की गई है। अधिनियम में यह भी संशोधन प्रस्तावित किया गया है कि स्वेच्छा से मत परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को 60 दिन पहले इसकी जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष इसकी घोषणा करनी होगी। संशोधित अधिनियम में समस्त अपराध गैर जमानती और सत्र न्यायालय में विचारणीय होंगे।
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