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    Uttarakhand Politics News: उक्रांद के सामने अस्तित्व बनाए रखने की चुनौती, पढ़िए पूरी खबर

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Thu, 25 Mar 2021 09:38 PM (IST)

    प्रदेश के एकमात्र क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के सामने खुद का वजूद बचाने की चुनौती है। इसे देखते हुए उक्रांद अब आगामी विधानसभा चुनावों के जरिये एक बार फिर प्रदेश में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने की तैयारी में जुट गया है।

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    उत्‍तराखंड के एकमात्र क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के सामने खुद का वजूद बचाने की चुनौती है।

    राज्य ब्यूरो, देहरादून। प्रदेश के एकमात्र क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के सामने खुद का वजूद बचाने की चुनौती है। इसे देखते हुए उक्रांद अब आगामी विधानसभा चुनावों के जरिये एक बार फिर प्रदेश में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने की तैयारी में जुट गया है। इसके लिए उसने संभावित प्रत्याशियों को अभी से आगे करते हुए चुनावी तैयारी भी शुरू कर दी है। इसके साथ ही दल की रणनीति जनसरोकार से जुड़े विभिन्न मुद्दों को लेकर सरकार पर हमलावर होने की है।

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    उत्तराखंड क्रांति दल का जन्म ही राज्य आंदोलन की अवधारणा के साथ हुआ। इस दल ने तमाम उतार चढ़ाव देखे हैं। राज्य गठन से ऐन पहले क्रांति दल अपने को प्रदेश में एक मजबूत दल के रूप में स्थापित कर चुका था। राज्य आंदोलन के दौरान उक्रांद के प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में लोग जुड़ते थे। राज्य गठन के बाद उक्रांद को स्थानीय जनता ने अपना पूरा आशीर्वाद भी दिया। 

    यही कारण रहा कि पहले विधानसभा चुनाव में दल के चार प्रत्याशी विधायक के रूप में चुन कर विधानसभा तक पहुंचे। पर्वतीय क्षेत्रों में पार्टी का मत प्रतिशत भी खासा अच्छा, यानी 5.49 प्रतिशत रहा। इस कारण उक्रांद को राजनीतिक दल के रूप में मान्यता भी मिली। दूसरे चुनाव यानी 2007 में भी पार्टी का प्रदर्शन संतोषजनक रहा। पार्टी को पिछले चुनाव की तरह 5.49 प्रतिशत वोट मिले। इस चुनाव में पार्टी ने तीन सीटों पर जीत दर्ज की। हालांकि, इसके बाद पार्टी के बड़े नेता पार्टी के प्रति आमजन के रुझान को बरकरार नहीं रख पाए और पार्टी का पतन शुरू हो गया। 

    आपसी कलह पार्टी पर भारी पड़ने लगी। इसका असर 2012 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। पार्टी ने 44 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए, जिनमें से केवल एक पर जीत मिली। बाद में इस विधायक ने भी पार्टी का दामन छोड़ दिया। वर्ष 2017 में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। इसके बाद से ही अब उक्रांद अपने अस्तित्व को बचाने की चुनौती से जूझ रही है।

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