सुनिए सरकार उत्तराखंड की पुकार : आधारभूत ढांचा सुदृढ़ करे नई सरकार तो खुलेंगे निवेश के द्वार
Suniye Sarkar Uttarakhand Ki Pukar उत्तराखंड की नई सरकार से उद्यमियों को उम्मीद विषय पर दैनिक जागरण ने राउंड टेबल परिचर्चा आयोजित की। जिसमें उद्योगपत ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, देहरादून। उत्तराखंड के उद्यमियों को आने वाली सरकार से काफी उम्मीदें हैं। उनका कहना है कि नई सरकार औद्योगिक विकास की मजबूत नींव तैयार करे तो निवेश की गति भी बढ़ेगी और रोजगार के नए द्वार भी खुलेंगे। आर्थिक विकास और पलायन जैसी विकट समस्याओं का समाधान भी औद्योगिक जगत से ही निकलेगा।
गुरुवार को दैनिक जागरण ने पटेलनगर स्थित एक भवन में 'नई सरकार से उद्यमियों को उम्मीद' विषय पर राउंड टेबल परिचर्चा का आयोजन किया। इसमें प्रदेश में औद्योगिक विकास को लेकर उद्यमियों ने नई सरकार के समक्ष आने वाली चुनौतियां गिनाईं। साथ ही इन चुनौतियों के समाधान का रास्ता भी दिखाया। परिचर्चा की अध्यक्षता वरिष्ठ उद्योगपति अरुण नैथानी ने की। उन्होंने कहा कि वर्ष 2002 से 2007 के बीच नारायण दत्त तिवारी सरकार ने औद्योगिक विकास का जो ढांचा खड़ा किया था, उसे कैसे गति प्रदान की जाए। इस पर मंथन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आइटी पार्क को इस अवधारणा के साथ स्थापित किया गया था कि यहां सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग निवेश के लिए उद्योगपति आकर्षित होंगे, लेकिन अफसोस की बात है कि आज आइटी पार्क की खाली जमीन पर रिहायशी फ्लैट बनाए जा रहे हैं।
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परिचर्चा के समन्वयक एल्फा पैकेजिंग कंपनी के प्रबंध निदेशक राकेश भाटिया ने कहा कि बिना लैंड बैंक के कोई भी राज्य औद्योगिक विकास नहीं कर सकता। राज्य गठन के बाद से आज तक कोई भी नया औद्योगिक क्षेत्र शासन स्तर पर अधिसूचित नहीं हुआ है। कहने को उद्योग निदेशालय ने उद्योग स्थापित करने के लिए सिंगल विंडो सिस्टम तैयार किया है, लेकिन जब कोई उद्योगपति आवेदन करता है तो पोर्टल में अन्य विभागों की आपत्तियों में ही उलझ कर रह जाता है। इस प्रक्रिया को सुगम बनाने की जरूरत है।
भारत-चीन सीमा पर बने एसईजेड
उद्योगपतियों ने नई सरकार को सुझाव दिया कि यदि वह उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा क्षेत्र में स्पेशल इकानोमिक जोन (एसईजेड) बनाती है तो इससे सीमांत जिलों से पलायन भी थमेगा और उद्योगपति आकर्षित होंगे। यह एसईजेड क्षेत्र टैक्स फ्री हो। सरकार इन क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं जुटाए। इससे उद्योगों को स्थापित करने में सुगमता होगी। चीन सीमा से लगे उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ जनपदों के गांवों के लिए यह औद्योगिक चेन न केवल सीमा प्रहरी का काम करेगी, बल्कि इससे स्थानीय कच्चा माल इन उद्योगों में खपेगा और स्थानीय युवाओं को घर के समीप रोजगार भी मिलेगा।
उत्तराखंड एक्ससर्विस विकास बोर्ड बने
उद्यमियों ने कहा कि उत्तराखंड सैनिक बहुल राज्य है। यहां हजारों की संख्या में ऐसे सैनिक हैं, जो सेना में विभिन्न ट्रेड में रहे हैं और अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इन सेवानिवृत्त सैनिकों को उद्योगों में उनकी दक्षता के अनुसार नौकरी मिले। इसके लिए 'उत्तराखंड एक्ससर्विस डेवलपमेंट बोर्ड' की स्थापना की जाए। यह बोर्ड उद्योगों की जरूरत के अनुसार पूर्व सैनिकों का उद्योगों में प्लेसमेंट करे। इससे पूर्व सैनिकों को सम्मान की नौकरी भी मिलेगी और उद्योगों को दक्ष मैन पावर भी प्राप्त होगा।
उद्योगपति तैयार करें तकनीकी पाठ्यक्रम
उद्योगपति ने इस बात पर चिंता जताई कि सरकारें औद्योगिक क्षेत्रों में 70 प्रतिशत स्थानीय व्यक्तियों को रोजगार मुहैया करने को लेकर दबाव बनाती है, लेकिन स्किल कामगार दिए जाने पर कभी भी ध्यान नहीं दिया गया। आज देखने में आता है कि जो युवा आइटीआइ व इंजीनियरिंग कालेजों से पढ़ाई कर उद्योगों में नौकरी के लिए आते हैं, उन्हें वर्तमान औद्योगिक जरूरत का कोई ज्ञान नहीं होता है, क्योंकि जिस ट्रेड की उन्होंने पढ़ाई की वह बहुत पुराने हो चुके हैं और उद्योगों के चलन से बाहर हो चुके हैं। नई सरकार उद्योगपतियों की एक कमेटी बनाए जो उद्योगों की जरूरतों के अनुसार ट्रेड को डिजाइन करे और उसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए। यह कमेटी कानूनी रूप से अधिकार संपन्न हो। फिर इन नए ट्रेड को अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीई) व स्टेट काउंसिल आफ वोकेशनल ट्रेनिंग (एससीवीटी) क्रमश: देश व राज्य स्तर पर आइटीआइ पाठ्यक्रम के लिए अपनी ओर से मंजूरी दे।
क्या कहते हैं उद्यमी
उत्तराखंड बने 22 साल हो गए हैं लेकिन उद्योग स्थापित करने के लिए लैंड बैंक की बनाने की ओर कभी नहीं सोचा गया। जब तक सरकार ने लैंड बैंक नहीं बनाया तब तक एमएसएमई सेक्टर के उद्योग आकर्षित नहीं हो सकते हैं। उद्योगपति की पहली सबसे बड़ी जरूरत भूमि है। जमीन मिल गई तो तभी आगे अन्य सुविधाओं पर बात हो सकती है। नई सरकार को इसपर गंभीरता से कमद उठाने होंगे।
- राकेश भाटिया, चेयरमैन इंडियन इंडस्ट्रीज उत्तराखंड
सब्सिडी के बिना एमएसएमई सेक्टर के उद्योग चलाना उद्यमियों के समक्ष कठिन चुनौती है। बड़े औद्योगिक घराने तो शेयर मार्केट की कमाई से भी उद्योग चला सकते हैं, लेकिन छोटे उद्योगों को उत्तराखंड जैसे पर्वतीय जिलों में सरकार अनुदान की सख्त जरूरत होती है। यह अनुदान बिजली, कच्चे माल, सीजीएसटी में दी जा सकती है। कोरोनाकाल में सरकार की ओर से एक रुपये की भी उद्योगों को मदद नहीं मिली।
-अरुण नैथानी, प्रबंध निदेशक कंबाइंड आफ इंजीनियर पटेलनगर
उत्तराखंड के उद्योगों में 70 प्रतिशत स्थानीय को रोजगार तभी मिल सकता है, जब सरकार स्किल मैन पावर तैयार करे। वर्तमान में प्रदेश की आइटीआइ व इंजीनियङ्क्षरग कालेजों से आने वाले युवा उद्योगों की तकनीकी स्टाफ की जरूरत को पूरा करने में समक्ष नहीं हैं। दून का आइटी पार्क जिस उद्देश्य के लिए बनाया गया था, वह उसके अनुरूप विकसित नहीं हुआ। नई सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा।
- राकेश सल्ल, प्रबंध निदेशक, ईको बैग इंडस्ट्रीज, सेलाकुई
लघु उद्योगों को बढ़ाना देना है तो नई सरकार को एमएसएमई के लिए कैपिटल की व्यवस्था करनी होगी। क्योंकि बैंक आज उद्यमियों को रियायती दरों पर ऋण देेने से कतरा रहे हैं। बिना कैपिटल के सूक्ष्म एवं लघु उद्योग विकसित नहीं हो सकते हैं। नई सरकार स्थानीय व बाहर से खरीदे जाने वाले कच्चे माल के आयात नीति को भी सरल बनाए।
-मनोज गुप्ता, प्रबंध निदेशक हिल स्ट्रोन, पटेलनगर
नई सरकार माडल ट्रेड के साथ पारंपरिक ट्रेड के व्यापार को भी गंभीरता से ले। देखने में आ रहा है माडल ट्रेड के बढ़ते चलन से स्थानीय उत्पाद लगभग बंद होने की कगार पर है। नई सरकार से अपेक्षा है कि वह बड़े ग्रोसरी हाउस शापिंग माल में 20 से 30 प्रतिशत स्थानीय उत्पादों की ब्रिकी भी अनिवार्य करे। तभी पारंपरिक ट्रेड को बढ़ाया मिल सकेगा। दून में ही मसाले और बैकरी उत्पादों से हजारों परिवार जुड़े हैं।
-पवन अग्रवाल, प्रबंध निदेशक, चिराग इंडस्ट्रीज, मोहब्बेवाला
युवा उद्यमी नई सरकार से उम्मीद करते हैं कि वह स्टार्टअप को बड़े परिपेक्ष्य में देखे। अभी तक स्टार्टअप की जो परिभाषा दी गई है उनमें केवल नवाचार शामिल है, लेकिन युवा उद्यमी चाहते हैं कि स्टार्टअप से जुड़़े नवाचार के साथ नए उद्यम भी शामिल हों। अभी उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा। नवाचार तो एक प्रकार से अविष्कार से जुड़ा है। सफल उद्यमी बनने के लिए अविष्कार से ज्यादा नए तरीके से उत्पाद को लांच करना है।
-रितिका सिंघल, निदेशक, दीपक स्कैल, पटेलनगर

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