प्रो. गुप्ता बोले, भूकंप को रोकना संभव नहीं; इसके साथ ही रहना सीखें
प्रो. गुप्ता का कहना है कि भूकंप को रोकना संभव नहीं है। हमें इसके साथ ही रहना सीखना होगा। इसके लिए सबसे पहले बच्चों को तैयार करना होगा
देहरादून, जेएनएन। भूकंप को रोकना संभव नहीं है। हमें इसके साथ ही रहना सीखना होगा। इसके लिए सबसे पहले बच्चों को तैयार करना होगा। भूकंप के समय क्या करना चाहिए, उन्हें इसका प्रशिक्षण देना होगा। स्कूल-कॉलेजों में बच्चों को भूकंप के बारे में जागरूक करना होगा। यह बातें जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रो. हर्ष कुमार गुप्ता ने वाडिया इंस्टीट्यूट में विज्ञान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में कहीं।
शुक्रवार को इंस्टीट्यूट में 'डिवेलपिंग अर्थक्वेक एंड सुनामी रिसाइलेंट सोसायटी' विषय पर सेमीनार का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रो. हर्ष कुमार गुप्ता ने कहा कि भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता। अभी ऐसा कोई सिस्टम भी नहीं बना है, जो समय रहते इसकी सूचना दे सके। इसलिए बेहतर यही है कि हम इन आपदाओं के लिए हमेशा तैयार रहें। इसके लिए स्कूल-कॉलेजों में एसडीआरएफ की मदद से जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। उन्होंने वाडिया इंस्टीट्यूट से जल्द से जल्द इस पर काम करने की अपील की। उन्होंने कहा कि पूरा उत्तराखंड भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील है। यहां के लोगों को भूकंप के लिए हर समय तैयार रहने और इससे निपटने के उपाय जानना अनिवार्य है।
प्रो. गुप्ता ने कहा कि यही चीज सुनामी पर लागू होती है। आंकड़ों पर गौर करें तो सुनामी तट से दो किलोमीटर अंदर तक तबाही मचाती है और इसकी ऊंचाई तीन से चार मीटर तक होती है। इसलिए यह जरूरी है कि इन बातों को ध्यान में रखकर ही तट के आसपास निर्माण किए जाएं। कार्यक्रम के समापन पर पोस्टर मेकिंग, स्लोगन समेत अन्य प्रतियोगिताओं में अव्वल रहे प्रतिभागियों को प्रो. गुप्ता और संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचांद सांई ने सम्मानित किया।
28 देशों में सुनामी की निगरानी संभव
भारत समेत हिन्द महासागर के इर्द-गिर्द मौजूद 28 देशों में सुनामी आने से पहले इसकी सूचना मिलना अब संभव हो गया है। प्रो. हर्ष कुमार गुप्ता ने बताया कि मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज के विकसित किए इंडियन सुनामी अर्ली वार्निंग सिस्टम की मदद से यह संभव हो सका है। उन्होंने बताया कि समुद्र की गहराई में लगे ओशियन बॉटम प्रेशर रिकॉर्डर की मदद से समुद्र में आने वाले छोटे से छोटे भूकंप को रिकॉर्ड किया जा रहा है। सेटेलाइट के जरिये चंद पलों में यह जानकारी मिनिस्ट्री के पास आ जाती है। इससे सुनामी आने की स्थिति में कम से कम तट पर रहने वाली आबादी को अलर्ट किया जा सकता है। अरब सागर में मकरान तट से जावा सुमात्रा के तटों तक की निगरानी अब संभव हो गई है।
सॉइल लिक्विफेशन के बिना निर्माण खतरनाक
कोई भी बिल्डिंग खड़ी करने से पहले सॉइल लिक्विफेशन यानी मिट्टी के लिसलिसे होने की क्षमता की जांच करना जरूरी है। जिससे भूकंप आने पर अगर नींव की मिट्टी के साथ पानी मिलना शुरू हो, तब भी बिल्डिंग मजबूती से खड़ी रहे। अस्पताल, स्कूल, पुलिस स्टेशन समेत अन्य लाइफ लाइन बिल्डिंग पर यह सख्ती से लागू करने की जरूरत है। प्रो. गुप्ता ने बताया कि दुनियाभर में साल 2007 से अब तक 7.5 रिएक्टर स्केल से ऊपर के 500 भूकंप आ चुके हैं।
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