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    नमो के भरोसे पर खरा उतरने की चुनौती, प्रधानमंत्री मोदी ने की डबल इंजन सरकार की अपेक्षा

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Fri, 08 Oct 2021 08:19 AM (IST)

    उत्‍तराखंड में अभी विधानसभा चुनाव को कुछ महीनों का वक्त है लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऋषिकेश में उत्तराखंड भाजपा को चुनावी जीत का मंत्र दे गए। नमो ने जिस तरह उत्‍तराखंड से अपने जुड़ाव को संबोधन के केंद्र में रखा उससे साफ हो गया कि यह चुनावी शंखनाद ही है।

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    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी योगनगरी ऋषिकेश में उत्तराखंड भाजपा को चुनावी जीत का मंत्र दे गए।

    विकास धूलिया, देहरादून। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी योगनगरी ऋषिकेश में उत्तराखंड भाजपा को चुनावी जीत का मंत्र दे गए। हालांकि अभी विधानसभा चुनाव को कुछ महीनों का वक्त है, लेकिन नमो ने जिस तरह देवभूमि से अपने जुड़ाव को संबोधन के केंद्र में रखा, उससे साफ हो गया कि दरअसल यह उनका चुनावी शंखनाद ही है। ठीक पांच वर्ष पहले देहरादून में मोदी ने डबल इंजन के नाम पर जनादेश मांगा था, जिसकी परिणति वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में तीन-चौथाई से अधिक बहुमत के रूप में हुई। दिलचस्प यह कि पिछले साढ़े चार वर्ष के दौरान उत्तराखंड भाजपा में जो कुछ हुआ, उन परिस्थितियों में पूरा दारोमदार फिर मोदी फैक्टर पर आ टिका है।

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    उत्तराखंड में पिछले लगभग सात वर्षों से भाजपा अविजित है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में पांचों सीटों पर जीत के साथ चला पार्टी का विजय रथ विधानसभा चुनाव में 70 में से 57 सीटें जीत कर आगे बढ़ा। फिर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पांचों सीटों पर परचम फहराया। साफ है कि उत्तराखंड में हुए इन सभी चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोला। अगले वर्ष की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने इसी प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती पार्टी के समक्ष है।

    गुरुवार को ऋषिकेश में प्रधानमंत्री ने एक बार फिर डबल इंजन की सरकार के बूते प्रदेश के विकास की उम्मीद जताई, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में प्रदेश भाजपा मोदी के इस भरोसे को किस सीमा तक सहेजने में सफल रहती है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में भारी भरकम बहुमत के बावजूद भाजपा को अगले चुनाव की दहलीज तक पहुंचने से पहले दो-दो बार सरकार में नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ा। मार्च 2017 में मुख्यमंत्री बनाए गए त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपना चार वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने से ठीक पहले पद छोड़ना पड़ा। उस वक्त त्रिवेंद्र की इस तरह अचानक हुई विदाई सबके लिए अप्रत्याशित रही।

    त्रिवेंद्र के उत्तराधिकारी के रूप में मुख्यमंत्री बनाया गया तीरथ सिंह रावत को। तीरथ की ताजपोशी की कोई खास वजह भी किसी की समझ में नहीं आई। तीरथ को वर्ष 2017 में भाजपा ने विधानसभा चुनाव में उतारना भी उचित नहीं समझा था और उनकी परंपरागत सीट चौबट्टाखाल से सतपाल महाराज को तीरथ पर तरजीह दी। हालांकि फिर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में तीरथ ने पूर्व मुख्यमंत्री और अपने राजनीतिक गुरु भुवन चंद्र खंडूड़ी की पौड़ी गढ़वाल सीट पर जीत दर्ज की। बतौर मुख्यमंत्री तीरथ को चार महीने से भी कम समय मिला और बगैर विधायक बने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी। अब तीरथ अपनी सांसद की भूमिका में ही पूरी तरह सक्रिय हो चुके हैं।

    भाजपा ने विधानसभा चुनाव से लगभग छह महीने पहले युवा चेहरे के रूप में पुष्कर सिंह धामी को कमान सौंप अपनी रणनीति साफ कर दी, मगर अब चुनाव में पार्टी को इस सवाल के संतोषजनक जवाब के साथ मतदाता तक जाना होगा कि बार-बार नेतृत्व परिवर्तन की वजह क्या रही। कुछ इसी तरह की स्थिति का सामना संगठन में बदलाव से जुड़े सवालों पर भी पार्टी को करना होगा। इसके अलावा चुनावी वर्ष में जिस तरह भाजपा सरकार के मंत्री और पार्टी विधायक सार्वजनिक तौर पर एक-दूसरे को निशाना बनाते नजर आए, उसने भी पार्टी के लिए असहज हालात पैदा किए हैं। खासकर तब, जब भाजपा की छवि अनुशासित पार्टी की रही है।

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