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    उत्तराखंड: चुनाव से ठीक पहले फिर उछला ये मुद्दा, भाजपा-कांग्रेस और 'आप' ने लिया अपना-अपना स्टैंड; आप भी जानिए

    By Raksha PanthriEdited By:
    Updated: Sun, 19 Dec 2021 10:19 PM (IST)

    तमाम मुद्दों पर ये राजनीतिक दल एक-दूसरे पर हमलावर हैं लेकिन एक बार फिर एक मुददा अचानक चुनाव से पहले उछल गया है। यह है राज्य में नए जिलों के गठन का मुददा जिस पर भाजपा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का अपना-अपना स्टैंड है।

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    उत्तराखंड: चुनाव से ठीक पहले फिर उछला ये मुद्दा।

    राज्य ब्यूरो, देहरादून। उत्तराखंड अलग राज्य बनने के बाद अब पांचवें विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। अगले दो-तीन सप्ताह के दौरान कभी भी चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हो सकती है। अपने पिछले चुनाव का प्रदर्शन दोहराने की मशक्कत में जुटी भाजपा हो या फिर पांच साल बाद सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही कांग्रेस, सब कमर कस कर मैदान में उतर चुके हैं। बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, उत्तराखंड क्रांति दल भी चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। इस बार आम आदमी पार्टी भी सभी 70 सीटों पर प्रत्याशी खड़े करने जा रही है। तमाम मुद्दों पर ये राजनीतिक दल एक-दूसरे पर हमलावर हैं, लेकिन एक बार फिर एक मुददा अचानक चुनाव से पहले उछल गया है। यह है राज्य में नए जिलों के गठन का मुद्दा, जिस पर भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का अपना-अपना स्टैंड है।

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    2011 में हुई घोषणा, लेकिन नहीं बने नए जिले

    उत्तराखंड नौ नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर देश का 27 वां राज्य बना, तो तब इसमें 13 जिले शामिल किए गए। शुरुआत से ही उत्तराखंड में नए जिले बनाने की मांग उठती रही, लेकिन इस मांग को 15 अगस्त, 2011 को स्वतंत्रता दिवस पर तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पूरा किया। उन्होंने उत्तराखंड में कोटद्वार, यमुनोत्री, डीडीहाट और रानीखेत को नए जिले बनाने की घोषणा की। कुछ ही दिन बाद निशंक मुख्यमंत्री पद से हट गए तो नए जिलों का मामला भी लटक गया। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई तो नए जिले पूरी तरह ठंडे बस्ते में चले गए। अगले चार सालों तक नए जिलों को लेकर सरकार के स्तर पर कोई भी गतिविधि नजर नहीं आई। हलचल हुई साल 2016 में।

    पिछली बार रावत ने चला नौ नए जिलों का पैंतरा

    मार्च 2016 में कांग्रेस में हुई बड़ी टूट के बाद किसी तरह सरकार बचा ले गए हरीश रावत ने 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नए जिले बनाने का पैंतरा चला। चार-पांच नहीं, रावत ने एक साथ नौ नए जिले बनाने की बात कही, लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ाए। साल 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने बुरी तरह मात खाई, तो नए जिलों के गठन का मामला किसी की प्राथमिकता में नहीं रहा। साल 2017 में सत्ता में आई भाजपा ने अब तक तो नए जिलों के गठन को लेकर कोई स्पष्ट स्टैंड नहीं लिया, मगर अब चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने कहा है कि नए जिलों के गठन के लिए बनाए गए आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही कोई फैसला लिया जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक, दोनों ने ही एक ही तरह की बात कही है।

    मतदाता तय करेंगे, नए जिलों पर कौन भरोसेमंद

    दूसरी ओर, कांग्रेस ने पांच साल बाद फिर सत्ता में आने की स्थिति में नौ नए जिले बनाने की घोषणा की है। पहली बार चुनाव मैदान में उतर रही आम आदमी पार्टी ने भी इस मुददे को लपका है। पार्टी ने बीच का रास्ता अख्तियार किया है। आम आदमी पार्टी ने राज्य में छह नए जिले बनाने का वादा किया है। यानी कांग्रेस नौ व आम आदमी पार्टी छह नए जिलों के गठन का वादा कर चुनाव में जा रही है। भाजपा नए जिलों के लिए जिस आयोग की रिपोर्ट का इंतजार कर रही है, सूत्रों के मुताबिक उसमें चार नए जिलों के गठन पर मंथन चल रहा है, अंतिम निष्कर्ष आने तक संख्या में बदलाव भी संभव है। अब यह मतदाताओं पर निर्भर है कि नए जिलों के मामले में वह किस राजनीतिक दल पर भरोसा करते हैं।

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