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    Suniye Sarkar Uttarakhand Ki Pukar: उत्‍तराखंड में सच्चाई का सामना कर ही थामना पड़ेगा पलायन

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Mon, 07 Mar 2022 08:34 AM (IST)

    Suniye Sarkar Uttarakhand Ki Pukar दैनिक जागरण की ओर से नई सरकार के लिए एजेंडा तैयार करने के अभियान चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत रविवार को देहरादून म ...और पढ़ें

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    देहरादून स्थित दैनिक जागरण कार्यालय सभागार में पलायन पर विमर्श करते विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ।

    राज्य ब्यूरो, देहरादून। 21 साल के हो चुके उत्तराखंड में गांवों से हो रहा पलायन एक ऐसा विषय है, जिसका अभी तक समाधान नहीं हो पाया है। वह भी तब जबकि सभी यह जानते हैं कि पलायन एक बड़ी समस्या के रूप में सामने है। इसके कारण क्या हैं और समाधान क्या होना चाहिए, इससे भी हर कोई भलीभांति विज्ञ है। इस परिदृश्य के बीच जमीनी वास्तविकता को समझते हुए तंत्र को आगे कदम बढ़ाने होंगे। पलायन थामने के लिए विशेष अभियान चलाने की आवश्यकता है। इसके लिए बनने वाली नीतियों, योजनाओं, कार्यक्रमों को लेकर प्रत्येक स्तर पर जिम्मेदारी, जवाबदेही तय होनी चाहिए।

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    'दैनिक जागरण' की ओर से नई सरकार के लिए एजेंडा तैयार करने के अभियान के अंतर्गत रविवार को देहरादून में दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित राउंड टेबल कांफ्रेंस में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने अपनी राय खुलकर जाहिर की। इसके अलावा वेबिनार, चौपाल समेत इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म और व्यक्तिगत रूप से भी संपर्क कर आमजन की राय ली गई। उनका कहना है कि पलायन की रोकथाम को मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत तो है ही, अफसरशाही को भी सोच में बदलाव लाना होगा। गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं के विस्तार के साथ ही रोजगार-स्वरोजगार के अवसर सृजित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

    आर्थिकी से जुड़ा है पलायन

    यदि आर्थिकी मजबूत होगी तो पलायन पर भी अंकुश लगेगा। विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में इस दृष्टिकोण से देखें तो प्रतिव्यक्ति आय के आंकड़ों की चमक सुकून देती है, लेकिन वास्तविकता कुछ और है। तीन मैदानी जिलों और शेष 10 पर्वतीय जिलों में प्रतिव्यक्ति आय में जमीन-आसमान का अंतर है। कहने का आशय ये कि राज्य के प्रत्येक जिले और विकासखंड की अपनी अलग परिस्थितियां हैं। मैदानी और पर्वतीय जिलों के मध्य आर्थिकी की खाई को पाटने के लिए ऐसे कदम उठाने की दरकार है, जिससे ग्रामीणों की आय के स्रोतों में वृद्धि हो। इस दिशा में पर्यटन, कृषि, मनरेगा, स्थानीय संसाधनों पर आधारित उद्यमों को बढ़ावा, गुणवत्तापूर्ण व रोजगारपरक शिक्षा, कौशल विकास, भूमि बंदोबस्त, पर्यटन-तीर्थाटन के लिए अलग-अलग नीति, स्वरोजगार में कदम बढ़ाने वालों को प्रोत्साहन, यहां के उत्पादों की ब्रांडिंग जैसे विषयों पर खास ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके लिए गंभीरता से प्रयास हों तो पलायन थमेगा और गांवों की रौनक फिर से लौटेगी।

    ढांचागत सुविधाओं पर हो फोकस

    विषम परिस्थितियों वाले उत्तराखंड के गांवों में ढांचागत सुविधाओं का अभाव भी पलायन की बड़ी वजह है। मूलभूत सुविधाएं न होने से लोग पहाड़ छोड़कर मजबूरी में शहरी क्षेत्रों की तरफ आ रहे हैं और वहां भी स्थिति कम विकट नहीं है। ऐसे में गांवों में ढांचागत सुविधाओं के विकास के मद्देनजर जो भी योजनाएं बनें, वे गांव केंद्रित हों। साथ ही बजट का सदुपयोग हो। विकास के केंद्र में आमजन होना चाहिए। योजनाओं की मानीटरिंग की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि गांव खुशहाल व समृद्ध हों, इसके लिए विभागों की जिम्मेदारी व जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए। नौकरशाही को जवाबदेह कैसे बनाया जाना है, इसके लिए नई सरकार को प्रभावी पहल करनी होगी।

    कृषि-बागवानी से बदलेगी तस्वीर

    राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में खेती की जोत बिखरी और छोटी हैं। ऐसे में पारंपरिक कृषि में वह बात नही रही। इसे देखते हुए नकदी फसलों पर फोकस करने के साथ ही कृषि उत्पादकता बढ़ाने को कदम उठाने होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि कृषि का बुनियादी ढांचा सुधारने के लिए कृषि और उसके रेखीय विभागों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। खेती में यहां की परिस्थितियों के अनुसार नवोन्मेष और नवीनतम तकनीकी का समावेश होना चाहिए। सिंचाई के सीमित साधनों को देखते हुए टपक सिंचाई कारगर साबित हो सकती है। जरूरत हर स्तर पर प्रभावी पहल करने की है। मनरेगा को खेती से जोडऩा होगा। खेती-किसानी संवरेगी तो गांवों में समृद्धि व खुशहाली आएगी। जब खेती लाभकारी होगी तो पलायन भी थमेगा।

    रोजगार एवं स्वरोजगार के अवसर

    पलायन का मुख्य कारण पहाड़ के गांवों में आजीविका व रोजगार के अवसर न होना है। बेहतर भविष्य की आस में लोग शहरों की ओर भाग रहे हैं। यह ठीक है कि गांव में सभी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, लेकिन रोजगार, स्वरोजगार के अवसर तो सृजित किए जा सकते हैं। इसके लिए विभिन्न स्वरोजगारपरक योजनाओं का लाभ युवा उठा सकते हैं, लेकिन इसके लिए सबसे पहले कौशल विकास पर ध्यान देना होगा। छोटे-छोटे उद्यमों को बढ़ावा देने के साथ ही यहां की परिस्थितियों के अनुसार खाद्य प्रसंस्करण जैसी इकाइयां स्थापित हो सकती हैं। स्वरोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर सृजित हों, इसके तंत्र को अपनी जिम्मेदारी का ढंग से निर्वहन करना होगा। उद्यम स्थापना के मद्देनजर प्रक्रियागत खामियों को दूर कर इनका सरलीकरण करना होगा। यह भी देखने की जरूरत है कि युवा वर्ग क्या चाहता है, उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप योजनाओं को धरातल पर मूर्त रूप दिया जाना चाहिए।

    पर्यटन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं

    प्रकृति ने उत्तराखंड को भरपूर नेमत दी हैं। ऐसे में पर्यटन के क्षेत्र में यह अपार संभावनाओं वाला प्रदेश है और इसमें पलायन को थामने की पूरी शक्ति है। होम स्टे जैसी योजनाएं इसमें कारगर हो सकती हैं, लेकिन यह भी देखना होगा कि सिर्फ होम स्टे खोल देने भर से काम नहीं चलेगा। इसके लिए कौशल विकास महत्वपूर्ण कड़ी है। स्मार्ट विलेज की अवधारणा को मूर्त रूप देना होगा। न सिर्फ होम स्टे, बल्कि पर्यटन से जुड़ी सभी गतिविधियों के लिए यह आवश्यक है। साथ ही सरकार को चाहिए कि वह पर्यटन विकास की योजनाओं की प्रभावी ढंग से मानीटरिंग सुनिश्चित करे।

    सुलझानी होंगी योजनाओं की उलझनें

    मूलभूत सुविधाओं के विस्तार और रोजगार-स्वरोजगार की योजनाओं की राह में उलझनें भी कम नहीं हैं। मैदानी और पहाड़ी भूगोल को ध्यान में रखते हुए योजनाओं के निर्माण का विषय अभी भी बना हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि जो भी योजनाएं बनें, वे गांव व व्यक्ति केंद्रित हों। इनमें स्थानीय समुदाय की भागीदारी हो, जैसा वह चाहता है उसी हिसाब से योजनाएं बननी चाहिए। इसके साथ ही पर्यावरणीय समेत अन्य कारणों के समाधान को भी गंभीरता के साथ कदम उठाने होंगे।

    हर स्तर पर जवाबदेही आवश्यक

    जवाबदेही का विषय अक्सर चर्चा के केंद्र में रहता है। समग्र रूप में देखें तो तंत्र की बेपरवाही गांवों के विकास और वहां मूलभूत सुविधाओं के विस्तार के मामले में भारी पड़ रही है। इस दृष्टिकोण से राजनीतिज्ञों के साथ ही नौकरशाहों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। सोच में बदलाव लाते हुए तंत्र को जवाबदेह बनाना होगा। जिस विभाग का जो कार्य है, उसे वह पूरी जिम्मेदारी से पूर्ण करे। गांवों की तरक्की के लिए सोच में बदलाव हर स्तर पर जरूरी है।

    पलायन: अपेक्षा

    1-पर्वतीय गांवों में बुनियादी सुविधाओं का तेजी से विकास

    2-समयबद्ध अभियान चलाकर पलायन पर लगाई जाए रोक

    3-पर्वतीय गांवों में नकदी फसलों को मिले प्रोत्साहन

    4-ब्लाक स्तर पर सुदृढ़ की जाए आर्थिक स्थिति

    5-पर्वतीय क्षेत्र को लेकर बदले सरकारी तंत्र की सोच

    6-महिलाओं के विकास को ध्यान में रखकर बने नीति

    7-उत्पादकता और समृद्धि से जोड़े जाएं पर्वतीय गांव

    8-कृषि व उद्यानिकी को ध्यान में रखकर हो ढांचागत विकास

    9-गांवों को विकास का केंद्र बनाकर हो नियमित मानीटङ्क्षरग

    10-कृषि उत्पादन और कार्यों से मनरेगा को जोड़ा जाए

    11-पहाड़ी उत्पादों की हो ब्रांडिंग और बने कोल्ड चेन

    12-गांवों में युवाओं और मानव संसाधन को कौशल प्रशिक्षण

    13-आइटीआइ, पालीटेक्निक में साफ्ट स्किल ट्रेनिंग पर जोर

    14-निजी विश्वविद्यालयों के अनिवार्य हों हिल कैंपस

    15-गांवों में पहुंचे कृषि शिक्षण संस्थान और वैज्ञानिक

    16-सरकारी सेवाओं में जिले के स्थान पर बने ब्लाक कैडर

    17-ब्लाक स्तर पर सरकारी कार्मिकों के लिए आवास व्यवस्था

    18-पारंपरिक कौशल विकास से स्वरोजगार को बढ़ावा

    19-सीमांत क्षेत्रवासियों को सुरक्षा प्रहरी मानते हुए प्रोत्साहन

    20-उच्च व मध्य हिमालयी क्षेत्र के लिए अलग नीति नियोजन

    21-पर्वतीय क्षेत्र में टपक (ड्रिप) सिंचाई पर हो विशेष जोर

    22-ग्रीन इकोनोमी की ओर कदम बढ़ाए उत्तराखंड

    23-ग्रामीण क्षेत्रों में स्टार्ट अप को विशेष प्रोत्साहन जरूरी

    24-लक्ष्य आधारित जवाबदेही से काम करें सरकारी विभाग

    25-लुहार, बढ़ई जैसे श्रम आधारित छोटे व्यवसायों को बढ़ावा

    26-स्मार्ट सिटी की तर्ज पर स्मार्ट विलेज का हो विकास

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    उत्‍तराखंड में निर्जन हो चुके गांव

    • पौड़ी------- 517
    • अल्‍मोड़ा-----162
    • बागेश्‍वर-----147
    • टिहरी-------142
    • हरिद्वार----120
    • चंपावत-----108
    • चमोली-----106
    • पिथौरागढ़--98
    • रुद्रप्रयाग---93
    • उत्‍तरकाशी--83
    • नैनीताल----66
    • यूएसनगर--33
    • देहरादून ---27

    सुनिए सरकार: आंकड़े

    • 3946 गांवों के 1.19 लाख व्यक्तियों ने स्थायी रूप से किया पलायन
    • 6338 गांवों के 383726 ने अस्थायी रूप से किया पलायन, लेकिन गांवों से नाता बरकरार
    • चीन व नेपाल सीमा से सटे उत्तराखंड में 1702 गांव हो चुके हैं जनविहीन
    • उत्तराखंड के गांवों से पलायन की दर 36.2 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत 30.6 प्रतिशत से ज्यादा है

    गांवों से पलायन

    -50.16 प्रतिशत ने आजीविका-रोजगार

    -15.21 प्रतिशत ने शिक्षा

    -8.83 प्रतिशत ने चिकित्सा सुविधा

    -5.61 प्रतिशत ने वन्यजीवों से फसल क्षति

    -5.44 प्रतिशत ने कृषि पैदावार में कमी

    -3.74 प्रतिशत ने मूलभूत सुविधाओं का अभाव

    -2.52 प्रतिशत ने परिवार व सगे संबंधियों की देखा-देखी

    -8.49 प्रतिशत ने अन्य कारणों से

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    गांवों से पलायन कहां से कहां

    -19.46 प्रतिशत ने अपने नजदीकी कस्बों में

    -15.18 प्रतिशत ने अपने जिला मुख्यालय में

    -55.69 प्रतिशत ने राज्य के अन्य जिलों में

    -28.72 प्रतिशत उत्तराखंड से बाहर

    -0.96 ने देश से बाहर

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    -डा एसएस नेगी (उपाध्यक्ष, उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग) ने कहा कि गांवों से पलायन राज्य के सभी जिलों में है, लेकिन अल्मोड़ा व पौड़ी में यह अधिक है। असल में पलायन आर्थिकी से जुड़ा विषय है। पर्वतीय और मैदानी जिलों में प्रतिव्यक्ति आय में अंतर से इसे समझा जा सकता है। पलायन थामने के लिए राजनीतिज्ञों व नौकरशाहों को सोच बदलनी होगी। अगले पांच साल तक गांवों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। महिलाओं के लिए अलग से नीति बनानी होगी। होना यह चाहिए कि विकास की कोपलें पहाड़ से नीचे की तरफ फूटें।

    -लोकेश नवानी (अध्यक्ष, सामाजिक संस्था धाद) का कहना है कि पहाड़ के गांवों को उत्पादक बनाना समय की मांग है। कृषि का जो बुनियादी ढांचा है, उसमें सुधार के साथ ही विभागों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। मनरेगा को इससे जोड़ा जाना आवश्यक है। गांव में जो भी कार्य हों, वे उत्पादकता से संबंधित होने चाहिए। बजट का सदुपयोग होना चाहिए। यह सुनिश्चित हो कि विकास के केंद्र में गांव का व्यक्ति हो। गांवों में उत्पादकता पर काम हो रहा है या नहीं, इसकी नियमित रूप से मानीटरिंग होनी चाहिए।

    -प्रो एचसी पुरोहित (डीन दून विश्वविद्यालय) का कहना है कि पलायन की थ्योरी पुल व पुश पर केंद्रित है। पुल में आकर्षण है और पुश में विवशता। शहरी क्षेत्रों में सुविधाएं होने पर लोग वहां आकर्षित हो रहे हैं, जबकि गांव में इनके अभाव में वहां से पलायन कर रहे हैं। पहाड़ की खेती को लाभकारी बनाने की जरूरत है। उत्पादों की ब्रांडिंग, मार्केटिंग जरूरी है। कौशल विकास को प्रशिक्षण की व्यवस्था ब्लाक स्तर पर होनी चाहिए। शिक्षा व स्वास्थ्य से जुड़े संस्थानों के कैंपस पहाड़ में हों। जितने भी निजी शिक्षण संस्थान हैं, उनके हिल कैंपस अनिवार्य रूप से हों।

    -एसपी नौटियाल (सेवानिवृत्त संयुक्त आयुक्त, जीएसटी) का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्र में पांच-पांच गांवों के केंद्र में छोटे-छोटे व्यवसाय व उद्यमों के प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। परंपरागत उद्यमों को बढ़ावा देने को भी समय के हिसाब से प्रशिक्षण जरूरी है। कृषि में सुधार के लिए वैज्ञानिकों की सेवाएं लेनी होंगी। स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत हों, इसके लिए हिल कैडर शुरू किया जाना चाहिए। राज्य के विभिन्न विभागों, आयोगों, प्राधिकरणों के 170 मुख्यालयों में से 134 देहरादून में हैं। ये सुनिश्चित हो कि जो भी कार्यालय अथवा संस्थान खुलें, वे पहाड़ में खुलें।

    -रतन सिंह असवाल (संयोजक, पलायन: एक चिंतन) का कहना है कि स्वरोजगार की योजनाओं को धरातल पर मूर्त रूप देने के लिए आवश्यक है कि इनसे संबंधित प्रक्रियागत खामियों को दूर कर इनका सरलीकरण किया जाए। यह देखने की भी जरूरत है कि राज्य के तकनीकी संस्थानों से पासआउट होने वाले प्रशिक्षणार्थियों की परफार्मेंस क्या है। कहने का आशय यह कि कौशल विकास को नए कलेवर में निखारना होगा। इससे संबंधित प्रशिक्षण लक्ष्य आधारित होने आवश्यक हैं। प्रदेश में कृषि-बागवानी को प्रोत्साहन देने की जरूरत है।

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    -अनूप नौटियाल (अध्यक्ष एसडीसी फाउंडेशन) का कहना है कि पलायन की रोकथाम के लिए राज्य सरकार को तो प्रभावी कदम उठाने ही होंगे, केंद्र सरकार को भी हस्तक्षेप करते हुए इसके लिए आगे आना होगा। केंद्र इसके लिए कोई प्राधिकरण अथवा आयोग बना सकता है। पलायन थामने के लिए आवश्यक है कि सरकार, अफसरशाही और समाज सभी सजगता के साथ आगे आएं। गांवों के विकास और वहां रोजगार के अवसर सृजित करने को जो भी कार्य किए जाएं, उनमें सरकार फैसिलिटेटर की भूमिका को जिम्मेदारी से निभाए।

    -राम प्रकाश पैन्यूली (सदस्य, ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग) का कहना है कि गांवों के लिए यहां की परिस्थितियों के हिसाब से नीतियां, योजनाएं बनानी होंगी। प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र में वर्ष 1960 से भूमि बंदोबस्त नहीं हुआ है, यह होना चाहिए। इसके साथ ही श्रेणीवार भूमि का विभाजन कर चकबंदी की जा सकती है। योजनाओं के लिए उच्च और मध्य हिमालय के लिए अलग मानक होने चाहिए। यह सुनिश्चित होना चाहिए कि प्रत्येक परिवार का एक व्यक्ति सेवायोजित हो। सीमांत क्षेत्रों से यह पहल की जा सकती है। पर्यटन-तीर्थाटन वर्षभर रहना चाहिए। साथ ही सरकार को प्रवासी मंत्रालय भी बनाना चाहिए।

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    -तन्मय ममगाईं (सचिव, सामाजिक संस्था धाद) का कहना है कि पलायन की समस्या के समाधान के लिए अभियान मोड में कार्य होना चाहिए। ऊपर से लेकर नीचे तक प्राथमिकताएं निर्धारित करनी होंगी। जो भी लोग स्वरोजगार के क्षेत्र में हाथ आजमा रहे हैं या आजमाना चाहते हैं, सरकार व समाज को उनके साथ खड़ा होना होगा। युवाओं की अपेक्षाओं को समझते हुए आज की परिस्थितियों के हिसाब से नीतियां बनानी होंगी। स्मार्ट सिटी की तर्ज पर स्मार्ट विलेज की परिकल्पना को भी साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे।

    -एसएस कोठियाल (सेवानिवृत्त आईजी बीएसएफ) का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर नई सरकार को विशेष रूप से फोकस करना चाहिए। यदि इन तीनों विषयों पर गंभीरता से कार्य हो तो पलायन पर काफी हद तक अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर मुहैया कराने को पर्यटन, ट्रैकिंग जैसी गतिविधियों को महत्व दिया जाना चाहिए। खेती की तस्वीर संवारने के लिए विशेषज्ञों की सेवाएं ली जानी चाहिए। वन्यजीवों से फसल सुरक्षा भी महत्वपूर्ण विषय है। इन सभी विषयों के समाधान को मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी आवश्यक है।

    -डा.अनीता रावत (निदेशक, उत्तराखंड साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर) का कहना है कि पलायन रोकने के लिए दूरदर्शी प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। मसलन, विज्ञान शिक्षा का सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक विस्तारीकरण, स्थानीय ग्रामीण परिवेश में जीवन को सुगम और सरल बनाने के लिए तकनीकी का उपयोग जरूरी है। माडर्न तकनीकी की पहुंच सुगम बनाई जानी चाहिए, जिससे आजीविका के साधन आसानी से सुलभ हों। गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार जैसी मूलभूत सुविधाओं के विस्तार और रोजगार के अवसर पलायन रोकने में कारगर सिद्ध होंगे।

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