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    Suniye Sarkar Uttarakhand Ki Pukar: जड़ों से जुड़े हैं उत्तरकाशी की यमुना घाटी के ग्रामीण, इसलिए यहां पलायन न के बराबर

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Mon, 07 Mar 2022 11:08 AM (IST)

    Suniye Sarkar Uttarakhand Ki Pukar उत्‍तराखंड का उत्‍तरकाशी जनपद ऐसा है जहां पलायन ना के बराबर है। इसका मुख्‍य कारण यहां के लोग जड़ों से जुड़े हैं। यह ...और पढ़ें

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    सीमांत जनपद उत्तरकाशी की यमुना घाटी (रवाईं) कृषि और बागवानी के लिए प्रदेश में अपनी खास पहचान बनाए हुए है।

    जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी। सीमांत जनपद उत्तरकाशी की यमुना घाटी (रवाईं) कृषि और बागवानी के लिए प्रदेश में अपनी खास पहचान बनाए हुए है। लेकिन, इससे खास बात यह है कि इस घाटी के नौगांव, पुरोला और मोरी ब्लाक के ग्रामीण आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं, जिससे यहां पलायन न के बराबर है। उत्तराखंड के अन्य क्षेत्रों को प्रेरणा दे रही यमुना घाटी में कृषि, बागवानी, नकदी फसलों के साथ ही पर्यटन और तीर्थाटन से स्वरोजगार के अवसर बढ़े। इतना ही नहीं ग्रामीण युवाओं ने लघु कुटीर उद्योग भी शुरू किए हैं।

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    उत्तरकाशी जिले की यमुना घाटी लाल चावल, मटर, टमाटर, सेब के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। फल एवं सब्जी उत्पादन से मोरी, नौगांव व पुरोला ब्लाक के 30 हजार किसान जुड़े हुए हैं। यहां काश्तकार खेतों को बंजर रखना अशुभ मानते हैं तथा मेहनती हैं। राज्य बनने के बाद इस घाटी ने फल उत्पादन और नकदी फसलों के उत्पादन में खास पहचान बनाई। टमाटर और मटर की सामूहिक खेती करनी शुरू की, जिसका काश्तकारों को बड़ा फायदा हुआ।

    पुरोला ब्लाक में लाल चावल और मोरी व नौगांव में सेब उत्पादन के साथ चौलाई, आलू का अच्छा उत्पादन होता है। नौगांव ब्लाक के अधिकांश गांव चारधाम यात्र मार्ग से जुड़े हैं, जिन्हें तीर्थाटन के रूप में स्वरोजगार मिल रहा है। जबकि मोरी ब्लाक के कई गांव पर्यटक गांव के रूप में विशेष पहचान बना रहे हैं।

    यमुना घाटी में प्रति वर्ष उत्पादन की अनुमानित स्थिति

    -9 हजार मीटिक टन सेब

    -17 हजार मीटिक टन टमाटर

    -15 हजार मीटिक टन आलू

    -40 हजार मीटिक टन लाल धान

    -15 हजार मीटिक टन मटर

    -20 हजार मीटिक टन राजमा

    आशिता डोभाल (सामाजिक कार्यकर्त्‍ता, रवाईं घाटी उत्तरकाशी) का कहना है कि यमुना घाटी में पलायन न होने का बड़ा कारण पारंपरिक कृषि, बागवानी, नकदी फसल का अच्छा उत्पादन होना है। इसके साथ ही पर्यटन और तीर्थाटन ने भी यहां ग्रामीणों को गांव के पास ही स्वरोजगार दिया है। यमुना व रवाईं घाटी के ग्रामीण अपनी संस्कृति के प्रति समर्पित और मेहनती हैं। कुछ युवा गांव में लघु कुटीर उद्योग से ग्रामीणों को रोजगार दे रहे हैं।

    डा. आरएस बिजल्वाण (शिक्षाविद पुरोला उत्तरकाशी) का कहना है कि यमुना व रवाईं घाटी में पलायन न होने के पीछे भौगोलिक स्थित भी है। खेती बागवानी के लिए उपयुक्त भूमि, पानी और उचित जलवायु है। ऐसे में काश्तकारी से जुड़े किसानों को सुविधाएं मिलनी जरूरी है, जिससे किसानों का खेती करने से मोह भंग न हो। यहां कोल्ड स्टोर, मंडी, आधुनिक कृषि की जानकारियों का अभी अभाव है।

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