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    सुनिए सरकार उत्तराखंड की पुकार : औद्योगिक विकास की संभावनाएं अपार, सहयोग दे सरकार

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Fri, 04 Mar 2022 09:29 AM (IST)

    Suniye Sarkar Uttarakhand Ki Pukar उत्‍तराखंड में औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। बस जरूरत है सरकार सहयोग दे। यह बात दैनिक जागरण ने पूरे प्रदेश ...और पढ़ें

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    दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित वेबिनार में आनलाइन जुड़े लोग। जागरण

    राज्य ब्यूरो, देहरादून: किसी भी राज्य के आर्थिक विकास में औद्योगिक क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान होता है। उत्तराखंड 21 वर्ष की आयु का युवा राज्य है, जिसे विकास के पथ पर अग्रसर करने के लिए औद्योगिक विकास को गति देना आवश्यक है। यह जरूर है कि अभी औद्योगिक क्षेत्रों को बढ़ावा देने की कसरत मैदानी जिलों तक ही सिमटी दिख रही है। पर्वतीय क्षेत्रों में सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों के अंतर्गत हथकरघा, मसाला, खाद्य प्रसंस्करण, जड़ी-बूटी उत्पादन व प्रसंस्करण जैसे उद्यमों के साथ ही पर्यटन, सेवा के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। इस दिशा में कदम तो बढ़ाए गए हैं, लेकिन लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अभी लंबा फासला तय करना शेष है। राज्य की आर्थिक उन्नति के लिए यहां की परिस्थितियों व संसाधनों के आधार पर औद्योगिक विकास का स्वरूप तय करना होगा और इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। प्रदेश में आने वाली नई सरकार से उद्यमियों व जनता की अपेक्षा है कि वह अगले पांच सालों के लिए ऐसा रोडमैप तैयार करे, जो प्रदेश में औद्योगिकीकरण को गति दे। 'दैनिक जागरण' ने पूरे प्रदेश में वेबिनार, वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर के माध्यम से और राउंड टेबल कांफ्रेंस, चौपाल कार्यक्रम का आयोजन कर उद्यमियों व आमजन से जो संवाद किया, उसमें यह बात उभर कर सामने आई।

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    उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद से ही औद्योगिक विकास के लिए कई कदम उठाए गए। केंद्र के औद्योगिक पैकेज व राज्य सरकार के सहयोग से यहां बड़े और छोटे उद्योगों को विस्तार मिला। औद्योगिक पैकेज समाप्त होने के बाद बड़े उद्योगों का आना कम हुआ। इस समय प्रदेश में 330 बड़े और 68888 सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग हैं। इनमें कार्यरत कार्मिकों की संख्या 4.66 लाख से अधिक है। ये सभी उद्योग राज्य में 52 हजार करोड़ से अधिक का पूंजी निवेश कर रहे हैं। मूलभूत सुविधाओं के अभाव और पेचीदा नियमों के कारण छोटे उद्योग अपेक्षित रफ्तार नहीं पकड़ पा रहे हैं।

    उत्तराखंड में छोटे-बड़े उद्योग मैदानी व पर्वतीय, दोनों क्षेत्रों में स्थापित हैं। मैदानी क्षेत्र के उद्यमियों की चुनौतियां अलग हैं तो पर्वतीय क्षेत्रों में लगने वाले उद्योगों की चुनौतियां कुछ और हैं। प्रदेश में उद्योगों की स्थापना की दिक्कतें पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक हैं। वह भी तब, जब प्रदेश का 86 प्रतिशत भूभाग पर्वतीय है।

    'दैनिक जागरण' द्वारा देहरादून मुख्यालय में आयोजित वेबिनार में उद्यमियों ने उनके सामने आ रही चुनौती और इसके समाधान को लेकर अपनी राय साझा की। उनका मानना है कि पर्वतीय क्षेत्र में स्वास्थ्य, पर्यटन, औद्यानिकी, कृषि व मनोरंजन संबंधित उद्योगों की भरपूर संभावनाएं हैं। यहां ये उद्योग स्थापित तो हैं लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण ये विस्तार नहीं कर पा रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण यहां उद्योग स्थापित करने की प्रक्रिया का जटिल होना भी है। जो उद्योग यहां स्थापित हैं, उनके सामने कच्चे माल को लाने और फिर तैयार किए गए उत्पाद को बेचने की चुनौती है। इन उत्पादों का विपणन करने के लिए योजनाएं तो बनाई गई हैं लेकिन इन पर काम नहीं हो रहा है। उद्योगों के लिए दी गई छूट का पूरा लाभ उद्यमियों को नहीं मिल पा रहा है। यहां तक कि सब्सिडी मिलने में भी दिक्कतें आ रही हैं। पहाड़ों में जड़ी-बूटियां प्रचुर मात्रा में हैं, लेकिन इनका दोहन करना आसान नहीं। पर्यावरणीय कानून इसकी राह रोके हुए हैं।

    मैदानी क्षेत्र में लघु व मध्यम उद्योग स्थापित हैं, लेकिन इनके सामने भी विस्तार की चुनौती मुंह बाए खड़ी है। इसका प्रमुख कारण जमीन की अधिक कीमतों का होना है। दरअसल प्रदेश में उद्योग तीन प्रमुख जिलों हरिद्वार, देहरादून और ऊधमसिंह नगर में हैं। अब यहां जमीन की उपलब्धता काफी कम है। इस कारण इसकी कीमतें बढ़ रही हैं। इसके अलावा निर्बाध विद्युत आपूर्ति की मांग और विद्युत की महंगी दरें भी नए उद्योगों के कदम प्रदेश में आने से रोक रही हैं। यहां लाजिस्टक हब यानी माल, सेवाओं या सूचनाओं को योजनाबद्ध तरीके के उसके उत्पति वाले स्थान से उपयोग वाले स्थान पर भेजने का तंत्र विकसित करने की जरूरत महसूस की जा रही है। इसके लिए एक फ्रेट कारिडोर यानी माल ढुलाई गलियारे की आवश्यकता है। सरकार द्वारा नए उद्योगों को आकर्षित करने और उन्हें विस्तार देने के लिए बनाया गया सिंगल विंडो सिस्टम भी प्रभावी रूप से कार्य नहीं कर रहा है। इस कारण उद्योगों को अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने में ही महीनों लग जाते हैं। प्रदेश के सख्त पर्यावरणीय मानक भी उद्योगों के विस्तार के कदमों को थाम रहे हैं।

    उद्योग जगत उम्मीद जता रहा है कि जो भी नई सरकार आए, वह उद्योगों के सामने आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाएगी। कोई जरूरी नहीं कि इसके लिए लंबी-चौड़ी कसरत की जाए। प्रक्रिया को सरल करने के साथ ही उद्योगों को लगाने के लिए करों में छूट देकर प्रदेश में औद्योगिक विकास को गति दी जा सकती है।

    उद्योग: चुनौतियां

    • 1-उद्योग स्थापना के लिए नए सिडकुल क्षेत्र की कमी
    • 2-औद्योगिक भूमि की लागत अन्य प्रदेशों की तुलना में ज्यादा
    • 3-उद्योगों के लिए आधारभूत ढांचा, सभी तरह की कनेक्टिविटी
    • 4-बिजली का हाई टैरिफ, सब्सिडी का समय पर न मिलना
    • 5-उद्यम स्थापना को स्वीकृति, ऋण की प्रक्रिया का सरलीकरण
    • 6-खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के लिए कच्चे माल की उपलब्धता
    • 7-पर्वतीय क्षेत्र में औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने को आकर्षक नीति
    • 8-पहाड़ में सूक्ष्म व लघु उद्यम स्थापना के लिए उद्यमियों को सुविधाएं
    • 9-उद्यमिता को बढ़ावा देने को हर जिले में उद्यमिता पार्कों की स्थापना
    • 10-पर्वतीय क्षेत्र में सड़क और संचार सुविधा में गुणात्मक सुधार
    • 11-औद्योगिक इकाइयों की स्थापना में पर्यावरण कानूनों की बंदिश
    • 12-पहाड़ में कृषि एवं बागवानी उत्पादों के लिए कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था
    • 13-मैदानी व पर्वतीय क्षेत्र में कुशल मानव संसाधन की उपलब्धता
    • 14-पहाड़ में उद्योग स्थापना के लिए जीएसटी में छूट का प्रविधान
    • 15-प्रदेश में ग्रीन इंडस्ट्री यानी प्रदूषण मुक्त उद्योगों की स्थापना
    • 16-औद्योगिक क्षेत्रों में जल निकासी व्यवस्था और ट्रांसपोर्ट नगर
    • 17-पर्वतीय क्षेत्रों में कनेक्टिविटी के लिए रोपवे का निर्माण
    • 18-पर्यटन के लिए होम स्टे जैसी सुविधाओं का विकास
    • 19-पहाड़ में पर्यटन व उद्यानीकरण के लिए लीज पर भूमि
    • 20-सेवा क्षेत्र को प्रोत्साहित करने को ब्लाक स्तर पर प्रशिक्षण
    • 21-खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों से पहाड़ के किसानों को जोड़ना

    उद्यमियों की अपेक्षा

    • 1-उद्योगों को रियायती दर पर मिले भूमि, बनाए जाएं नए सिडकुल
    • 2-मल्टीमाडल लाजिस्टिक हब और रेलवे सहारनपुर कोरिडोर से जुड़े हरिद्वार
    • 3-बिजली की निर्बाध आपूर्ति के साथ तर्कसंगत किया जाए विद्युत टैरिफ
    • 4-बड़े, छोटे व लघु उद्योगों के लिए सिंगल विंडो प्रणाली में हो सुधार
    • 5-राज्यभर में छोटे-छोटे स्थानों पर औद्योगिक क्षेत्रों का हो विकास
    • 6-आइआइटी रुड़की को औद्योगिक विकास के लिए अनुसंधान से जोड़ें
    • 7-मध्यम श्रेणी उद्योगों के प्रोत्साहन को विकसित हों उद्यमिता पार्क
    • 8-पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योगों को जीएसटी में छूट की व्यवस्था की जाए
    • 9-खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के लिए बनाएं न्यूट्रिशिनल एनालिसिस लैब
    • 10-पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे और कुटीर उद्योगों को ज्यादा ऋण दें बैंक
    • 11-छोटे उद्योग-धंधों के लिए वर्षभर संचालित करें चार धाम यात्रा
    • 12-पहाड़ों में जड़ी-बूटी, सगंध पौधों, हेल्थकेयर उद्यमों को मिले प्रोत्साहन
    • 13-वनों में उपलब्ध जड़ी-बूटी के वैज्ञानिक दोहन को मिले अनुमति
    • 14-योग, वेलनेस, आयुष, मनोरंजन समेत सेवा सेक्टर में स्थापित हों उद्यम
    • 15-एक जिला और दो उत्पाद की नीति को बने ठोस योजना
    • 16-रूरल कनेक्टिविटी के तहत गांवों को संपर्क मार्गों से जोड़ा जाए
    • 17-पर्वतीय जिलों में बेहतर कनेक्टिविटी से मिल सकेगा कच्चे माल
    • 18-दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे आर्थिक गलियारा तेजी से बने
    • 19-उद्योगपतियों का समूह तैयार करे उद्यमों को नया व अपडेट पाठ्यक्रम
    • 20-भारत-चीन सीमा पर विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) बनाया जाए
    • 21-उद्योगों को हो एक्स सर्विसमैन डेवलपमेंट बोर्ड का गठन।

    विकास की राह को विशेषज्ञों ने किया मंथन

    • सोनिया गर्ग (अध्यक्ष, भारतीय उद्योग परिसंघ उत्तराखंड) ने कहा कि उत्तराखंड का 86 प्रतिशत भूभाग पर्वतीय है और वहां का विकास महत्वपूर्ण है। यह संभावनाओं वाला क्षेत्र है। वहां हर्बल व एरोमा इंडस्ट्री, हेल्थ, वेलनेस, टूरिज्म, सेवा जैसे क्षेत्रों में बेहतर किया जा सकता है। इसके लिए बेहतर कनेक्टिविटी, आइटी नेटवर्क, बुनियादी आधारभूत ढांचा, ईज आफ लिविंग पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसमें सरकार और अधिकारियों के सहयोग की जरूरत है। मैदानी क्षेत्रों में उद्योगों के दृष्टिकोण से देखें तो भूमि की लागत का विषय आता है और फिर तकनीकी व मशीनरी का। राज्य में भूमि की लागत बहुत अधिक है। इस कारण न तो उद्योगों का विस्तार हो रहा और न नए उद्योग आ रहे। इस पर ध्यान देना होगा। सहारनपुर से डेडिकेटड फ्रेट ईस्टर्न कारीडोर से कनेक्टिविटी लाभकारी सिद्ध होगी। इसके अलावा उद्योगों के लिए बिजली का हाई टैरिफ है, जबकि नियमित रूप से आपूर्ति उद्योगों को नहीं मिल पाती। यह समस्या भी दूर होनी चाहिए।
    • पंकज गुप्ता (अध्यक्ष इंडस्ट्रीज एसोसिएशन आफ उत्तराखंड) का कहना है कि यदि औद्योगिक क्षेत्र में वर्ष 2025 तक उत्तराखंड को अग्रणी राज्य बनाना है तो नई सरकार को प्रबुद्धजनों व उद्यमियों के साथ विमर्श करना होगा। राज्य के औद्योगिक विकास के लिए शार्ट, मीडियम और लांग टर्म की योजना बनानी होगी। इसके साथ ही उद्योग जगत की क्या-क्या दिक्कते हैं, उन्हें रेखांकित करते हुए छह महीने के भीतर उनका समाधान भी करना होगा। विमर्श यहां रहने वाले स्थायी प्रबुद्ध वर्ग से होना चाहिए। जो उत्तराखंड से पलायन कर गए हैं, वे राज्य के विकास को नजदीक से नहीं समझ सकते।
    • राजाराम जगूड़ी (उत्तरकाशी) ने कहा कि प्रदेश में चारधाम यात्र को 12 माह खोले जाने की जरूरत है। इससे प्रदेश के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। यहां सुविधाओं को बढ़ाए जाने की भी जरूरत है। स्थानीय निवासियों को इससे रोजगार मिलेगा।
    • नमन चंदोला (पौड़ी) ने कहा कि प्रदेश के हर पर्वतीय जिले में एक ऐसा उद्योग है, जिसकी अपनी अलग पहचान है। यहां छोटे व कुटीर उद्योगों में संभावना अधिक है। इन्हें लगाने की प्रक्रिया सरल की जानी चाहिए।
    • दीपक बधानी (चमोली) ने कहा कि प्रदेश में रोजगार सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग अधिक हैं। इस क्षेत्र में कम काम किया गया है। पर्यटन, योग, शिक्षा और वैदिक शिक्षा के क्षेत्र का विस्तार किया जाना चाहिए। एक जिला-दो उत्पाद योजना पर गंभीरता से काम हो।

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