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शिक्षा विभाग में कोटीकरण में विसंगति, काउंसिलिंग खत्म; शिक्षक खफा

उत्‍तराखंड में तबादला उद्योग खत्म करने और तबादलों में पारदर्शिता को सरकार नया एक्ट ले तो आई लेकिन पिछले दो साल से इस पर अमल नहीं हो सका है।

By Edited By: Published: Wed, 15 May 2019 09:16 PM (IST)Updated: Thu, 16 May 2019 03:34 PM (IST)
शिक्षा विभाग में कोटीकरण में विसंगति, काउंसिलिंग खत्म; शिक्षक खफा
शिक्षा विभाग में कोटीकरण में विसंगति, काउंसिलिंग खत्म; शिक्षक खफा

देहरादून, राज्य ब्यूरो। उत्तराखंड राज्य का विषम भौगोलिक क्षेत्र, सुगम और दुर्गम की सिर्फ एक ही श्रेणी, दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में गांव-गांव में फैले प्राथमिक से लेकर माध्यमिक के सरकारी विद्यालयों के कोटीकरण के लिए एक ही मानक। साथ में एक्ट में काउंसिलिंग की खत्म की गई व्यवस्था सूबे के सबसे बड़े महकमे शिक्षा में कार्यरत तकरीबन 70 हजार शिक्षकों को रास नहीं आ रही है। शिक्षक संगठनों की मानें तो इस लचर एक्ट को भी अमलीजामा पहनाने में सरकार के दम फूल रहे हैं। रिक्त पदों के सिर्फ 10 फीसद ही तबादले किए जाने के प्रावधान को लेकर शिक्षकों में असंतोष गहरा गया है। उधर, शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने कहा कि एक्ट को लेकर शिक्षकों की आपत्तियों का परीक्षण कराया जाएगा।

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प्रदेश में तबादला उद्योग खत्म करने और तबादलों में पारदर्शिता को सरकार नया एक्ट ले तो आई, लेकिन पिछले दो साल से इस पर अमल नहीं हो सका है। शिक्षक संगठन एक्ट में विसंगतियों से खफा हैं। उनकी आपत्ति है कि एक्ट में विद्यालयों और शिक्षकों को ध्यान में नहीं रखा गया है। शिक्षकों के लिए पहले लागू किए गए तबादला एक्ट में दुर्गम और सुगम की कई श्रेणियां तय की गईं थीं। वहीं इन श्रेणियों के मुताबिक विद्यालयों के कोटीकरण की व्यवस्था की गई थी। नई व्यवस्था में काउंसिलिंग की व्यवस्था भी समाप्त की गई है। 

राजकीय शिक्षक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष कमल किशोर डिमरी और महामंत्री सोहन सिंह माजिला का कहना है कि विद्यालयों के कोटीकरण में सुगम और दुर्गम की अलग-अलग श्रेणियां होनी आवश्यक हैं। विद्यालयों की अन्य सरकारी दफ्तरों के साथ तुलना नहीं की जा सकती। प्राथमिक से लेकर माध्यमिक तक सैकड़ों विद्यालय पर्वतीय क्षेत्रों में गांव-गांव तक फैले हैं। सुगम और दुर्गम क्षेत्रों की प्रकृति में बड़ा अंतर है। लिहाजा कोटीकरण की सिर्फ एक ही श्रेणी से शिक्षकों को हांका नहीं जाना चाहिए। 

कमोबेश यही तर्क उत्तराखंड प्राथमिक शिक्षक के प्रदेश अध्यक्ष दिग्विजय सिंह चौहान का भी है। उनका कहना है कि तबादला एक्ट में शिक्षकों की जरूरतों को सिरे से खारिज किया गया है। काउंसिलिंग की व्यवस्था खत्म कर दी गई है। कोटीकरण में विसंगति दूर कर और काउंसिलिंग का बंदोबस्त कर एक्ट को शिक्षकों के लिहाज से न्याय संगत बनाने की आवश्यकता है। शिक्षकों के उक्त संगठन एक्ट में संशोधन पर जोर तो दे रहे हैं, लेकिन उन्हें मौजूदा एक्ट में भी 10 फीसद अनिवार्य तबादले का प्रावधान किए जाने पर सख्त आपत्ति है। शिक्षक समुदाय का कहना है कि इसे दस फीसद से बढ़ाकर न्यूनतम 50 फीसद किया जाना चाहिए। उधर, संपर्क करने पर शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने कहा कि एक्ट में विसंगतियों की शिक्षक संगठनों की ओर से उठाई जा रही मांगों का परीक्षण कराया जाएगा। सरकार का पहला उद्देश्य न्यायप्रिय व्यवस्था लागू करना है। आचार संहिता खत्म होने के तुरंत बाद महकमे की बैठक बुलाई जाएगी। 

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