एसडीआरएफ के जवान ने रचा कीर्तिमान, खतरों से भरी इस चोटी को किया फतह; जानिए
राजेंद्र नाथ ने 7120 मीटर ऊंचे माउंट त्रिशूल को फतह कर नया कीर्तिमान रच दिया। वह एसडीआरएफ के पहले जवान हैं जिन्हें यह गौरव हासिल हुआ है।
देहरादून, जेएनएन। एसडीआरएफ के जवान राजेंद्र नाथ ने 7120 मीटर ऊंचे माउंट त्रिशूल को फतह कर नया कीर्तिमान रच दिया। वह एसडीआरएफ के पहले जवान हैं, जिन्हें यह गौरव हासिल हुआ है। माउंड एवरेस्ट को फतह करने से पर्वतारोही त्रिशूल पर्वत की चढ़ाई करते हैं, इसकी चढ़ाई बेहद चुनौतीपूर्ण और खतरों से भरी होती है।
सेनानायक एसडीआरएफ तृप्ति भट्ट ने 24 अगस्त को राजेंद्र नाथ को देहरादून से उत्तराखंड पुलिस के प्रतीक चिन्ह देकर रवाना किया था और 28 अगस्त को इंडियन माउंट फेडरेशन (आइएमएफ) दिल्ली से फ्लैग ऑफ सेरेमनी के साथ अभियान की शुरूआत हुई थी। सोलह सितंबर की सुबह राजेंद्र नाथ ने त्रिशूल चोटी को फतह किया। राजेंद्र नाथ इससे पहले वर्ष 2018 में चंद्रभागा-13 (6284 मीटर), वर्ष 2019 में द्रोपदी का डांडा (डीकेडी 5670 मीटर) का सफल आरोहण कर चुके हैं। उत्तराखंड पुलिस द्वारा आरोहित सतोपंथ अभियान की टीम के सदस्य के रूप में भी उनका चयन हुआ था। राजेंद्र नाथ ने कहा कि अब वह माउंट एवरेस्ट को फतह करने की तैयारी में जुटे हैं।
माउंट त्रिशूल आरोहण अभियान
29 अगस्त: दिल्ली से देहरादून
30 अगस्त: देहरादून से सुतोल
एक सितंबर: सुतोल से लताकोपरि
चार सितंबर: लताकोपरि से चंदनिया घाट
आठ सितंबर: चंदनिया घाट से बेस कैंप
12 सितंबर: बेस कैंप से कैंप संख्या एक
13 सितंबर: कैंप एक से कैंप दो
14 सितंबर: कैंप दो सम्मिट कैंप
15 सितंबर: सम्मिट कैंप से पीक सम्मिट
16 सितंबर: सुबह सात बजे त्रिशूल पर्वत की चोटी पर पहुंचे
इंडो-फ्रेंच दल ने किया माउंट ब्लैंक का सफल आरोहण
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) उत्तरकाशी और फ्रांस के पर्वतारोहण संस्थान सीएनआइएसएजी की ओर से फ्रांस में आयोजित दस-दिवसीय ट्रेनिंग एक्सचेंज प्रोग्राम मंगलवार को संपन्न हो गया। 15 सितंबर से शुरू हुए इस कार्यक्रम के तहत दोनों देशों के पर्वतारोहण संस्थानों की संयुक्त टीम ने पहली बार फ्रांस की सबसे ऊंची चोटी माउंट ब्लैंक (4810 मीटर) का सफल आरोहण भी किया। इस दौरान फ्रांस के पर्वतारोहियों ने जहां भारतीय पर्वतारोहियों को रेस्क्यू की नई तकनीक बताई, वहीं भारतीय पर्वतारोहियों की ओर से उन्हें ऊंची चोटियों के आरोहण की तकनीक से परिचित कराया गया।
फ्रांस और भारत में अलग-अलग प्रकृति की चोटियां हैं और इनके आरोहण की तकनीक भी अलग-अलग है। इन्हीं तकनीकों को एक-दूसरे से साझा करने के लिए फ्रांस और भारत की सरकारें वर्ष 2008 से ट्रेनिंग एक्सचेंज कार्यक्रम चलाती आ रही हैं। इस बार भारत की ओर से निम के प्रधानाचार्य कर्नल अमित बिष्ट के नेतृत्व में संस्थान की टीम कार्यक्रम में प्रतिभाग करने के लिए फ्रांस गई। 15 और 16 सितंबर को निम की टीम ने सर्च एंड रेस्क्यू की नई तकनीक और बारीकियां सीखीं।
इसके बाद निम और फ्रांस के पर्वतारोहण संस्थान सीएनआइएसएजी की टीमों ने संयुक्त रूप से माउंट ब्लैंक चोटी का सफल आरोहण किया। 20 सितंबर को मध्यरात्रि के बाद एक बजे यह अभियान शुरू हुआ और 21 सितंबर की सुबह नौ बजे संयुक्त दल ने चोटी फतह कर ली। साथ ही ट्रेनिंग एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत स्की और पर्वतारोहण की जानकारियों को भी साझा किया गया।
निम के प्रधानाचार्य कर्नल अमित बिष्ट ने बताया कि एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत पहली फ्रांस में किसी चोटी का आरोहण किया गया। यह कार्यक्रम काफी सार्थक रहा। बताया कि वर्ष 1981 में भारत और फ्रांस के संयुक्त सर्च अभियान के तहत गंगोत्री हिमालय के रक्तवन ग्लेशियर में अभियान चलाया गया था। लेकिन, प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते इसे आधे ग्लेशियर में ही रोकना पड़ा।
बताया कि आज तक कोई भी दल इस पूरे ग्लेशियर को पार नहीं कर पाया है। वर्ष 2020 में फिर रक्तवन ग्लेशियर में अभियान चलाया जाना है। इसके लिए सीएनआइएसएजी की टीम को भारत आने का निमंत्रण दिया गया है। बताया कि भारत की ओर से टीम में निम के वरिष्ठ प्रशिक्षक गिरीश रणाकोटी, दिनेश गुसार्इं, सूबेदार चतर सिंह व सूबेदार मणिराम शामिल शामिल थे।
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आधुनिक है फ्रांस का सर्च और रेस्क्यू सिस्टम
निम के प्रधानाचार्य कर्नल अमित बिष्ट ने बताया कि फ्रांस के सीएनआइएसएजी का सर्च और रेस्क्यू सिस्टम काफी आधुनिक है। सीएनआइएसएजी के पास अपने हेलीकॉप्टर और पर्वतारोहण में प्रशिक्षित अपने चिकित्सक हैं। इसके अलावा उनके पास डॉग स्क्वाड और आधुनिक उपकरण भी हैं। खास बात यह कि फ्रांस में संचार नेटवर्क काफी अच्छा है। आप कोई भी घटना घटने पर सीधे सीएनआइएसएजी की रेस्क्यू टीम को सहायता के लिए फोन कर सकते हैं। आठ मिनट के अंतराल में टीम राहत एवं बचाव के लिए घटना स्थल के लिए रवाना हो जाती है।
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