पर्वतीय क्षेत्र के स्कूलों में आधुनिक शिक्षा से वंचित हो रहे छात्र
प्रदेश में तमाम दावों के बावजूद अभी तक पर्वतीय क्षेत्र के स्कूलों में विद्यार्थी आधुनिक शिक्षा से वंचित हैं। इसका मुख्य कारण स्कूलों में विद्युत व्यवस्था न होना है। प्रदेश के पर्वतीय व ग्रामीण क्षेत्रों में दो हजार से अधिक स्कूल ऐसे हैं जिनमें विद्युत कनेक्शन नहीं हैं।
विकास गुसाईं, देहरादून। प्रदेश में तमाम दावों के बावजूद अभी तक पर्वतीय क्षेत्र के स्कूलों में विद्यार्थी आधुनिक शिक्षा से वंचित हैं। इसका मुख्य कारण स्कूलों में विद्युत व्यवस्था न होना है। प्रदेश के पर्वतीय व ग्रामीण क्षेत्रों में दो हजार से अधिक स्कूल ऐसे हैं, जिनमें विद्युत कनेक्शन नहीं हैं। इस कारण इन स्कूलों के छात्र कंप्यूटर शिक्षा व विज्ञान सीखने के लिए बुनियादी प्रयोग की सुविधा भी नहीं ले पा रहे हैं। अचरज यह कि इन स्कूलों के लिए कंप्यूटर तक खरीद लिए गए हैं। स्कूलों में बिजली पहुंचाने के तमाम जतन किए गए, लेकिन ये अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाए। इसकी वजह यहां की भौगोलिक स्थिति है। पर्वतीय क्षेत्रों में स्कूलों तक कनेक्शन पहुंचाने में विभाग ने काफी परेशानियां गिनाईं। ऐसे में यहां सोलर ऊर्जा पैनल लगाने का निर्णय लिया गया। बंदरों द्वारा इसे तोड़ने के खतरे को देखते हुए इस पर भी बात आगे नहीं बढ़ पाई।
परवान नहीं चढ़ पाई स्मार्ट मीटर योजना
प्रदेश में बिजली की कमी का एक मुख्य कारण लाइन लॉस है। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए हर घर में स्मार्ट लीटर लगाने का फैसला लिया। शुरुआत में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में कुछ स्थानों पर ये मीटर लगाए भी गए। इनकी खूबी यह थी कि इसमें आसानी से पता चल सकता था कि बिजली की खपत कितनी हुई और बिलिंग कितनी बिजली की हुई। इसकी एक बड़ा खासियत यह भी थी कि निश्चित अवधि में बिल जमा न होने, मीटर से छेड़छाड़ होने और कनेक्शन की क्षमता से अधिक बिजली खर्च होने पर विद्युत आपूर्ति स्वत: बंद हो जाती है। बिजली की कमी होने पर कंट्रोल रूम से ही उपभोक्ता का लोड कम किया जा सकता है। इस मीटर का इस्तेमाल प्रीपेड और पोस्टपेड दोनों तरह से किया जा सकेगा। यह योजना खासी बेहतर है, लेकिन अभी तक यह परवान नहीं चढ़ पाई है।
सेवा नियमावली के इंतजार में कई महकमे
प्रदेश के सरकारी विभागों में से तकरीबन 60 फीसद की अभी तक सेवा नियमावली नहीं बन पाई है। राज्य गठन को 20 वर्ष हो चुके हैं, इस अवधि में विभागों की संख्या 75 पहुंच चुकी है। जो कुछ नए विभाग बनाए गए, उनका अपना प्रशासनिक ढांचा व सेवा नियमावली है। शेष विभाग अभी तक उत्तर प्रदेश की पुरानी नियमावली और ढांचे के अनुसार ही चल रहे हैं। स्थिति यह है कि राज्य गठन के दौरान की विभागीय नियमावलियों में उत्तर प्रदेश सरकार कई बदलाव कर चुकी है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हो पाया है। कर्मचारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वरिष्ठता के मामले कोर्ट कचहरी तक पहुंच रहे हैं। नतीजतन विभागीय पदोन्नति प्रक्रिया लंबित हो रही हैं। इस समय पर्यटन, लेखा परीक्षा, टाउन प्लानिंग आदि कई ऐसे विभाग हैं, जहां पुराने विभागीय ढांचे के अनुसार ही काम हो रहा है। इससे विभागीय कामकाज पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
सड़कों से दूर ऋण की इलेक्ट्रिक बस
प्रदेश सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक बसों के लिए शुरू की गई ऋण योजना के बावजूद एक भी इलेक्ट्रिक बस अभी तक सड़क पर नहीं उतर पाई। दरअसल, प्रदेश सरकार ने वीर चंद्रसिंह गढ़वाली योजना के अंतर्गत इलेक्ट्रिक व अन्य महंगी बस खरीदने वालों को 50 फीसद तक की सब्सिडी देने का निर्णय लिया। यह भी व्यवस्था की गई कि इलेक्ट्रिक बसों की खरीद करने पर इन्हें परिवहन निगम में लगाया जाएगा। उम्मीद जताई गई कि इसमें काफी युवा आगे आएंगे। योजना फरवरी में शुरू की गई। मार्च में कोरोना के कारण लॉकडाउन हो गया। अनलॉक हुआ तो यात्रियों ने बसों से दूरी बनाए रखी। अब संचालन शुरू हुआ है, लेकिन दूसरे राज्यों के लिए अभी तक बसों को चलाने की अनुमति नहीं मिल पाई है। परिवहन कारोबार बुरी तरह प्रभावित है। इन परिस्थितियों में सरकार की इस योजना के अंतर्गत एक भी बस फिलहाल सड़क पर नहीं उतर पा रही है।