हिमालय में बर्फ का सूखा पड़ने की चेतावनी, बर्फबारी दिसंबर की जगह फरवरी में शिफ्ट; पिघलने की दर बढ़ी
हिमालय क्षेत्र में बर्फ का सूखा पड़ने की चेतावनी जारी की गई है। बर्फबारी दिसंबर से फरवरी में शिफ्ट हो गई है, जिससे पिघलने की दर बढ़ गई है। जलवायु परिव ...और पढ़ें

ग्लेशियरों की सेहत का अध्ययन करते वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानी डा. मनीष मेहता। स्वयं
सुमन सेमवाल, जागरण देहरादून: आइआइटी जम्मू और आइआइटी मंडी के विज्ञानियों का ताजा अध्ययन हिमालय में बर्फ का सूखा पड़ने की चेतावनी दे रहा है। यह अध्ययन समूचे हिंदूकुश-हिमालय पर आधारित है।
इसमें 17 सालों (वर्ष 1999 से 2016) के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए कहा गया है कि सर्दियों में सामान्य से कम बर्फ गिर रही है और जो बर्फ गिर भी रही है, वह जल्द पिघल जा रही है।
दूसरी तरफ उत्तराखंड हिमालय, लद्दाख और जांस्कर क्षेत्र के ग्लेशियरों पर आधारित देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान का अध्ययन भी यही कहानी बयां कर रहा है। इन क्षेत्रों से भी बर्फ का सूखा पड़ने के संकेत मिल रहे हैं।
क्योंकि, वाडिया के विज्ञानियों ने पाया है कि उत्तराखंड के चौराबाड़ी और डुकरानी ग्लेशियर तेजी बर्फ खो रहे हैं तो लद्दाख का पेंसिलुंगपा ग्लेशियर भी इसी राह पर बढ़ रहा है।
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डा. मनीष मेहता के अनुसार 15 से 20 सालों की अवधि में बर्फबारी के पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है। पहले अधिकतर बर्फबारी दिसंबर- जनवरी माह में होती थी और बर्फ में पानी की मात्रा कम रहती थी।
अधिकतर ठोस बर्फबारी ही होती थी। अब फरवरी-मार्च और अप्रैल तक में बर्फबारी देखने को मिल रही है और इस अवधि की बर्फ में पानी की मात्रा अधिक है। जिस कारण यह बर्फ शीघ्र पिघल रही है। ऐसे में ग्लेशियर कम रीचार्ज हो रहे हैं और अपना द्रव्यमान (मास) खोते जा रहे हैं।
डा. मेहता के अध्ययन के अनुसार लद्दाख का पेंसिलुंगपा ग्लेशियर वर्ष 2015 से 2023 तक प्रति वर्ष 0.59 मीटर वाटर इक्यूवेलेंट की दर से अपना बर्फ का बैंक खोता जा रहा है। इस अवधि में ग्लेशियर ने 08 मीटर तक अपनी मोटाई गंवाई है और 07 से आठ मीटर पीछे भी खिसक गया है।
उत्तराखंड का चौराबाड़ी ग्लेशियर (मंदाकिनी/अलकनंदा/गंगा का स्रोत) इससे कहीं अधिक प्रति वर्ष 0.7 मीटर वाटर इक्यूवेलेंट (वर्ष 2003 से 2012) की दर से अपनी बर्फ खो रहा है।
वहीं, डुकरानी ग्लेशियर (भागीरथी/गंगा का अहम स्रोत) के बर्फ समाप्त होने की दर 0.35 मीटर (19994 से 2013) पाई गई है। गंगोत्री ग्लेशियर की बात की जाए तो यह पहले से ही 19 मीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से पीछे खिसक रहा है।
वरिष्ठ विज्ञानी डा. मेहता के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से जो बर्फबारी के दिनों में कमी और इसके क्रम में बदलाव आया है, यह सब उसी का नतीजा है।
उन्होंने कहा कि करीब 15 से 20 वर्ष पहले जोशीमठ क्षेत्र में 04 से 05 फीट तक बर्फबारी के रिकार्ड हैं, जबकि अब एक फीट भी बर्फ मुश्किल से पड़ रही है। कुछ ऐसा ही हाल राज्य के तमाम हिल स्टेशन में नजर आ रहा है। यह स्थिति हिमालयी क्षेत्रों के भविष्य के लिए सही नहीं है।
हिमाच्छादित अवधि हर साल 0.6 से 1.5 दिन घट रही
हिंदूकुश हिमालय क्षेत्रों में किया गया अध्ययन बताता है कि हिमाच्छादित अवधि हर साल 0.6 से 1.5 दिन घट रही है। अध्ययन में शामिल 17 सालों में यह अवधि 12 से 25 दिन तक कम हुई है।
जिसका मतलब यह है कि सर्दियां कमजोर और छोटी होती जा रही हैं। विज्ञानियों ने पाया कि 3,000 से 6,000 मीटर की ऊंचाई में बर्फ पिघलने की दर सर्वाधिक तेज है।
वाडिया संस्थान के विज्ञानी डा. मनीष मेहता के अनुसार ऐसी स्थिति में पहले नदियों में पानी का बहाव तेज होगा और फिर धीरे-धीरे वह सूखे की स्थिति में आने लगेंगी। लिहाजा, पहाड़ी क्षेत्रों में जल प्रबंधन और जलवायु अनुकूल रणनीति की तत्काल आवश्यकता है।
आंकड़े गंभीर स्थिति बयां कर रहे
- किसी ग्लेशियर के द्रव्यमान में प्रति वर्ष 0.3 से 0.5 मीटर वाटर इक्यूवेलेंट की कमी गंभीर स्थिति बयां करती है। इस श्रेणी में लद्दाख क्षेत्र का पेंसिलुंगपा और उत्तराखंड का डुकरानी ग्लेशियर शामिल है।
- यदि ग्लेशियर का द्रव्यमान प्रति वर्ष 0.5 मीटर से अधिक दर से घट रहा है तो यह स्थिति बेहद खतरनाक मानी जाती है। इसमें ग्लेशियर बेहद तेज गति से पिघलते हैं। इस श्रेणी में उत्तराखंड का चौराबाड़ी ग्लेशियर शामिल हो चुका है।
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