शहीदों के घर की मिट्टी बिखेरेगी राष्ट्रीय एकता की खुशबू
दून के वीर सपूत सीआरपीएफ के जवान मोहन लाल रतूड़ी के कांवली रोड स्थित आवास व उनके पैतृक गांव से भी मिट्टी ली गई जिसे बुधवार को जम्मू-कश्मीर भेज दिया गया।
देहरादून, जेएनएन। पुलवामा में शहीद जवानों की जन्मभूमि की मिट्टी उनकी कर्मभूमि में भेजी गई है। दून के वीर सपूत सीआरपीएफ के जवान मोहन लाल रतूड़ी के कांवली रोड स्थित आवास व उनके पैतृक गांव से भी मिट्टी ली गई, जिसे बुधवार को जम्मू-कश्मीर भेज दिया गया। इस मिट्टी से भविष्य में वहां एक स्मारक का निर्माण किया जाएगा। वहीं पुलवामा हमले की पहली बरसी पर इस मिट्टी से अखंड भारत का नक्शा तैयार किया जाएगा। यहीं शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी।
बड़े आतंकी हमलों में से एक पुलवामा हमले की 14 फरवरी को पहली बरसी है। गत वर्ष इसी दिन जैश के आतंकवादी ने विस्फोटकों से लदे वाहन से सीआरपीएफ जवानों को ले जा रही बस को टक्कर मार दी थी, जिसमें 40 जवान शहीद हुए थे। इनमें एक जवान मोहन लाल रतूड़ी देहरादून के रहने वाले थे। जिन्होंने देश की सुरक्षा में अपनी जान न्यौछावर कर बलिदान दिया और उत्तराखंड की माटी को भी धन्य कर दिया। उनके बलिदान पर पूरा प्रदेश नमन कर रहा है।
शहीद के दून स्थित घर और उत्तरकाशी स्थित पैतृक गांव की मिट्टी बुधवार को जम्मू-कश्मीर भेजी गई। इस संबंध में डीआइजी सीआरपीएफ दिनेश उनियाल कांवली रोड स्थित एमडीडीए कॉलोनी में शहीद के घर पहुंचे। उन्होंने बताया कि देशभर से शहीदों के घर-आंगन की मिट्टी जम्मू कश्मीर भेजी जा रही है। जहां सीआरपीएफ कैंप में 14 फरवरी को एक भव्य आयोजन होगा। इस मिट्टी से भारत का मानचित्र बनाकर उनकी शहादत को याद किया जाएगा।
इसके अलावा इस मिट्टी से स्मारक भी तैयार होगा। बताया कि पुलवामा हमले की पहली बरसी पर देहरादून स्थित सीआरपीएफ हेडक्वार्टर में भी कार्यक्रम होगा। जिसमें शहीद मोहन लाल रतूड़ी के परिजनों को सम्मानित किया जाएगा।
मजबूत हौसलों के साथ आगे बढ़ रहा शहीद का परिवार
देश की सरहद पर तैनात जवानों का जीवन कितना कठिन है, बयां कर पाना मुश्किल है। इससे कहीं ज्यादा मुश्किल होता है, उनके बिना उनके अपनों का जीवन। किसी जवान की शहादत के बाद परिवार की क्या स्थिति होती है, इसकी आम लोग कल्पना भी नहीं कर सकते। ऐसे में फख्र है, उन परिवारों पर जो इन परिस्थितियों में भी सशक्त होकर खड़े हुए और अपने जज्बे की मिसाल पेश की। ऐसा ही एक परिवार है, पुलवामा हमले में शहीद सीआरपीएफ के जवान मोहन लाल रतूड़ी का। कुछ सरकार ने मदद की और कुछ सीआरपीएफ ने संभाला। आज यह परिवार उस गम से उबरकर फिर उठ खड़ा हुआ है।
मोहनलाल 1988 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। उनके परिवार में पत्नी सरिता, तीन बेटियां और दो बेटे हैं। उनकी शहादत की खबर आई तो परिवार बुरी तरह टूट गया था। लगा कि जैसे सब खत्म हो गया। जो भी कोई उनसे मिलने आता बस दिलासा देता। पर वक्त बदला और परिवार दृढ़ता के साथ आगे बढ़ा।
शहीद की पत्नी का कहना है कि सरकार व समाज ने उन्हें पूरा सम्मान व सहयोग दिया है। यह लोगों का प्यार ही है, जिसने उनके परिवार को उस असहनीय पीड़ा से उबरने में मदद की। उन्होंने बताया कि बड़े बेटे शंकर को राज्य सरकार की तरफ से नौकरी मिल गई है। वह उत्तरकाशी कलक्ट्रेट में लिपिकीय संवर्ग में तैनात हैं। बेटी गंगा ने पिछले साल केंद्रीय विद्यालय आइटीबीपी से अच्छे अंकों के साथ बारहवीं की। अब सीआरपीएफ की मदद से वह कोटा में मेडिकल की कोचिंग ले रही हैं। वह दिन दूर नहीं जब ये लगनशील व दृढ़ संकल्पित बेटी डॉक्टर बन जाएगी। शहीद की एक बेटी वैष्णवी डीएवी पीजी कॉलेज से बीएड कर रही हैं। यह उनकी काबिलियत ही है कि उन्होंने सरकारी सीट प्राप्त की। वह अब सिविल सेवा की भी तैयारी कर रही हैं। इस काम में सीआरपीएफ न केवल उनका मार्गदर्शन, बल्कि आर्थिक रूप से भी मदद कर रही है। उनका छोटा भाई श्रीराम केंद्रीय विद्यालय आइटीबीपी में कक्षा दस में अध्यनरत है। हौसला ऐसा कि वह भी आगे चलकर सैन्य अधिकारी बनना चाहता है। शहीद की सबसे बड़ी बेटी अनुसूया की पहले ही शादी हो चुकी है।
(फोटा: सर्वेश कुमार नौटियाल )
सर्वेश कुमार नौटियाल (शहीद के दामाद) का कहना है कि सरकार व समाज ने न केवल सम्मान, बल्कि हर कदम पर सहयोग भी दिया है। बस यही आशा है कि यह सम्मान आगे भी यूं ही बना रहे। इससे परिवार को हौसला मिलता है।
(फोटो: वैष्णवी)
वैष्णवी (शहीद की बेटी) का कहना है कि मेरे पिता रियल हीरो हैं और मुझे उन पर फख्र है। उन्होंने देश के लिए जो किया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। हम युवाओं को भी यही सोचना चाहिए कि देश के लिए क्या कर सकते हैं।
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(फोटो: श्रीराम)
श्रीराम (शहीद के पुत्र) का कहना है कि मुझे अपने पिता पर गर्व है। देश के लिए जो जज्बा उनके दिल में था, वही हिंदुस्तानी के मन में होना चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि देश ने हमारे लिए क्या किया, बल्कि ये सोचना चाहिए कि हम देश के लिए क्या कर सकते हैं।
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