शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी : Independence Day 2022 : अमृतसर के जलियांवाला बाग कांड (Jallianwala Bagh Massacre) के 11 वर्ष बाद उत्तराखंड के टिहरी में भी ऐसी ही घटना हुई थी। तत्कालीन टिहरी रियासत (Tehri State) में उसी तरह की घटना की पुनरावृत्ति हुई। 30 मई 1930 को यमुना नदी के किनारे तिलाड़ी के मैदान में राजशाही ने निहत्थे आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाई थी।
तिलाड़ी के मैदान में बलिदानियों की याद में लगता है मेला
ये ग्रामीण आंदोलनकारी राजशाही से जल जंगल, जमीन के हक-हकूक बचाने को लेकर बैठक कर रहे थे। जिसमें 200 से अधिक ग्रामीणों की मौत और 100 से अधिक घायल हुए थे। साथ ही कई आंदोलनकारियों को यातनाएं भी झेलनी पड़ी। इन सभी बलिदानियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी (Freedom Fighter) का दर्जा दिया गया।
हर वर्ष 30 मई को तिलाड़ी के मैदान में बलिदानियों की याद में मेला होता है। दरअसल सन 1927-28 में तत्कालीन टिहरी राजा नरेंद्र शाह ( Narendra Shah) के कार्यकाल में वन बंदोबस्त हुआ। जिसके कारण ग्रामीणों के जल, जंगल और जमीन की हकबंदी हो गई। जंगलों में पशुओं के चुगान और चरान की अनुमति प्रतिबंधित हो गई है।
वनाधिकारों पर अंकुश लगा तो रवांई घाटी से विद्रोह की आवाज उठी
वन बंदोबस्त का विरोध रवांई परगने (यमुना घाटी) में शुरू हुआ। जो परगना 1815 से लेकर 1824 तक अंग्रेजों के पास था। अंग्रेजों ने प्रशासनिक क्षमता के कारण रवांई परगने को तत्कालीन टिहरी राजा सुदर्शनशाह को सौंपा था। परंतु जब वनाधिकारों पर अंकुश लगा तो रवांई घाटी से विद्रोह की आवाज उठी।
20 मई 1930 को रवांई परगने के एसडीएम सुरेंद्र दत्त की अदालत में वनाधिकार आंदोलन के प्रमुख दयाराम, रुद्रसिंह, राम प्रसाद व जमन सिंह को दोषी घोषित करते सजा सुनाई व टिहरी जेल भेजा। लेकिन डंडालगांव के पास ग्रामीणों ने उन्हें घेर दिया। तत्कालीन डीएफओ ने गोलियां चलाई, जिसमें तीन ग्रामीण मारे गए।
एसडीएम को ग्रामीणों ने बंधक बना लिया। यह खबर जब टिहरी रियायत के दीवान तक पहुंची। उन दिनों राजा नरेंद्र शाह विदेश दौरे पर थे तथा राजा विश्वासपात्र दीवान चक्रधर जुयाल के पास राज्य की निगरानी की जिम्मेदारी थी।
राजा के दीवान ने दिया था विद्रोहियों पर गोली चलाने का आदेश
इतिहासकार शिव प्रसाद डबराल के उत्तराखंड के इतिहास के अनुसार राजा के दीवान चक्रधर जुयाल ने टिहरी सेना प्रमुख कर्नल सुंदर सिंह को विद्रोहियों पर गोली चलाने के आदेश दिए। लेकिन, कर्नल सुंदर सिंह ने जनता का दमन करने से इंकार किया। तो दीवान चक्रधर जुयाल ने उन्हें पद से हटाते हुए टिहरी रियासत से निकाला किया तथा नत्थू सिंह सजवाण को नया सेना प्रमुख बनाया।
नत्थू सिंह सजवाण के नेतृत्व में 30 मई 1930 को टिहरी रियासत की सेना ने निहत्थे आंदोलनकारियों पर गोलिया बरसाई। तिलाड़ी कांड की गूंज अखबारों के जरिये ब्रिटिश हुकूमत तक भी पहुंची।
राजशाही के विरुद्ध यहीं से विद्रोह अंकुरित हुआ। 5-6 मई 1938 में श्रीनगर में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्ष में आयोजित राजनीतिक सम्मेलन में श्रीदेव सुमन ने टिहरी की जनता के कष्टों के बारे में एक प्रस्ताव पारित किया। जो टिहरी रियासत के जुल्मों के विरुद्ध विद्रोह की आग बनी।