अपने परिश्रम के दम पर भर्ती हुए इन युवाओं ने हासिल किया मुकाम
इरादे मजबूत हों तो मंजिल मिल ही जाती है। सेना में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए वीरों ने कड़ी मेहनत के दम पर अफसर बनने तक का सफर पूरा किया। देवभूमि के इन सपूतों ने सफलता की इबारत लिख अपने परिवार के साथ प्रदेश का नाम भी रोशन किया।
जागरण संवाददाता, देहरादून : इरादे मजबूत हों तो मंजिल मिल ही जाती है। सेना में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए वीरों ने कड़ी मेहनत के दम पर अफसर बनने तक का सफर पूरा किया। देवभूमि के इन सपूतों ने सफलता की इबारत लिख अपने परिवार के साथ प्रदेश का नाम भी रोशन किया है।
सात साल लगातार मेहनत कर मिली सफलता
उत्तराखंड के मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल, तल्ला डुमैल निवासी रोहित रावत का परिवार वर्तमान में रुड़की में रहता है। रोहित रावत के पिता सतेंद्र सिंह रावत बंगाल रेजिमेंट से सेवानिवृत्त हैं और मां जयश्री गृहणी। आर्मी पब्लिक स्कूल रुड़की से 12वीं पास करने के बाद उन्होंने बीटेक में दाखिला ले लिया, लेकिन दूसरे सेमेस्टर में ही 2011 में रोहित सेना में भर्ती हो गए। यहां ड्यूटी के दौरान ही उनके सीनियरों ने उन्हें एसीसी के जरिए अफसर बनने की राह दिखाई। सात साल लगातार मेहनत के बाद साल 2017 में एसीसी में चयन हो गया। इससे परिवार फर्क महसूस कर रहा है।
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योगेश ने दो साल में पाया मुकाम
उत्तराखंड के बनबसा (चम्पावत) के योगेश चंद भी अपने परिश्रम से सिपाही से अफसर बने। पिता कमल चंद भी सेना से सेवानिवृत्त हैं और मां कलावती गृहणी हैं। योगेश ने बताया कि पिता को देख वह देश सेवा के लिए प्रेरित हुए। योगेश ने केंद्रीय विद्यालय बनबसा से साल 2014 में 12वीं की परीक्षा पास की। अगले साल ही सेना में भर्ती हो गए। पिता ने एसीसी के बारे में बताया था, तो भर्ती होने के बाद ही इसके लिए तैयारी शुरू कर दी। दो साल में ही इसका परिणाम भी मिल गया।
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