सुनिए सरकार उत्तराखंड की पुकार : समन्वित स्वास्थ्य नीति से मजबूत होगा बुनियादी ढांचा
Suniye Sarkar Uttarakhand Ki Pukar उत्तराखंड में पांचवीं विधानसभा का गठन होने जा रहा है। जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरने और राज्यवासियों की पुकार सुनन ...और पढ़ें

राज्य ब्यूरो, देहरादून। प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं अभी तक पटरी पर नहीं आ पाई हैं। राज्य गठन के 21 वर्षों बाद भी स्वास्थ्य सेवाओं को सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक पहुंचाना चुनौती बना हुआ है। आज भी गर्भवती महिलाओं के राह चलते प्रसव की घटनाएं सामने आ रही हैं, तो दुर्घटना में घायलों को इलाज के लिए अब भी बड़े अस्पतालों तक लाना मजबूरी है। कहने को तो ब्लाक स्तर तक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) हैं, लेकिन इनमें चिकित्सक, पैरामेडिकल स्टाफ व उपकरणों का अभाव है। जहां उपकरण हैं, वहां इनके संचालन के लिए तकनीशियन नहीं हैं। इस कारण पीएचसी व सीएचसी बहुत अधिक प्रभावी नहीं कहे जा सकते। मैदानी क्षेत्रों में भी सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सकों का अभाव है। निजी क्षेत्रों में सुविधाएं हैं, लेकिन यहां इलाज का खर्च आमजन की जेब वहन नहीं कर सकती। मौजूदा परिस्थितियों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती इस दिशा में बदलाव ला सकती है। पीएचसी व सीएचसी मजबूत होंगी, तो रोगियों को शुरुआत में ही बेहतर इलाज मिल सकेगा। पहाड़ में सरकारी व निजी क्षेत्र का बेहतर तालमेल स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती दे सकता है। 'दैनिक जागरण' ने स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े 200 से अधिक प्रतिष्ठित चिकित्सकों, विषय विशेषज्ञों, प्रबुद्धजनों व आमजन से वेबिनार, राउंड टेबल कांफ्रेंस, फेसबुक, ट्विटर व चौपाल कार्यक्रम के माध्यम से सुझाव आमंत्रित किए। सभी ने कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं की चुनौती से पार पाने के लिए पर्याप्त बजट और चिकित्सकों द्वारा तैयार एक ठोस व पारदर्शी स्वास्थ्य नीति के साथ मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत बताई। नई सरकार से चिकित्सक व विषय विशेषज्ञ मजबूत इच्छाशक्ति के साथ स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की अपेक्षा कर रहे हैं।
पर्वतीय क्षेत्रों में सिर्फ चिकित्सक नहीं, पूरा स्टाफ जरूरी
प्रदेश में तीन जिलों को छोड़ शेष सभी पर्वतीय जिले हैं। इन पर्वतीय जिलों में जिला चिकित्सालयों के साथ ही उप जिला स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खोले गए हैं। इन स्थानों पर चिकित्सकों की कमी तो है ही, जांच की पूरी सुविधा भी नहीं है। मशीनें हैं तो तो इन्हें चलाने वाले नहीं। इसके लिए पर्वतीय क्षेत्र में चिकित्सक, पैरामेडिकल स्टाफ व तकनीशियन, यानी पूरे स्टाफ को एक साथ तैनात करने की जरूरत महसूस की जा रही है। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे आमजन को एक ही छत के नीचे उचित इलाज मिल सकेगा। स्वास्थ्य कर्मियों को मूलभूत सुविधाएं यानी आवास, भोजन व सुरक्षा के लिए कदम उठाने की भी जरूरत है। देहरादून के वरिष्ठ फिजिशियन डा केपी जोशी का कहना है कि पहाड़ों में चिकित्सकों की तैनाती के लिए एक ठोस नीति जरूरी है, जिसमें सख्ती के साथ ही व्यवहारिक पहलू शामिल हों। इसमें चिकित्सकों की तैनाती के दौरान पर्वतीय जिलों में रहने की अनिवार्यता की जाए और इन्हें उचित सुविधा व सुरक्षा भी दी जाए।
महिला स्वास्थ्य को पीएचसी व सीएचसी की मजबूती आवश्यक
पर्वतीय क्षेत्रों में महिला मरीजों को अधिक दिक्कतों को सामना करना पड़ता है। चाहे गर्भवती महिलाएं हों या फिर पेड़ से गिरकर चोट खाई महिलाएं, गांवों तक सड़कें न होने के कारण पहले इन्हें मुख्य मार्गों तक लाना किसी कठिन परीक्षा से कम नहीं। अस्पताल पहुंचने में देरी के कारण कारण कई बार महिला रास्ते में ही बच्चे को जन्म दे देती है। यह स्थिति नवजात व मां, दोनों के लिए घातक है। पर्वतीय जिले महिला रोग व हड्डी रोग विशेषज्ञों की कमी से जूझ रहे हैं। केवल जांच के लिए इन्हें कई घंटों अथवा दिन का पीड़ादायक सफर तय कर मैदानी जिलों के अस्पतालों में आना पड़ रहा है। टिहरी में तैनात डा अर्चिता जैन कहती हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों के पीएचसी और सीएचसी में प्राथमिक जांच की सुविधा नहीं हैं। ऐसे में इन्हें जिला मुख्यालयों तक आना पड़ता है। यहां जांच के लिए उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ता है। ब्लाक स्तर पर बने पीएचसी और सीएचसी में प्राथमिक जांच की सुविधाएं विकसित कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
पर्वतीय क्षेत्रों में निजी स्वास्थ्य क्षेत्र दे सकता है मजबूती
पर्वतीय क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए निजी स्वास्थ्य क्षेत्र के सहयोग की जरूरत महसूस की जा रही है। दरअसल, पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह सरकारी व्यवस्था के भरोसे है। कई बार खर्च करने की क्षमता होने के बावजूद मरीजों को पर्वतीय क्षेत्रों में इलाज नहीं मिल पाता। इस कारण इन्हें मैदानी जिलों अथवा दूसरे राज्यों में इलाज के लिए जाना पड़ता है। विशेषज्ञों का मानना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में यदि निजी क्षेत्र भी स्वास्थ्य सुविधाएं विकसित करें तो इससे क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाओं में व्यापक बदलाव देखने को मिलेगा। उत्तरकाशी जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा एसडी सकलानी कहते हैं कि जब तक पर्वतीय क्षेत्रों में समानांतर स्वास्थ्य सेवाएं विकसित नहीं होंगी, तब तक यहां सुधार गति नहीं पकड़ पाएगा। प्रतिस्पर्धा होने से स्वास्थ सेवा में सुधार की उम्मीद अधिक है। निजी क्षेत्रों को प्रोत्साहित करने के लिए उचित कदम उठाने की जरूरत है।
मरीजों का ही नहीं, तीमारदारों का भी रखा जाए ख्याल
प्रदेश के सभी निवासियों के लिए अटल आयुष्मान योजना लागू की गई है। इससे प्रदेश के सभी सरकारी और चिह्नित निजी अस्पतालों में इलाज हो रहा है। इससे गंभीर बीमारी के मरीजों का बड़े अस्पतालों में इलाज किया जा रहा है। यह बात अलग है कि पर्वतीय व मैदानी, दोनों ही जगह कैंसर, किडनी रोग व हृदय रोग जैसे गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी है। इस कारण मरीज को कभी मैदानी जिलों, तो कभी राज्य के बाहर जाना पड़ता है। यहां मरीजों का इलाज तो आयुष्मान कार्ड से हो जाता है लेकिन तीमारदार के सामने रहने व खाने की समस्या आती है। श्री महंत इंद्रेश अस्पताल के डा. पंकज गर्ग कहते हैं कि उनके यहां पहाड़ से आने वाले कैंसर के मरीजों का इलाज तो आयुष्मान कार्ड से हो जाता है, लेकिन साथ आने वालों का रहने व खाने में काफी खर्च हो जाता है। ऐसे में कई मरीज इलाज पूरा किए बिना ही वापस लौट जाते हैं और फिर नहीं आ पाते। सरकार को इसके लिए कैंसर जागरूकता और तीमारदारों के लिए ठहरने व खाने की सस्ती व्यवस्था भी करनी चाहिए।
ठोस व पारदर्शी स्वास्थ्य नीति ला सकती है बदलाव
प्रदेश में स्वास्थ्य सेवा के लिए ठोस व पारदर्शी स्वास्थ्य नीति बड़ा बदलाव ला सकती है। इस नीति के केंद्र में आमजन को रखकर स्वास्थ्य सेवाओं के विकास की योजना बनाई जानी चाहिए। इसमें स्वास्थ्य विभाग के प्राथमिक ढांचे के साथ ही स्वास्थ्य कर्मियों की तैनाती का व्यवस्था हो। भौगोलिक स्थिति के हिसाब से दवा खरीद से लेकर उपकरण खरीद का प्रविधान हो। आमजन से लेकर स्वास्थ्य कर्मियों के बारे में चिंता हो। विषय विशेषज्ञ अनूप नौटियाल का कहना है कि प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के विकास को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा। प्रदेश में मशीन के साथ ही स्टाफ भी चाहिए। यातायात व संचार सुविधाएं दुरुस्त हों। इसके लिए उत्तराखंड को केंद्र में रखकर एक विस्तृत नीति बनाई जानी चाहिए।

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