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    उत्तराखंडी चाय में लीजिए औषधीय गुणों से लबरेज बुरांश और टिमरू का स्वाद

    एक दौर में बुलंदियों पर रही उत्तराखंड की चाय में अब औषधीय गुणों से लबरेज फूल-पौधों का स्वाद भी मिलेगा। उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड यह पहल करने जा रहा है। इसके तहत बुरांश टिमरु हल्दी तुलसी व अदरक का फ्लेवर उत्तराखंड-टी में देने की तैयारी है।

    By Sunil NegiEdited By: Updated: Sun, 07 Feb 2021 06:05 AM (IST)
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    एक दौर में बुलंदियों पर रही उत्तराखंड की चाय में अब औषधीय गुणों से लबरेज फूल-पौधों का स्वाद भी मिलेगा।

    केदार दत्त, देहरादून। एक दौर में बुलंदियों पर रही उत्तराखंड की चाय में अब औषधीय गुणों से लबरेज फूल-पौधों का स्वाद भी मिलेगा। उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड यह पहल करने जा रहा है। इसके तहत बुरांश, टिमरु, हल्दी, तुलसी व अदरक का फ्लेवर 'उत्तराखंड-टी' में देने की तैयारी है। बोर्ड ने क्वालिटी कंट्रोल अथारिटी आफ इंडिया को सैंपल भेजे हैं। वहां से हरी झंडी मिलते ही राज्य में 'फ्लेवर्ड टी' का उत्पादन शुरू हो जाएगा। जाहिर है कि इससे यहां की चाय को फिर से देश-दुनिया में पहचान मिल सकेगी।

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    अतीत में देखें तो वर्ष 1835 में अंग्रेजों ने सबसे पहले चाय के दो हजार पौधों की खेप उत्तराखंड क्षेत्र में भेजी। वर्ष 1838 में जब यहां की चाय कोलकाता भेजी गई तो कोलकाता चैंबर्स आफ कामर्स ने इसे प्रत्येक कसौटी पर खरा पाया। इसके बाद तो देहरादून, अल्मोड़ा, चमोली समेत कई जगह चाय की खेती होने लगी। स्वतंत्रता से पहले तक यहां 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में चाय की खेती हो रही थी। बाद में चाय का रकबा जरूर घटा, मगर यह देश-विदेश में अपनी महक बिखेरती रही। वक्त के करवट बदलने पर यहां चाय की खेती सिमटने लगी।

    उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद जब उत्तराखंड बना तो वर्ष 2002-03 में यहां चाय विकास बोर्ड का गठन किया गया। बोर्ड ने प्रयास किए, मगर अभी भी चमोली, अल्मोड़ा, बागेश्वर, नैनीताल, चंपावत, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग व पौड़ी जिलों में केवल 1400 हेक्टेयर में ही खेती हो रही है। इससे हर साल करीब 90 हजार किलोग्राम ग्रीन टी व ब्लैक टी उत्पादित हो रही है।

    अब बदली परिस्थितियों में चाय की खेती को बढ़ावा देकर इससे रोजगार के अवसर सृजित करने पर फोकस किया गया है। इसी कड़ी में चाय विकास बोर्ड ने उत्तराखंड में पाए जाने वाले औषधीय पादप व पुष्पों के फ्लेवर को चाय में समाहित करने का निर्णय लिया है। बोर्ड के निदेशक संजय श्रीवास्तव के अनुसार बुरांश (रोडोडेंड्रान), टिमरु (जैंथेजाइलम अरमेटम) के अलावा हल्दी, तुलसी, अदरक का फ्लेवर यहां की चाय में देने की पहल की जा रही है। बुरांश के फूल और टिमरू हृदय, उदर समेत अन्य रोगों के उपचार में लाभकारी हैं, जबकि हल्दी, तुलसी, अदरक के फायदों से हर कोई वाकिफ है। उन्होंने उम्मीद जताई कि क्वालिटी कंट्रोल अथारिटी आफ इंडिया से जल्द ही फ्लेवर्ड टी को हरी झंडी मिल जाएगी।

    ब्रांडिंग व मार्केटिंग पर फोकस

    बोर्ड के निदेशक के मुताबिक उत्तराखंड में पैदा होने वाली चाय गुणवत्ता के मामले में असम की चाय से कहीं भी कमतर नहीं है। देशभर में उत्तराखंड टी की ब्रांडिंग की रूपरेखा तैयार की जा रही है। उत्पादित चाय का विपणन देश के विभिन्न हिस्सों में किया जाएगा। इसके अलावा राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों और प्रमुख आउटलेट में भी चाय की सप्लाई की जाएगी।

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