Tehri Riyasat : भारत की इकलौती रियासत, जहां शवयात्रा में उमड़े व्यक्तियों ने रचा था इतिहास, बापू ने भी था सराहा
Tehri Riyasat टिहरी रियासत का अस्तित्व गढ़वाल में गोरखाओं के आक्रमण से जुड़ा है। उत्तराखंड में स्थित टिहरी रियासत में हुई अहिंसक जनक्रांति को महात्मा गांधी ने भी सराहा था। यहां की जनता को आजादी के लिए दो साल ज्यादा इंतजार करना पड़ा था।
टीम जागरण, देहरादून : Tehri Riyasat : देश को आजादी 15 अगस्त 1947 में मिली, लेकिन उत्तराखंड में स्थित टिहरी रियासत की जनता को आजादी के लिए दो साल का और इंतजार करना पड़ा था।
विशाल जनक्रांति के बाद एक अगस्त 1949 कोटिहरी रियासत के लोगों ने आजादी की हवा में सांस लेना शुरू किया। यहां हुई अहिंसक जनक्रांति को महात्मा गांधी ने भी सराहा था। आइए जानते हैं टिहरी का इतिहास:
टिहरी का इतिहास
- टिहरी रियासत का अस्तित्व गढ़वाल में गोरखाओं के आक्रमण से जुड़ा है।
- वर्ष 1803 में गोरखा युद्ध में गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा प्रद्युमन शाह के वीरगति को प्राप्त होने के बाद उनके पुत्र सुदर्शन शाह गद्दी पर बैठे।
- 1815 में सुदर्शन शाह ने अंग्रेंजों की मदद लेकर गोरखाओं को हराया था।
- सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी के लिए भागीरथी और भिलंगना के संगम पर स्थित भूमि का चयन किया था।
- शुरुआत में नगर को साधारण तरीके से बसाया गया। बाद में 1887 में महाराजा कीर्तिशाह ने नए राजमहल का निर्माण कराया और टिहरी में ऐतिहासिक घंटाघर भी बनवाया। यह घंटाघर लंदन में बने घंटाघर की प्रतिकृति था।
- भारत को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली, जब देश आजाद हुआ, तब टिहरी गढ़वाल में राजशाही के अधीन था।
- देश की आजादी के साथ ही टिहरी में भी रियासत से मुक्ति के लिए संघर्ष तेज हो गया।
- 16 जनवरी 1948 को क्रांतिकारियों ने राजधानी टिहरी पर कब्जा कर लिया।
- इसके बाद भारत सरकार ने टिहरी रियासत में शांति बनाए रखने के लिए विलय की प्रक्रिया शुरू कर दी।
- टिहरी रियासत को एक अगस्त 1949 का दिन असली आजादी मिली। इस दिन रियासत का भारतीय संघ में विलय कर दिया गया।
- टिहरी रियासत की सेना ने प्रांत प्रमुख गोविंद बल्लभ पंत को गार्ड आफ आनर भी दिया।
- 25 अक्टूबर 1946 को महाराज मानवेंद्र शाह टिहरी के आखिरी महाराज बने।
- टिहरी रियासत के विलय का वीडियो भारतीय फिल्म डिवीजन के पास आज भी सुरक्षित है।
- 29 जनवरी, 1948 को टिहरी प्रजामंडल के कुछ सदस्यों ने जब महात्मा गांधी से मिलकर उन्हें टिहरी की अहिंसक जनक्रांति का समाचार दिया तो बापू ने उनकी प्रसंशा की।
- टिहरी रियासत में अहिंसक सत्याग्रह को सशक्त बनाने में क्रांतिकारी श्रीदेव सुमन की अहम भूमिका रही।
- टिहरी में कारावास झेलते हुए मांगें मनवाने को उन्होंने मई 1944 से आमरण अनशन शुरू किया और 25 जुलाई, 1944 को प्राण त्याग दिए।
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पुलिस थाना और चौकियों ने भी कर दिया था आत्मसमर्पण
12 जनवरी 1948 को स्वतंत्रता सेनानी वीर चंद्रसिंह गढ़वाली, त्रेपन सिंह नेगी, देवीदत्त तिवारी, दादा दौलतराम, त्रिलोकीनाथ पुरवार के नेतृत्व में शवयात्रा का आयोजन किया गया।
यह शवयात्रा तीन दिन तक चलती रही। यात्रा से हजारों लोग इससे जुड़ते चले गए। यात्रा मार्ग में पड़ने वाले पुलिस थाने, चौकियों ने भी आत्मसमर्पण कर दिया। जब यात्रा रियासत की राजधानी टिहरी पहुंची तो राजा की फौज ने भी हथियार डाल दिए।