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    एसआइटी जांच में तीन और शिक्षकों के प्रमाण पत्र मिले फर्जी

    By Edited By:
    Updated: Fri, 05 Oct 2018 04:25 PM (IST)

    एसआइटी की जांच में तीन और शिक्षकों के प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए हैं। जिसपर शिक्षा महानिदेशालय को मुकदमे की संस्तुति भेज दी है।

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    एसआइटी जांच में तीन और शिक्षकों के प्रमाण पत्र मिले फर्जी

    देहरादून, [जेएनएन]: फर्जी प्रमाण पत्रों वाले शिक्षकों की जांच कर रही एसआइटी ने तीन और मामले पकड़े हैं। एसआइटी ने फर्जीवाड़े की पुष्टि के बाद तीनों के खिलाफ शिक्षा महानिदेशालय को मुकदमे की संस्तुति भेज दी है। 

    बीएड की फर्जी डिग्री के अलावा प्रदेश में फर्जी आय, जाति, मूल निवास और शैक्षिक प्रमाण पत्र वाले शिक्षक एसआइटी की रडार पर हैं। ऐसे ही दो शिक्षक हरिद्वार और एक शिक्षक टिहरी में एसआइटी की पकड़ में आया है। एसआइटी प्रभारी श्वेता चौबे ने बताया कि पकड़े गए तीनों शिक्षकों की बीएड की डिग्री अभी जांच के दायरे में हैं। मगर, नौकरी पाने के लिए जाति प्रमाण पत्र, स्थायी निवास और शैक्षिक योग्यता वाले प्रमाण पत्र फर्जी मिले हैं। ऐसे में तीनों के खिलाफ फर्जीवाड़े का मुकदमा दर्ज करने की संस्तुति शिक्षा महानिदेशक को भेज दी है। 

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    उन्होंने बताया कि अब फर्जी डिग्रीधारी शिक्षकों की संख्या 57 से बढ़कर 60 हो गई है। फर्जीवाड़ा-एक राजकीय इंटर कॉलेज राडागाड़, टिहरी में सहायक अध्यापक उपेंद्र सिंह की 2008 में नियुक्ति हुई है। उपेंद्र ने बीए और एमए अंग्रेजी के प्रमाण पत्र लखनऊ विवि से हासिल किए। मगर, जांच के दौरान पाया गया कि उपेंद्र नाम से किसी भी शख्स ने यूनिवर्सिटी से बीए और एमए नहीं किया है। 

    इसकी पुष्टि यूनिवर्सिटी की रजिस्ट्रार ने भी की है। हालांकि बीएड की डिग्री अभी जांच के दायरे में हैं। फर्जीवाड़ा-दो राजकीय प्राथमिक विद्यालय लालढांग हरिद्वार में सहायक अध्यापिका मनोरमा सुयाल की नियुक्ति 2014 में हुई। मनोरमा मूल रूप से अल्मोड़ा की रहने वाली हैं। मगर, चमोली जिले में विवाह होने के बाद मनोरमा ने जनजाति का प्रमाण पत्र हासिल किया। 

    डीएम चमोली और अल्मोड़ा ने प्रमाण पत्र को फर्जी बताया है। इसी आधार पर एसआइटी ने मनोरमा के खिलाफ फर्जीवाड़े का मुकदमा दर्ज करने की संस्तुति दी है। फर्जीवाड़ा-तीन राजकीय प्राथमिक विद्यालय मोहम्मदपुर, रुड़की में तैनात सहायक अध्यापक सुदेश कुमार की नौकरी 2008 में लगी। 

    सुदेश ने जो स्थायी निवास प्रमाण पत्र लगाया था, वह किसी दूसरे के नाम दर्ज है। इसके अलावा सुदेश ने 2002, 2004 और 2015 के तीन स्थायी प्रमाण पत्र लगाए। इनमें से दो पूरी तरह से फर्जी हैं। खासकर नौकरी पाने के दौरान लगाए गया प्रमाण पत्र भी फर्जी है।

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