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देहरादून में एक ऐसा कुआं, जहां से आती अजीब-अजीब आवाजें...

राजधानी देहरादून में एक ऐसा कुआं है। जिसमें से अजीब-अजीब आवाजें आती हैं। लोग इसे भुतहा कुआं हैं। कहते हैं अंग्रेज यहां फांसी दिया करते थे।

By sunil negiEdited By: Published: Tue, 28 Jun 2016 08:55 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jun 2016 06:15 AM (IST)

देहरादून, [अंकुर अग्रवाल]: राजधानी देहरादून में गुमनामी के अंधेरों में कैद कईं ऐतिहासिक विरासत हैं, जिसके बारे में शायद ज्यादातर लोग अपरिचित हैं। इन्हीं विरासतों में कैद है कचहरी परिसर में स्थित कुआं। लोगों का कहना है कि यह भुतहा कुआं है। यहां से अजीब-अजीब आवाजें आती हैं।

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अगर कुएं से जुड़ी कहानियों पर गौर करें तो कहा जाता है कि डाकू सुल्ताना ने यहां सुरंग बनाई थी। यह सुरंग यहां से करीब 20 किमी दूर डोईवाला तक जाती है। फिर भी यह कुआं आज गुमनाम जिंदगी जी रहा। अब नगर निगम ने धरोहरों को बचाने की कड़ी में कुएं को गोद लेकर इसे संवारने की तैयारी की है। लगभग एक करोड़ रुपये खर्च कर कुएं का जीर्णोंद्धार व इसके पुराने भवन का सौंदर्यीकरण किया जायेगा। प्रस्ताव बनकर तैयार हो चुका है और जल्द इसके टेंडर जारी किये जाएंगे।
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1823 में अंग्रेजी शासक एफ. जे शोरी ने कुएं का निर्माण कराया था। उन्हीं के नाम पर इसे 'शोरीज वैल' यानी शोरी का कुआं भी कहा जाता है। इसके चारों तरफ दीवार बनाकर इसे विशालकाय आकार दिया है। अब बाहर से खंडहर जैसे दिखने वाले इस कुएं की दीवारें आज भी अपनी बुलंदी की कहानी बयां करती हैं। कुएं के सामने वाले रास्ते को काफी पहले दीवार बनाकर बंद कर दिया। शायद, यहां अनहोनी न हो जाये इसलिए। हालांकि, आसपास के लोगों का कहना है कि इसे बंद करने की मुख्य वजह यहां मौजूद कीमती जमीन है।
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जहां धड़ल्ले से निर्माण किया जा रहा है। कुएं की गहराई इतनी अधिक है कि अगर इसके अंदर पत्थर फेंका जाए तो काफी देर बाद नीचे टकराने पर इसकी हल्की आवाज ऊपर आती है। इसी कुएं के बीच से डाकू सुल्ताना की सुरंग का दरवाजा होने की भी चर्चा सुनी जाती है।
कुएं से सटा है लोक निर्माण विभाग का कार्यालय। जिसका निर्माण 1980 में हुआ था। अंग्रेजी शासन काल में बनायी इस इमारत पर आज भी उस दौर के कई निशां मौजूद हैं। अंग्रेजों के जमाने में यहां उनके सरकारी घोड़ों का अस्तबल होता था। हालांकि किसी भी गजेटियर में न तो अस्तबल का जिक्र है और न कुएं का। आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की नजर में भी यह कुआं नहीं आया, जबकि इसका दफ्तर देहरादून में ही है।
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लोगों को लगता है भूतहा डर
आसपास रहने वाले लोगों से बातचीत की गई तो उनका कहना था कि यह भूतहा कुआं है। यहां से अजीब-अजीब आवाजें आती हैं। स्थानीय निवासी बुजुर्ग ब्रह्मानंद देव ने बताया कि 'ऐसा सुना है कि अंग्रेज यहां फांसी दिया करते थे और उसके बाद लाश कुएं में फेंक देते थे। 1945 के दंगों में भी यहां कई लाशें फेंक दी गई थी।'

लाहौरी ईंट से बना है कुआं
अंग्रेजों के जमाने में मुगल वास्तु के हिसाब से बने कुएं के निर्माण में लाहौरी ईंट का प्रयोग किया है। लेप के रूप में उड़द की दाल इस्तेमाल हुई है। कुएं की गहराई का रहस्य आज भी कायम है।
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जिम्मेदारी को लेकर थी ऊहापोह
किसी भी शहर में मौजूद विरासतों की तीन श्रेणियां होती हैं। पहली वह जो सीधे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत आती हैं और इनमें अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय महत्व की विरासत संजोई जाती हैं। दूसरी श्रेणी में वे विरासतें होती हैं, जिन्हें संरक्षित करने की पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है। तीसरी श्रेणी की विरासतों की जिम्मेदारी उस शहर के स्थानीय निकाय की होती है। अधिकांश शहरों में नगर निकाय के अधीन पुरातत्व अनुभाग होता है, लेकिन दुर्भाग्य है कि देहरादून नगर निगम में यह अनुभाग है ही नहीं। अब चूंकि, बात स्मार्ट सिटी की चल रही और इसमें ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की बात भी है, लिहाजा नगर निगम ने इस कुएं को संवारने की जिम्मेदारी उठा ली है।
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'ये कुआं ऐतिहासिक धरोहर से कम नहीं है। सरकार को इसकी महत्ता को ध्यान में रखकर इसका जीर्णोंद्धार कराना चाहिये था, लेकिन सरकार को हमारी धरोहरों की कोई परवाह नहीं। लिहाजा, अब नगर निगम इस धरोहर का वजूद बचाएगा व इसे शहर के प्रमुख दार्शनिक स्थलों में शामिल करेगा।'
विनोद चमोली, मेयर

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